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1. | यहूयाकीन बादशाह की जिलावतनी के ग्यारवें साल में रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ। तीसरे महीने का पहला दिन था। उस ने फ़रमाया, |
2. | “ऐ आदमज़ाद, मिस्री बादशाह फ़िरऔन और उस की शान-ओ-शौकत से कह, ‘कौन तुझ जैसा अज़ीम था? |
3. | तू सर्व का दरख़्त, लुब्नान का देओदार का दरख़्त था, जिस की ख़ूबसूरत और घनी शाख़ें जंगल को साया देती थीं। वह इतना बड़ा था कि उस की चोटी बादलों में ओझल थी। |
4. | पानी की कस्रत ने उसे इतनी तरक़्क़ी दी, गहरे चश्मों ने उसे बड़ा बना दिया। उस की नदियाँ तने के चारों तरफ़ बहती थीं और फिर आगे जा कर खेत के बाक़ी तमाम दरख़्तों को भी सेराब करती थीं। |
5. | चुनाँचे वह दीगर दरख़्तों से कहीं ज़ियादा बड़ा था। उस की शाख़ें बढ़ती और उस की टहनियाँ लम्बी होती गईं। वाफ़िर पानी के बाइस वह ख़ूब फैलता गया। |
6. | तमाम परिन्दे अपने घोंसले उस की शाख़ों में बनाते थे। उस की शाख़ों की आड़ में जंगली जानवरों के बच्चे पैदा होते, उस के साय में तमाम अज़ीम क़ौमें बसती थीं। |
7. | चूँकि दरख़्त की जड़ों को पानी की कस्रत मिलती थी इस लिए उस की लम्बाई और शाख़ें क़ाबिल-ए-तारीफ़ और ख़ूबसूरत बन गईं। |
8. | बाग़-ए-ख़ुदा के देओदार के दरख़्त उस के बराबर नहीं थे। न जूनीपर की टहनियाँ, न चनार की शाख़ें उस की शाख़ों के बराबर थीं। बाग़-ए-ख़ुदा में कोई भी दरख़्त उस की ख़ूबसूरती का मुक़ाबला नहीं कर सकता था। |
9. | मैं ने ख़ुद उसे मुतअद्दिद डालियाँ मुहय्या करके ख़ूबसूरत बनाया था। अल्लाह के बाग़-ए-अदन के तमाम दीगर दरख़्त उस से रशक खाते थे। |
10. | लेकिन अब रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि जब दरख़्त इतना बड़ा हो गया कि उस की चोटी बादलों में ओझल हो गई तो वह अपने क़द पर फ़ख़र करके मग़रूर हो गया। |
11. | यह देख कर मैं ने उसे अक़्वाम के सब से बड़े हुक्मरान के हवाले कर दिया ताकि वह उस की बेदीनी के मुताबिक़ उस से निपट ले। मैं ने उसे निकाल दिया, |
12. | तो अजनबी अक़्वाम के सब से ज़ालिम लोगों ने उसे टुकड़े टुकड़े करके ज़मीन पर छोड़ दिया। तब उस की शाख़ें पहाड़ों पर और तमाम वादियों में गिर गईं, उस की टहनियाँ टूट कर मुल्क की तमाम घाटियों में पड़ी रहीं। दुनिया की तमाम अक़्वाम उस के साय में से निकल कर वहाँ से चली गईं। |
13. | तमाम परिन्दे उस के कटे हुए तने पर बैठ गए, तमाम जंगली जानवर उस की सूखी हुई शाख़ों पर लेट गए। |
14. | यह इस लिए हुआ कि आइन्दा पानी के किनारे पर लगा कोई भी दरख़्त इतना बड़ा न हो कि उस की चोटी बादलों में ओझल हो जाए और नतीजतन वह अपने आप को दूसरों से बरतर समझे। क्यूँकि सब के लिए मौत और ज़मीन की गहराइयाँ मुक़र्रर हैं, सब को पाताल में उतर कर मुर्दों के दर्मियान बसना है। |
15. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि जिस वक़्त यह दरख़्त पाताल में उतर गया उस दिन मैं ने गहराइयों के चश्मों को उस पर मातम करने दिया और उन की नदियों को रोक दिया ताकि पानी इतनी कस्रत से न बहे। उस की ख़ातिर मैं ने लुब्नान को मातमी लिबास पहनाए। तब खुले मैदान के तमाम दरख़्त मुरझा गए। |
16. | वह इतने धड़ाम से गिर गया जब मैं ने उसे पाताल में उन के पास उतार दिया जो गढ़े में उतर चुके थे कि दीगर अक़्वाम को धच्का लगा। लेकिन बाग़-ए-अदन के बाक़ी तमाम दरख़्तों को तसल्ली मिली। क्यूँकि गो लुब्नान के इन चीदा और बेहतरीन दरख़्तों को पानी की कस्रत मिलती रही थी ताहम यह भी पाताल में उतर गए थे। |
17. | गो यह बड़े दरख़्त की ताक़त रहे थे और अक़्वाम के दर्मियान रह कर उस के साय में अपना घर बना लिया था तो भी यह बड़े दरख़्त के साथ वहाँ उतर गए जहाँ मक़्तूल उन के इन्तिज़ार में थे। |
18. | ऐ मिस्र, अज़्मत और शान के लिहाज़ से बाग़-ए-अदन का कौन सा दरख़्त तेरा मुक़ाबला कर सकता है? लेकिन तुझे बाग़-ए-अदन के दीगर दरख़्तों के साथ ज़मीन की गहराइयों में उतारा जाएगा। वहाँ तू नामख़्तूनों और मक़्तूलों के दर्मियान पड़ा रहेगा। रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि यही फ़िरऔन और उस की शान-ओ-शौकत का अन्जाम होगा’।” |
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