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1. | मेरा राहनुमा मुझे दुबारा मक़्दिस के बैरूनी मशरिक़ी दरवाज़े के पास ले गया। अब वह बन्द था। |
2. | रब्ब ने फ़रमाया, “अब से यह दरवाज़ा हमेशा तक बन्द रहे। इसे कभी नहीं खोलना है। किसी को भी इस में से दाख़िल होने की इजाज़त नहीं, क्यूँकि रब्ब जो इस्राईल का ख़ुदा है इस दरवाज़े में से हो कर रब्ब के घर में दाख़िल हुआ है। |
3. | सिर्फ़ इस्राईल के हुक्मरान को इस दरवाज़े में बैठने और मेरे हुज़ूर क़ुर्बानी का अपना हिस्सा खाने की इजाज़त है। लेकिन इस के लिए वह दरवाज़े में से गुज़र नहीं सकेगा बल्कि बैरूनी सहन की तरफ़ से उस में दाख़िल होगा। वह दरवाज़े के साथ मुल्हिक़ बराम्दे से हो कर वहाँ पहुँचेगा और इसी रास्ते से वहाँ से निकलेगा भी।” |
4. | फिर मेरा राहनुमा मुझे शिमाली दरवाज़े में से हो कर दुबारा अन्दरूनी सहन में ले गया। हम रब्ब के घर के सामने पहुँचे। मैं ने देखा कि रब्ब का घर रब्ब के जलाल से मामूर हो रहा है। मैं मुँह के बल गिर गया। |
5. | रब्ब ने फ़रमाया, “ऐ आदमज़ाद, ध्यान से देख, ग़ौर से सुन! रब्ब के घर के बारे में उन तमाम हिदायात पर तवज्जुह दे जो मैं तुझे बताने वाला हूँ। ध्यान दे कि कौन कौन उस में जा सकेगा। |
6. | इस सरकश क़ौम इस्राईल को बता, ‘ऐ इस्राईली क़ौम, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि तुम्हारी मक्रूह हर्कतें बहुत हैं, अब बस करो! |
7. | तुम परदेसियों को मेरे मक़्दिस में लाए हो, ऐसे लोगों को जो बातिन और ज़ाहिर में नामख़्तून हैं। और यह तुम ने उस वक़्त किया जब तुम मुझे मेरी ख़ुराक यानी चर्बी और ख़ून पेश कर रहे थे। यूँ तुम ने मेरे घर की बेहुरमती करके अपनी घिनौनी हर्कतों से वह अह्द तोड़ डाला है जो मैं ने तुम्हारे साथ बाँधा था। |
8. | तुम ख़ुद मेरे मक़्दिस में ख़िदमत नहीं करना चाहते थे बल्कि तुम ने परदेसियों को यह ज़िम्मादारी दी थी कि वह तुम्हारी जगह यह ख़िदमत अन्जाम दें। |
9. | इस लिए रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि आइन्दा जो भी ग़ैरमुल्की अन्दरूनी और बैरूनी तौर पर नामख़्तून है उसे मेरे मक़्दिस में दाख़िल होने की इजाज़त नहीं। इस में वह अजनबी भी शामिल हैं जो इस्राईलियों के दर्मियान रहते हैं। |
10. | जब इस्राईली भटक गए और मुझ से दूर हो कर बुतों के पीछे लग गए तो अक्सर लावी भी मुझ से दूर हुए। अब उन्हें अपने गुनाह की सज़ा भुगतनी पड़ेगी। |
11. | आइन्दा वह मेरे मक़्दिस में हर क़िस्म की ख़िदमत नहीं करेंगे। उन्हें सिर्फ़ दरवाज़ों की पहरादारी करने और जानवरों को ज़बह करने की इजाज़त होगी। इन जानवरों में भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ भी शामिल होंगी और ज़बह की क़ुर्बानियाँ भी। लावी क़ौम की ख़िदमत के लिए रब्ब के घर में हाज़िर रहेंगे, |
12. | लेकिन चूँकि वह अपने हमवतनों के बुतों के सामने लोगों की ख़िदमत करके उन के लिए गुनाह का बाइस बने रहे इस लिए मैं ने अपना हाथ उठा कर क़सम खाई है कि उन्हें इस की सज़ा भुगतनी पड़ेगी। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
13. | अब से वह इमाम की हैसियत से मेरे क़रीब आ कर मेरी ख़िदमत नहीं करेंगे, अब से वह उन चीज़ों के क़रीब नहीं आएँगे जिन को मैं ने मुक़द्दसतरीन क़रार दिया है। |
14. | इस के बजाय मैं उन्हें रब्ब के घर के निचले दर्जे की ज़िम्मादारियाँ दूँगा। |
