Ezra (3/10)  

1. सातवें महीने की इबतिदा में पूरी क़ौम यरूशलम में जमा हुई। उस वक़्त इस्राईली अपनी आबादियों में दुबारा आबाद हो गए थे।
2. जमा होने का मक़्सद इस्राईल के ख़ुदा की क़ुर्बानगाह को नए सिरे से तामीर करना था ताकि मर्द-ए-ख़ुदा मूसा की शरीअत के मुताबिक़ उस पर भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ पेश की जा सकें। चुनाँचे यशूअ बिन यूसदक़ और ज़रुब्बाबल बिन सियाल्तीएल काम में लग गए। यशूअ के इमाम भाइयों और ज़रुब्बाबल के भाइयों ने उन की मदद की।
3. गो वह मुल्क में रहने वाली दीगर क़ौमों से सहमे हुए थे ताहम उन्हों ने क़ुर्बानगाह को उस की पुरानी बुन्याद पर तामीर किया और सुब्ह-शाम उस पर रब्ब को भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ पेश करने लगे।
4. झोंपड़ियों की ईद उन्हों ने शरीअत की हिदायत के मुताबिक़ मनाई। उस हफ़्ते के हर दिन उन्हों ने भस्म होने वाली उतनी क़ुर्बानियाँ चढ़ाईं जितनी ज़रूरी थीं।
5. उस वक़्त से इमाम भस्म होने वाली तमाम दरकार क़ुर्बानियाँ बाक़ाइदगी से पेश करने लगे, नीज़ नए चाँद की ईदों और रब्ब की बाक़ी मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस ईदों की क़ुर्बानियाँ। क़ौम अपनी ख़ुशी से भी रब्ब को क़ुर्बानियाँ पेश करती थी।
6. गो रब्ब के घर की बुन्याद अभी डाली नहीं गई थी तो भी इस्राईली सातवें महीने के पहले दिन से रब्ब को भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ पेश करने लगे।
7. फिर उन्हों ने राजों और कारीगरों को पैसे दे कर काम पर लगाया और सूर और सैदा के बाशिन्दों से देओदार की लकड़ी मंगवाई। यह लकड़ी लुब्नान के पहाड़ी इलाक़े से समुन्दर तक लाई गई और वहाँ से समुन्दर के रास्ते याफ़ा पहुँचाई गई। इस्राईलियों ने मुआवज़े में खाने-पीने की चीज़ें और ज़ैतून का तेल दे दिया। फ़ार्स के बादशाह ख़ोरस ने उन्हें यह करवाने की इजाज़त दी थी।
8. जिलावतनी से वापस आने के दूसरे साल के दूसरे महीने में रब्ब के घर की नए सिरे से तामीर शुरू हुई। इस काम में ज़रुब्बाबल बिन सियाल्तीएल, यशूअ बिन यूसदक़, दीगर इमाम और लावी और वतन में वापस आए हुए बाक़ी तमाम इस्राईली शरीक हुए। तामीरी काम की निगरानी उन लावियों के ज़िम्मे लगा दी गई जिन की उम्र 20 साल या इस से ज़ाइद थी।
9. ज़ैल के लोग मिल कर रब्ब का घर बनाने वालों की निगरानी करते थे : यशूअ अपने बेटों और भाइयों समेत, क़दमीएल और उस के बेटे जो हूदावियाह की औलाद थे और हनदाद के ख़ान्दान के लावी।
10. रब्ब के घर की बुन्याद रखते वक़्त इमाम अपने मुक़द्दस लिबास पहने हुए साथ खड़े हो गए और तुरम बजाने लगे। आसफ़ के ख़ान्दान के लावी साथ साथ झाँझ बजाने और रब्ब की सिताइश करने लगे। सब कुछ इस्राईल के बादशाह दाऊद की हिदायात के मुताबिक़ हुआ।
11. वह हम्द-ओ-सना के गीत से रब्ब की तारीफ़ करने लगे, “वह भला है, और इस्राईल पर उस की शफ़्क़त अबदी है!” जब हाज़िरीन ने देखा कि रब्ब के घर की बुन्याद रखी जा रही है तो सब रब्ब की ख़ुशी में ज़ोरदार नारे लगाने लगे।
12. लेकिन बहुत से इमाम, लावी और ख़ान्दानी सरपरस्त हाज़िर थे जिन्हों ने रब्ब का पहला घर देखा हुआ था। जब उन के देखते देखते रब्ब के नए घर की बुन्याद रखी गई तो वह बुलन्द आवाज़ से रोने लगे जबकि बाक़ी बहुत सारे लोग ख़ुशी के नारे लगा रहे थे।
13. इतना शोर था कि ख़ुशी के नारों और रोने की आवाज़ों में इमतियाज़ न किया जा सका। शोर दूर दूर तक सुनाई दिया।

  Ezra (3/10)