Galatians (2/6)  

1. चौदह साल के बाद मैं दुबारा यरूशलम गया। इस दफ़ा बर्नबास साथ था। मैं तितुस को भी साथ ले कर गया।
2. मैं एक मुकाशफ़े की वजह से गया जो अल्लाह ने मुझ पर ज़ाहिर किया था। मेरी अलाहिदगी में उन के साथ मीटिंग हुई जो असर-ओ-रसूख़ रखते हैं। इस में मैं ने उन्हें वह ख़ुशख़बरी पेश की जो मैं ग़ैरयहूदियों को सुनाता हूँ। मैं नहीं चाहता था कि जो दौड़ मैं दौड़ रहा हूँ या माज़ी में दौड़ा था वह आख़िरकार बेफ़ाइदा निकले।
3. उस वक़्त वह यहाँ तक मेरे हक़ में थे कि उन्हों ने तितुस को भी अपना ख़तना करवाने पर मज्बूर नहीं किया, अगरचि वह ग़ैरयहूदी है।
4. और चन्द यही चाहते थे। लेकिन यह झूटे भाई थे जो चुपके से अन्दर घुस आए थे ताकि जासूस बन कर हमारी उस आज़ादी के बारे में मालूमात हासिल कर लें जो हमें मसीह में मिली है। यह हमें ग़ुलाम बनाना चाहते थे,
5. लेकिन हम ने लम्हा भर उन की बात न मानी और न उन के ताबे हुए ताकि अल्लाह की ख़ुशख़बरी की सच्चाई आप के दर्मियान क़ाइम रहे।
6. और जो राहनुमा समझे जाते थे उन्हों ने मेरी बात में कोई इज़ाफ़ा न किया। (असल में मुझे कोई पर्वा नहीं कि उन का असर-ओ-रसूख़ था कि नहीं। अल्लाह तो इन्सान की ज़ाहिरी हालत का लिहाज़ नहीं करता।)
7. ब-हर-हाल उन्हों ने देखा कि अल्लाह ने मुझे ग़ैरयहूदियों को मसीह की ख़ुशख़बरी सुनाने की ज़िम्मादारी दी थी, बिलकुल उसी तरह जिस तरह उस ने पत्रस को यहूदियों को यह पैग़ाम सुनाने की ज़िम्मादारी दी थी।
8. क्यूँकि जो काम अल्लाह यहूदियों के रसूल पत्रस की ख़िदमत के वसीले से कर रहा था वही काम वह मेरे वसीले से भी कर रहा था, जो ग़ैरयहूदियों का रसूल हूँ।
9. याक़ूब, पत्रस और यूहन्ना को जमाअत के सतून माना जाता था। जब उन्हों ने पहचान लिया कि अल्लाह ने इस नाते से मुझे ख़ास फ़ज़्ल दिया है तो उन्हों ने मुझ से और बर्नबास से दहना हाथ मिला कर इस का इज़्हार किया कि वह हमारे साथ हैं। यूँ हम मुत्तफ़िक़ हुए कि बर्नबास और मैं ग़ैरयहूदियों में ख़िदमत करेंगे और वह यहूदियों में।
10. उन्हों ने सिर्फ़ एक बात पर ज़ोर दिया कि हम ज़रूरतमन्दों को याद रखें, वही बात जिसे मैं हमेशा करने के लिए कोशाँ रहा हूँ।
11. लेकिन जब पत्रस अन्ताकिया शहर आया तो मैं ने रू-ब-रू उस की मुख़ालफ़त की, क्यूँकि वह अपने रवय्ये के सबब से मुज्रिम ठहरा।
12. जब वह आया तो पहले वह ग़ैरयहूदी ईमानदारों के साथ खाना खाता रहा। लेकिन फिर याक़ूब के कुछ अज़ीज़ आए। उसी वक़्त पत्रस पीछे हट कर ग़ैरयहूदियों से अलग हुआ, क्यूँकि वह उन से डरता था जो ग़ैरयहूदियों का ख़तना करवाने के हक़ में थे।
13. बाक़ी यहूदी भी इस रियाकारी में शामिल हुए, यहाँ तक कि बर्नबास को भी उन की रियाकारी से बहकाया गया।
14. जब मैं ने देखा कि वह उस सीधी राह पर नहीं चल रहे हैं जो अल्लाह की ख़ुशख़बरी की सच्चाई पर मब्नी है तो मैं ने सब के सामने पत्रस से कहा, “आप यहूदी हैं। लेकिन आप ग़ैरयहूदी की तरह ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं, यहूदी की तरह नहीं। तो फिर यह कैसी बात है कि आप ग़ैरयहूदियों को यहूदी रिवायात की पैरवी करने पर मज्बूर कर रहे हैं?”
15. बेशक हम पैदाइशी यहूदी हैं और ‘ग़ैरयहूदी गुनाहगार’ नहीं हैं।
16. लेकिन हम जानते हैं कि इन्सान को शरीअत की पैरवी करने से रास्तबाज़ नहीं ठहराया जाता बल्कि ईसा मसीह पर ईमान लाने से। हम भी मसीह ईसा पर ईमान लाए हैं ताकि हमें रास्तबाज़ क़रार दिया जाए, शरीअत की पैरवी करने से नहीं बल्कि मसीह पर ईमान लाने से। क्यूँकि शरीअत की पैरवी करने से किसी को भी रास्तबाज़ क़रार नहीं दिया जाएगा।
17. लेकिन अगर मसीह में रास्तबाज़ ठहरने की कोशिश करते करते हम ख़ुद गुनाहगार साबित हो जाएँ तो क्या इस का मतलब यह है कि मसीह गुनाह का ख़ादिम है? हरगिज़ नहीं!
18. अगर मैं शरीअत के उस निज़ाम को दुबारा तामीर करूँ जो मैं ने ढा दिया तो फिर मैं ज़ाहिर करता हूँ कि मैं मुज्रिम हूँ।
19. क्यूँकि जहाँ तक शरीअत का ताल्लुक़ है मैं मुर्दा हूँ। मुझे शरीअत ही से मारा गया है ताकि अल्लाह के लिए जी सकूँ। मुझे मसीह के साथ मस्लूब किया गया
20. और यूँ मैं ख़ुद ज़िन्दा न रहा बल्कि मसीह मुझ में ज़िन्दा है। अब जो ज़िन्दगी मैं इस जिस्म में गुज़ारता हूँ वह अल्लाह के फ़र्ज़न्द पर ईमान लाने से गुज़ारता हूँ। उसी ने मुझ से मुहब्बत रख कर मेरे लिए अपनी जान दी।
21. मैं अल्लाह का फ़ज़्ल रद्द करने से इन्कार करता हूँ। क्यूँकि अगर किसी को शरीअत की पैरवी करने से रास्तबाज़ ठहराया जा सकता तो इस का मतलब यह होता कि मसीह का मरना अबस था।

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