15. | लेकिन रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि लावी का एक ख़ान्दान उन में शामिल नहीं है। सदोक़ का ख़ान्दान आइन्दा भी मेरी ख़िदमत करेगा। उस के इमाम उस वक़्त भी वफ़ादारी से मेरे मक़्दिस में मेरी ख़िदमत करते रहे जब इस्राईल के बाक़ी लोग मुझ से दूर हो गए थे। इस लिए यह आइन्दा भी मेरे हुज़ूर आ कर मुझे क़ुर्बानियों की चर्बी और ख़ून पेश करेंगे। |
16. | सिर्फ़ यही इमाम मेरे मक़्दिस में दाख़िल होंगे और मेरी मेज़ पर मेरी ख़िदमत करके मेरे तमाम फ़राइज़ अदा करेंगे। |
17. | जब भी इमाम अन्दरूनी दरवाज़े में दाख़िल होते हैं तो लाज़िम है कि वह कतान के कपड़े पहन लें। अन्दरूनी सहन और रब्ब के घर में ख़िदमत करते वक़्त ऊन के कपड़े पहनना मना है। |
18. | वह कतान की पगड़ी और पाजामा पहनें, क्यूँकि उन्हें पसीना दिलाने वाले कपड़ों से गुरेज़ करना है। |
19. | जब भी इमाम अन्दरूनी सहन से दुबारा बैरूनी सहन में जाना चाहें तो लाज़िम है कि वह ख़िदमत के लिए मुस्तामल कपड़ों को उतारें। वह इन कपड़ों को मुक़द्दस कमरों में छोड़ आएँ और आम कपड़े पहन लें, ऐसा न हो कि मुक़द्दस कपड़े छूने से आम लोगों की जान ख़त्रे में पड़ जाए। |
20. | न इमाम अपना सर मुंडवाएँ, न उन के बाल लम्बे हों बल्कि वह उन्हें कटवाते रहें। |
21. | इमाम को अन्दरूनी सहन में दाख़िल होने से पहले मै पीना मना है। |
22. | इमाम को किसी तलाकशुदा औरत या बेवा से शादी करने की इजाज़त नहीं है। वह सिर्फ़ इस्राईली कुंवारी से शादी करे। सिर्फ़ उस वक़्त बेवा से शादी करने की इजाज़त है जब मर्हूम शौहर इमाम था। |
23. | इमाम अवाम को मुक़द्दस और ग़ैरमुक़द्दस चीज़ों में फ़र्क़ की तालीम दें। वह उन्हें नापाक और पाक चीज़ों में इमतियाज़ करना सिखाएँ। |
24. | अगर तनाज़ो हो तो इमाम मेरे अह्काम के मुताबिक़ ही उस पर फ़ैसला करें। उन का फ़र्ज़ है कि वह मेरी मुक़र्ररा ईदों को मेरी हिदायात और क़वाइद के मुताबिक़ ही मनाएँ। वह मेरा सबत का दिन मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस रखें। |
25. | इमाम अपने आप को किसी लाश के पास जाने से नापाक न करे। इस की इजाज़त सिर्फ़ इसी सूरत में है कि उस के माँ-बाप, बच्चों, भाइयों या ग़ैरशादीशुदा बहनों में से कोई इन्तिक़ाल कर जाए। |
26. | अगर कभी ऐसा हो तो वह अपने आप को पाक-साफ़ करने के बाद मज़ीद सात दिन इन्तिज़ार करे, |
27. | फिर मक़्दिस के अन्दरूनी सहन में जा कर अपने लिए गुनाह की क़ुर्बानी पेश करे। तब ही वह दुबारा मक़्दिस में ख़िदमत कर सकता है। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
28. | सिर्फ़ मैं ही इमामों का मौरूसी हिस्सा हूँ। उन्हें इस्राईल में मौरूसी मिल्कियत मत देना, क्यूँकि मैं ख़ुद उन की मौरूसी मिल्कियत हूँ। |
29. | खाने के लिए इमामों को ग़ल्ला, गुनाह और क़ुसूर की क़ुर्बानियाँ मिलेंगी, नीज़ इस्राईल में वह सब कुछ जो रब्ब के लिए मख़्सूस किया जाता है। |
30. | इमामों को फ़सल के पहले फल का बेहतरीन हिस्सा और तुम्हारे तमाम हदिए मिलेंगे। उन्हें अपने गुंधे हुए आटे से भी हिस्सा देना है। तब अल्लाह की बर्कत तेरे घराने पर ठहरेगी। |
31. | जो परिन्दा या दीगर जानवर फ़ित्री तौर पर या किसी दूसरे जानवर के हम्ले से मर जाए उस का गोश्त खाना इमाम के लिए मना है। |
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