Galatians (1/6)  

1. यह ख़त पौलुस रसूल की तरफ़ से है। मुझे न किसी गुरोह ने मुक़र्रर किया न किसी शख़्स ने बल्कि ईसा मसीह और ख़ुदा बाप ने जिस ने उसे मुर्दों में से ज़िन्दा कर दिया।
2. तमाम भाई भी जो मेरे साथ हैं गलतिया की जमाअतों को सलाम कहते हैं।
3. ख़ुदा हमारा बाप और ख़ुदावन्द ईसा मसीह आप को फ़ज़्ल और सलामती अता करें।
4. मसीह वही है जिस ने अपने आप को हमारे गुनाहों की ख़ातिर क़ुर्बान कर दिया और यूँ हमें इस मौजूदा शरीर जहान से बचा लिया है, क्यूँकि यह अल्लाह हमारे बाप की मर्ज़ी थी।
5. उसी का जलाल अबद तक होता रहे! आमीन।
6. मैं हैरान हूँ! आप इतनी जल्दी से उसे तर्क कर रहे हैं जिस ने मसीह के फ़ज़्ल से आप को बुलाया। और अब आप एक फ़र्क़ क़िस्म की “ख़ुशख़बरी” के पीछे लग गए हैं।
7. असल में यह अल्लाह की ख़ुशख़बरी है नहीं। बस कुछ लोग आप को उलझन में डाल कर मसीह की ख़ुशख़बरी में तब्दीली लाना चाहते हैं।
8. हम ने तो असली ख़ुशख़बरी सुनाई और जो इस से फ़र्क़ पैग़ाम सुनाता है उस पर लानत, ख़्वाह हम ख़ुद ऐसा करें ख़्वाह आस्मान से कोई फ़रिश्ता उतर कर यह ग़लत पैग़ाम सुनाए।
9. हम यह पहले बयान कर चुके हैं और अब मैं दुबारा कहता हूँ कि अगर कोई आप को ऐसी “ख़ुशख़बरी” सुनाए जो उस से फ़र्क़ है जिसे आप ने क़बूल किया है तो उस पर लानत!
10. क्या मैं इस में यह कोशिश कर रहा हूँ कि लोग मुझे क़बूल करें? हरगिज़ नहीं! मैं चाहता हूँ कि अल्लाह मुझे क़बूल करे। क्या मेरी कोशिश यह है कि मैं लोगों को पसन्द आऊँ? अगर मैं अब तक ऐसा करता तो मसीह का ख़ादिम न होता।
11. भाइयो, मैं चाहता हूँ कि आप जान लें कि जो ख़ुशख़बरी मैं ने सुनाई वह इन्सान की तरफ़ से नहीं है।
12. न मुझे यह पैग़ाम किसी इन्सान से मिला, न यह मुझे किसी ने सिखाया है बल्कि ईसा मसीह ने ख़ुद मुझ पर यह पैग़ाम ज़ाहिर किया।
13. आप ने तो ख़ुद सुन लिया है कि मैं उस वक़्त किस तरह ज़िन्दगी गुज़ारता था जब यहूदी मज़्हब का पैरोकार था। उस वक़्त मैं ने कितने जोश और शिद्दत से अल्लाह की जमाअत को ईज़ा पहुँचाई। मेरी पूरी कोशिश यह थी कि यह जमाअत ख़त्म हो जाए।
14. यहूदी मज़्हब के लिहाज़ से मैं अक्सर दीगर हमउम्र यहूदियों पर सब्क़त ले गया था। हाँ, मैं अपने बापदादा की रिवायतों की पैरवी में हद्द से ज़ियादा सरगर्म था।
15. लेकिन अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से मुझे पैदा होने से पेशतर ही चुन कर अपनी ख़िदमत करने के लिए बुलाया। और जब उस ने अपनी मर्ज़ी से
16. अपने फ़र्ज़न्द को मुझ पर ज़ाहिर किया ताकि मैं उस के बारे में ग़ैरयहूदियों को ख़ुशख़बरी सुनाऊँ तो मैं ने किसी भी शख़्स से मश्वरा न लिया।
17. उस वक़्त मैं यरूशलम भी न गया ताकि उन से मिलूँ जो मुझ से पहले रसूल थे बल्कि मैं सीधा अरब चला गया और बाद में दमिश्क़ वापस आया।
18. इस के तीन साल बाद ही मैं पत्रस से शनासा होने के लिए यरूशलम गया। वहाँ मैं पंद्रह दिन उस के साथ रहा।
19. इस के इलावा मैं ने सिर्फ़ ख़ुदावन्द के भाई याक़ूब को देखा, किसी और रसूल को नहीं।
20. जो कुछ मैं लिख रहा हूँ अल्लाह गवाह है कि वह सहीह है। मैं झूट नहीं बोल रहा।
21. बाद में मैं मुल्क-ए-शाम और किलिकिया चला गया।
22. उस वक़्त सूबा यहूदिया में मसीह की जमाअतें मुझे नहीं जानती थीं।
23. उन तक सिर्फ़ यह ख़बर पहुँची थी कि जो आदमी पहले हमें ईज़ा पहुँचा रहा था वह अब ख़ुद उस ईमान की ख़ुशख़बरी सुनाता है जिसे वह पहले ख़त्म करना चाहता था।
24. यह सुन कर उन्हों ने मेरी वजह से अल्लाह की तम्जीद की।

      Galatians (1/6)