← Ezekiel (7/48) → |
1. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
2. | “ऐ आदमज़ाद, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ मुल्क-ए-इस्राईल से फ़रमाता है कि तेरा अन्जाम क़रीब ही है! जहाँ भी देखो, पूरा मुल्क तबाह हो जाएगा। |
3. | अब तेरा सत्यानास होने वाला है, मैं ख़ुद अपना ग़ज़ब तुझ पर नाज़िल करूँगा। मैं तेरे चाल-चलन को परख परख कर तेरी अदालत करूँगा, तेरी मक्रूह हर्कतों का पूरा अज्र दूँगा। |
4. | न मैं तुझ पर तरस खाऊँगा, न रहम करूँगा बल्कि तुझे तेरे चाल-चलन का मुनासिब अज्र दूँगा। क्यूँकि तेरी मक्रूह हर्कतों का बीज तेरे दर्मियान ही उग कर फल लाएगा। तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ।” |
5. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है, “आफ़त पर आफ़त ही आ रही है। |
6. | तेरा अन्जाम, हाँ, तेरा अन्जाम आ रहा है। अब वह उठ कर तुझ पर लपक रहा है। |
7. | ऐ मुल्क के बाशिन्दे, तेरी फ़ना पहुँच रही है। अब वह वक़्त क़रीब ही है, वह दिन जब तेरे पहाड़ों पर ख़ुशी के नारों के बजाय अफ़्रा-तफ़्री का शोर मचेगा। |
8. | अब मैं जल्द ही अपना ग़ज़ब तुझ पर नाज़िल करूँगा, जल्द ही अपना ग़ुस्सा तुझ पर उतारूँगा। मैं तेरे चाल-चलन को परख परख कर तेरी अदालत करूँगा, तेरी घिनौनी हर्कतों का पूरा अज्र दूँगा। |
9. | न मैं तुझ पर तरस खाऊँगा, न रहम करूँगा बल्कि तुझे तेरे चाल-चलन का मुनासिब अज्र दूँगा। क्यूँकि तेरी मक्रूह हर्कतों का बीज तेरे दर्मियान ही उग कर फल लाएगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यानी रब्ब ही ज़र्ब लगा रहा हूँ। |
10. | देखो, मज़्कूरा दिन क़रीब ही है! तेरी हलाकत पहुँच रही है। नाइन्साफ़ी के फूल और शोख़ी की कोंपलें फूट निकली हैं। |
11. | लोगों का ज़ुल्म बढ़ बढ़ कर लाठी बन गया है जो उन्हें उन की बेदीनी की सज़ा देगी। कुछ नहीं रहेगा, न वह ख़ुद, न उन की दौलत, न उन का शोर-शराबा, और न उन की शान-ओ-शौकत। |
12. | अदालत का दिन क़रीब ही है। उस वक़्त जो कुछ ख़रीदे वह ख़ुश न हो, और जो कुछ फ़रोख़्त करे वह ग़म न खाए। क्यूँकि अब इन चीज़ों का कोई फ़ाइदा नहीं, इलाही ग़ज़ब सब पर नाज़िल हो रहा है। |
13. | बेचने वाले बच भी जाएँ तो वह अपना कारोबार नहीं कर सकेंगे। क्यूँकि सब पर इलाही ग़ज़ब का फ़ैसला अटल है और मन्सूख़ नहीं हो सकता। लोगों के गुनाहों के बाइस एक जान भी नहीं छूटेगी। |
14. | बेशक लोग बिगल बजा कर जंग की तय्यारियाँ करें, लेकिन क्या फ़ाइदा? लड़ने के लिए कोई नहीं निकलेगा, क्यूँकि सब के सब मेरे क़हर का निशाना बन जाएँगे। |
15. | बाहर तल्वार, अन्दर मुहलक वबा और भूक। क्यूँकि दीहात में लोग तल्वार की ज़द में आ जाएँगे, शहर में काल और मुहलक वबा से हलाक हो जाएँगे। |
16. | जितने भी बचेंगे वह पहाड़ों में पनाह लेंगे, घाटियों में फ़ाख़्ताओं की तरह ग़ूँ ग़ूँ करके अपने गुनाहों पर आह-ओ-ज़ारी करेंगे। |
17. | हर हाथ से ताक़त जाती रहेगी, हर घुटना डाँवाँडोल हो जाएगा। |
18. | वह टाट के मातमी कपड़े ओढ़ लेंगे, उन पर कपकपी तारी हो जाएगी। हर चिहरे पर शर्मिन्दगी नज़र आएगी, हर सर मुंडवाया गया होगा। |
19. | अपनी चाँदी को वह गलियों में फैंक देंगे, अपने सोने को ग़िलाज़त समझेंगे। क्यूँकि जब रब्ब का ग़ज़ब उन पर नाज़िल होगा तो न उन की चाँदी उन्हें बचा सकेगी, न सोना। उन से न वह अपनी भूक मिटा सकेंगे, न अपने पेट को भर सकेंगे, क्यूँकि यही चीज़ें उन के लिए गुनाह का बाइस बन गई थीं। |
20. | उन्हों ने अपने ख़ूबसूरत ज़ेवरात पर फ़ख़र करके उन से अपने घिनौने बुत और मक्रूह मुजस्समे बनाए, इस लिए मैं होने दूँगा कि वह अपनी दौलत से घिन खाएँगे। |
21. | मैं यह सब कुछ परदेसियों के हवाले कर दूँगा, और वह उसे लूट लेंगे। दुनिया के बेदीन उसे छीन कर उस की बेहुरमती करेंगे। |
22. | मैं अपना मुँह इस्राईलियों से फेर लूँगा तो अजनबी मेरे क़ीमती मक़ाम की बेहुरमती करेंगे। डाकू उस में घुस कर उसे नापाक करेंगे। |
23. | ज़न्जीरें तय्यार कर! क्यूँकि मुल्क में क़त्ल-ओ-ग़ारत आम हो गई है, शहर ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद से भर गया है। |
24. | मैं दीगर अक़्वाम के सब से शरीर लोगों को बुलाऊँगा ताकि इस्राईलियों के घरों पर क़ब्ज़ा करें, मैं ज़ोरावरों का तकब्बुर ख़ाक में मिला दूँगा। जो भी मक़ाम उन्हें मुक़द्दस हो उस की बेहुरमती की जाएगी। |
25. | जब दह्शत उन पर तारी होगी तो वह अम्न-ओ-अमान तलाश करेंगे, लेकिन बेफ़ाइदा। अम्न-ओ-अमान कहीं भी पाया नहीं जाएगा। |
26. | आफ़त पर आफ़त ही उन पर आएगी, यके बाद दीगरे बुरी ख़बरें उन तक पहुँचेंगी। वह नबी से रोया मिलने की उम्मीद करेंगे, लेकिन बेफ़ाइदा। न इमाम उन्हें शरीअत की तालीम, न बुज़ुर्ग उन्हें मश्वरा दे सकेंगे। |
27. | बादशाह मातम करेगा, रईस हैबतज़दा होगा, और अवाम के हाथ थरथराएँगे। मैं उन के चाल-चलन के मुताबिक़ उन से निपटूँगा, उन के अपने ही उसूलों के मुताबिक़ उन की अदालत करूँगा। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब्ब हूँ।” |
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