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1. | उस ने फ़रमाया, “ऐ आदमज़ाद, जो कुछ तुझे दिया जा रहा है उसे खा ले! तूमार को खा, फिर जा कर इस्राईली क़ौम से मुख़ातिब हो जा।” |
2. | मैं ने अपना मुँह खोला तो उस ने मुझे तूमार खिलाया। |
3. | साथ साथ उस ने फ़रमाया, “आदमज़ाद, जो तूमार मैं तुझे खिलाता हूँ उसे खा, पेट भर कर खा!” जब मैं ने उसे खाया तो शहद की तरह मीठा लगा। |
4. | तब अल्लाह मुझ से हमकलाम हुआ, “ऐ आदमज़ाद, अब जा कर इस्राईली घराने को मेरे पैग़ामात सुना दे। |
5. | मैं तुझे ऐसी क़ौम के पास नहीं भेज रहा जिस की अजनबी ज़बान तुझे समझ न आए बल्कि तुझे इस्राईली क़ौम के पास भेज रहा हूँ। |
6. | बेशक ऐसी बहुत सी क़ौमें हैं जिन की अजनबी ज़बानें तुझे नहीं आतीं, लेकिन उन के पास मैं तुझे नहीं भेज रहा। अगर मैं तुझे उन ही के पास भेजता तो वह ज़रूर तेरी सुनतीं। |
7. | लेकिन इस्राईली घराना तेरी सुनने के लिए तय्यार नहीं होगा, क्यूँकि वह मेरी सुनने के लिए तय्यार ही नहीं। क्यूँकि पूरी क़ौम का माथा सख़्त और दिल अड़ा हुआ है। |
8. | लेकिन मैं ने तेरा चिहरा भी उन के चिहरे जैसा सख़्त कर दिया, तेरा माथा भी उन के माथे जैसा मज़्बूत कर दिया है। |
9. | तू उन का मुक़ाबला कर सकेगा, क्यूँकि मैं ने तेरे माथे को हीरे जैसा मज़्बूत, चक़्माक़ जैसा पाएदार कर दिया है। गो यह क़ौम बाग़ी है तो भी उन से ख़ौफ़ न खा, न उन के सुलूक से दह्शतज़दा हो।” |
10. | अल्लाह ने मज़ीद फ़रमाया, “ऐ आदमज़ाद, मेरी हर बात पर ध्यान दे कर उसे ज़हन में बिठा। |
11. | अब रवाना हो कर अपनी क़ौम के उन अफ़राद के पास जा जो बाबल में जिलावतन हुए हैं। उन्हें वह कुछ सुना दे जो रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ उन्हें बताना चाहता है, ख़्वाह वह सुनें या न सुनें।” |
12. | फिर अल्लाह के रूह ने मुझे वहाँ से उठाया। जब रब्ब का जलाल अपनी जगह से उठा तो मैं ने अपने पीछे एक गड़गड़ाती आवाज़ सुनी। |
13. | फ़िज़ा चारों जानदारों के शोर से गूँज उठी जब उन के पर एक दूसरे से लगने और उन के पहिए घूमने लगे। |
14. | अल्लाह का रूह मुझे उठा कर वहाँ से ले गया, और मैं तल्ख़मिज़ाजी और बड़ी सरगर्मी से रवाना हुआ। क्यूँकि रब्ब का हाथ ज़ोर से मुझ पर ठहरा हुआ था। |
15. | चलते चलते मैं दरया-ए-किबार की आबादी तल-अबीब में रहने वाले जिलावतनों के पास पहुँच गया। मैं उन के दर्मियान बैठ गया। सात दिन तक मेरी हालत गुमसुम रही। |
16. | सात दिन के बाद रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
17. | “ऐ आदमज़ाद, मैं ने तुझे इस्राईली क़ौम पर पहरेदार बनाया, इस लिए जब भी तुझे मुझ से कलाम मिले तो उन्हें मेरी तरफ़ से आगाह कर! |
18. | मैं तेरे ज़रीए बेदीन को इत्तिला दूँगा कि उसे मरना ही है ताकि वह अपनी बुरी राह से हट कर बच जाए। अगर तू उसे यह पैग़ाम न पहुँचाए, न उसे तम्बीह करे और वह अपने क़ुसूर के बाइस मर जाए तो मैं तुझे ही उस की मौत का ज़िम्मादार ठहराऊँगा। |
19. | लेकिन अगर वह तेरी तम्बीह पर अपनी बेदीनी और बुरी राह से न हटे तो यह अलग बात है। बेशक वह मरेगा, लेकिन तू ज़िम्मादार नहीं ठहरेगा बल्कि अपनी जान को छुड़ाएगा। |
20. | जब रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी को छोड़ कर बुरी राह पर आ जाएगा तो मैं तुझे उसे आगाह करने की ज़िम्मादारी दूँगा। अगर तू यह करने से बाज़ रहा तो तू ही ज़िम्मादार ठहरेगा जब मैं उसे ठोकर खिला कर मार डालूँगा। उस वक़्त उस के रास्त काम याद नहीं रहेंगे बल्कि वह अपने गुनाह के सबब से मरेगा। लेकिन तू ही उस की मौत का ज़िम्मादार ठहरेगा। |
21. | लेकिन अगर तू उसे तम्बीह करे और वह अपने गुनाह से बाज़ आए तो वह मेरी तम्बीह को क़बूल करने के बाइस बचेगा, और तू भी अपनी जान को छुड़ाएगा।” |
22. | वहीं रब्ब का हाथ दुबारा मुझ पर आ ठहरा। उस ने फ़रमाया, “उठ, यहाँ से निकल कर वादी के खुले मैदान में चला जा! वहाँ मैं तुझ से हमकलाम हूँगा।” |
23. | मैं उठा और निकल कर वादी के खुले मैदान में चला गया। जब पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि रब्ब का जलाल वहाँ यूँ मौजूद है जिस तरह पहली रोया में दरया-ए-किबार के किनारे पर था। मैं मुँह के बल गिर गया। |
24. | तब अल्लाह के रूह ने आ कर मुझे दुबारा खड़ा किया और फ़रमाया, “अपने घर में जा कर अपने पीछे कुंडी लगा। |
25. | ऐ आदमज़ाद, लोग तुझे रस्सियों में जकड़ कर बन्द रखेंगे ताकि तू निकल कर दूसरों में न फिर सके। |
26. | मैं होने दूँगा कि तेरी ज़बान तालू से चिपक जाए और तू ख़ामोश रह कर उन्हें डाँट न सके। क्यूँकि यह क़ौम सरकश है। |
27. | लेकिन जब भी मैं तुझ से हमकलाम हूँगा तो तेरे मुँह को खोलूँगा। तब तू मेरा कलाम सुना कर कहेगा, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है!’ तब जो सुनने के लिए तय्यार हो वह सुने, और जो तय्यार न हो वह न सुने। क्यूँकि यह क़ौम सरकश है। |
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