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1. | ऐ आदमज़ाद, अब एक कच्ची ईंट ले और उसे अपने सामने रख कर उस पर यरूशलम शहर का नक़्शा कन्दा कर। |
2. | फिर यह नक़्शा शहर का मुहासरा दिखाने के लिए इस्तेमाल कर। बुर्ज और पुश्ते बना कर घेरा डाल। यरूशलम के बाहर लश्करगाह लगा कर शहर के इर्दगिर्द क़िलआशिकन मशीनें तय्यार रख। |
3. | फिर लोहे की प्लेट ले कर अपने और शहर के दर्मियान रख। इस से मुराद लोहे की दीवार है। शहर को घूर घूर कर ज़ाहिर कर कि तू उस का मुहासरा कर रहा है। इस निशान से तू दिखाएगा कि इस्राईलियों के साथ क्या कुछ होने वाला है। |
4. | इस के बाद अपने बाएँ पहलू पर लेट कर अलामती तौर पर मुल्क-ए-इस्राईल की सज़ा पा। जितने भी साल वह गुनाह करते आए हैं उतने ही दिन तुझे इसी हालत में लेटे रहना है। वह 390 साल गुनाह करते रहे हैं, इस लिए तू 390 दिन उन के गुनाहों की सज़ा पाएगा। |
5. | इस के बाद अपने बाएँ पहलू पर लेट कर अलामती तौर पर मुल्क-ए-इस्राईल की सज़ा पा। जितने भी साल वह गुनाह करते आए हैं उतने ही दिन तुझे इसी हालत में लेटे रहना है। वह 390 साल गुनाह करते रहे हैं, इस लिए तू 390 दिन उन के गुनाहों की सज़ा पाएगा। |
6. | इस के बाद अपने दाएँ पहलू पर लेट जा और मुल्क-ए-यहूदाह की सज़ा पा। मैं ने मुक़र्रर किया है कि तू 40 दिन यह करे, क्यूँकि यहूदाह 40 साल गुनाह करता रहा है। |
7. | घेरे हुए शहर यरूशलम को घूर घूर कर अपने नंगे बाज़ू से उसे धमकी दे और उस के ख़िलाफ़ पेशगोई कर। |
8. | साथ साथ मैं तुझे रस्सियों में जकड़ लूँगा ताकि तू उतने दिन करवटें बदल न सके जितने दिन तेरा मुहासरा किया जाएगा। |
9. | अब कुछ गन्दुम, जौ, लोबिया, मसूर, बाजरा और यहाँ मुस्तामल घटिया क़िस्म का गन्दुम जमा करके एक ही बर्तन में डाल। बाएँ पहलू पर लेटते वक़्त यानी पूरे 390 दिन इन ही से रोटी बना कर खा। |
10. | फ़ी दिन तुझे रोटी का एक पाओ खाने और पानी का पौना लिटर पीने की इजाज़त है। यह चीज़ें एहतियात से तोल कर मुक़र्ररा औक़ात पर खा और पी। |
11. | फ़ी दिन तुझे रोटी का एक पाओ खाने और पानी का पौना लिटर पीने की इजाज़त है। यह चीज़ें एहतियात से तोल कर मुक़र्ररा औक़ात पर खा और पी। |
12. | रोटी को जौ की रोटी की तरह तय्यार करके खा। ईंधन के लिए इन्सान का फ़ुज़्ला इस्तेमाल कर। ध्यान दे कि सब इस के गवाह हों।” |
13. | रब्ब ने फ़रमाया, “जब मैं इस्राईलियों को दीगर अक़्वाम में मुन्तशिर करूँगा तो उन्हें नापाक रोटी खानी पड़ेगी।” |
14. | यह सुन कर मैं बोल उठा, “हाय, हाय! ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, मैं कभी भी नापाक नहीं हुआ। जवानी से ले कर आज तक मैं ने कभी भी ऐसे जानवर का गोश्त नहीं खाया जिसे ज़बह नहीं किया गया था या जिसे जंगली जानवरों ने फाड़ा था। नापाक गोश्त कभी मेरे मुँह में नहीं आया।” |
15. | तब रब्ब ने जवाब दिया, “ठीक है, रोटी को बनाने के लिए तू इन्सान के फ़ुज़्ले के बजाय गोबर इस्तेमाल कर सकता है। मैं तुझे इस की इजाज़त देता हूँ।” |
16. | उस ने मज़ीद फ़रमाया, “ऐ आदमज़ाद, मैं यरूशलम में रोटी का बन्द-ओ-बस्त ख़त्म हो जाने दूँगा। तब लोग अपना खाना बड़ी एहतियात से और परेशानी में तोल तोल कर खाएँगे। वह पानी का क़तरा क़तरा गिन कर उसे लरज़ते हुए पिएँगे। |
17. | क्यूँकि खाने और पानी की क़िल्लत होगी। सब मिल कर तबाह हो जाएँगे, सब अपने गुनाहों के सबब से सड़ जाएँगे। |
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