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1. | मेरा राहनुमा मुझे दुबारा रब्ब के घर के मशरिक़ी दरवाज़े के पास ले गया। |
2. | अचानक इस्राईल के ख़ुदा का जलाल मशरिक़ से आता हुआ दिखाई दिया। ज़बरदस्त आबशार का सा शोर सुनाई दिया, और ज़मीन उस के जलाल से चमक रही थी। |
3. | रब्ब मुझ पर यूँ ज़ाहिर हुआ जिस तरह दीगर रोयाओं में, पहले दरया-ए-किबार के किनारे और फिर उस वक़्त जब वह यरूशलम को तबाह करने आया था। मैं मुँह के बल गिर गया। |
4. | रब्ब का जलाल मशरिक़ी दरवाज़े में से रब्ब के घर में दाख़िल हुआ। |
5. | फिर अल्लाह का रूह मुझे उठा कर अन्दरूनी सहन में ले गया। वहाँ मैं ने देखा कि पूरा घर रब्ब के जलाल से मामूर है। |
6. | मेरे पास खड़े आदमी की मौजूदगी में कोई रब्ब के घर में से मुझ से मुख़ातिब हुआ, |
7. | “ऐ आदमज़ाद, यह मेरे तख़्त और मेरे पाँओ के तल्वों का मक़ाम है। यहीं मैं हमेशा तक इस्राईलियों के दर्मियान सुकूनत करूँगा। आइन्दा न कभी इस्राईली और न उन के बादशाह मेरे मुक़द्दस नाम की बेहुरमती करेंगे। न वह अपनी ज़िनाकाराना बुतपरस्ती से, न बादशाहों की लाशों से मेरे नाम की बेहुरमती करेंगे। |
8. | माज़ी में इस्राईल के बादशाहों ने अपने महलों को मेरे घर के साथ ही तामीर किया। उन की दहलीज़ मेरी दहलीज़ के साथ और उन के दरवाज़े का बाज़ू मेरे दरवाज़े के बाज़ू के साथ लगता था। एक ही दीवार उन्हें मुझ से अलग रखती थी। यूँ उन्हों ने अपनी मक्रूह हर्कतों से मेरे मुक़द्दस नाम की बेहुरमती की, और जवाब में मैं ने अपने ग़ज़ब में उन्हें हलाक कर दिया। |
9. | लेकिन अब वह अपनी ज़िनाकाराना बुतपरस्ती और अपने बादशाहों की लाशें मुझ से दूर रखेंगे। तब मैं हमेशा तक उन के दर्मियान सुकूनत करूँगा। |
10. | ऐ आदमज़ाद, इस्राईलियों को इस घर के बारे में सुना दे ताकि उन्हें अपने गुनाहों पर शर्म आए। वह ध्यान से नए घर के नक़्शे का मुतालआ करें। |
11. | अगर उन्हें अपनी हर्कतों पर शर्म आए तो उन्हें घर की तफ़्सीलात भी दिखा दे, यानी उस की तर्तीब, उस के आने जाने के रास्ते और उस का पूरा इन्तिज़ाम तमाम क़वाइद और अह्काम समेत। सब कुछ उन के सामने ही लिख दे ताकि वह उस के पूरे इन्तिज़ाम के पाबन्द रहें और उस के तमाम क़वाइद की पैरवी करें। |
12. | रब्ब के घर के लिए मेरी हिदायत सुन! इस पहाड़ की चोटी गिर्द-ओ-नवाह के तमाम इलाक़े समेत मुक़द्दसतरीन जगह है। यह घर के लिए मेरी हिदायत है।” |
13. | क़ुर्बानगाह यूँ बनाई गई थी कि उस का पाया नाली से घिरा हुआ था जो 21 इंच गहरी और उतनी ही चौड़ी थी। बाहर की तरफ़ नाली के किनारे पर छोटी सी दीवार थी जिस की ऊँचाई 9 इंच थी। |
14. | क़ुर्बानगाह के तीन हिस्से थे। सब से निचला हिस्सा साढे तीन फ़ुट ऊँचा था। इस पर बना हुआ हिस्सा 7 फ़ुट ऊँचा था, लेकिन उस की चौड़ाई कुछ कम थी, इस लिए चारों तरफ़ निचले हिस्से का ऊपर वाला किनारा नज़र आता था। इस किनारे की चौड़ाई 21 इंच थी। तीसरा और सब से ऊपर वाला हिस्सा भी इसी तरह बनाया गया था। वह दूसरे हिस्से की निस्बत कम चौड़ा था, इस लिए चारों तरफ़ दूसरे हिस्से का ऊपर वाला किनारा नज़र आता था। इस किनारे की चौड़ाई भी 21 इंच थी। |
15. | तीसरे हिस्से पर क़ुर्बानियाँ जलाई जाती थीं, और चारों कोनों पर सींग लगे थे। यह हिस्सा भी 7 फ़ुट ऊँचा था। |
16. | क़ुर्बानगाह की ऊपर वाली सतह मुरब्बा शक्ल की थी। उस की चौड़ाई और लम्बाई इक्कीस इक्कीस फ़ुट थी। |
17. | दूसरा हिस्सा भी मुरब्बा शक्ल का था। उस की चौड़ाई और लम्बाई साढे चौबीस चौबीस फ़ुट थी। उस का ऊपर वाला किनारा नज़र आता था, और उस पर 21 इंच चौड़ी नाली थी, यूँ कि किनारे पर छोटी सी दीवार थी जिस की ऊँचाई साढे 10 इंच थी। क़ुर्बानगाह पर चढ़ने के लिए उस के मशरिक़ में सीढ़ी थी। |
18. | फिर रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, “ऐ आदमज़ाद, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि इस क़ुर्बानगाह को तामीर करने के बाद तुझे इस पर क़ुर्बानियाँ जला कर इसे मख़्सूस करना है। साथ साथ इस पर क़ुर्बानियों का ख़ून भी छिड़कना है। इस सिलसिले में मेरी हिदायात सुन! |
19. | सिर्फ़ लावी के क़बीले के उन इमामों को रब्ब के घर में मेरे हुज़ूर ख़िदमत करने की इजाज़त है जो सदोक़ की औलाद हैं। रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि उन्हें एक जवान बैल दे ताकि वह उसे गुनाह की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करें। |
20. | इस बैल का कुछ ख़ून ले कर क़ुर्बानगाह के चारों सींगों, निचले हिस्से के चारों कोनों और इर्दगिर्द उस के किनारे पर लगा दे। यूँ तू क़ुर्बानगाह का कफ़्फ़ारा दे कर उसे पाक-साफ़ करेगा। |
21. | इस के बाद जवान बैल को मक़्दिस से बाहर किसी मुक़र्ररा जगह पर ले जा। वहाँ उसे जला देना है। |
22. | अगले दिन एक बेऐब बक्रे को क़ुर्बान कर। यह भी गुनाह की क़ुर्बानी है, और इस के ज़रीए क़ुर्बानगाह को पहली क़ुर्बानी की तरह पाक-साफ़ करना है। |
23. | पाक-साफ़ करने के इस सिलसिले की तक्मील पर एक बेऐब बैल और एक बेऐब मेंढे को चुन कर |
24. | रब्ब को पेश कर। इमाम इन जानवरों पर नमक छिड़क कर इन्हें रब्ब को भस्म होने वाली क़ुर्बानी के तौर पर पेश करें। |
25. | लाज़िम है कि तू सात दिन तक रोज़ाना एक बक्रा, एक जवान बैल और एक मेंढा क़ुर्बान करे। सब जानवर बेऐब हों। |
26. | सात दिनों की इस कार-रवाई से तुम क़ुर्बानगाह का कफ़्फ़ारा दे कर उसे पाक-साफ़ और मख़्सूस करोगे। |
27. | आठवें दिन से इमाम बाक़ाइदा क़ुर्बानियाँ शुरू कर सकेंगे। उस वक़्त से वह तुम्हारे लिए भस्म होने वाली और सलामती की क़ुर्बानियाँ चढ़ाएँगे। तब तुम मुझे मन्ज़ूर होगे। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।” |
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