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1. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
2. | “ऐ आदमज़ाद, सूर के हुक्मरान को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि तू मग़रूर हो गया है। तू कहता है कि मैं ख़ुदा हूँ, मैं समुन्दर के दर्मियान ही अपने तख़्त-ए-इलाही पर बैठा हूँ। लेकिन तू ख़ुदा नहीं बल्कि इन्सान है, गो तू अपने आप को ख़ुदा सा समझता है। |
3. | बेशक तू अपने आप को दान्याल से कहीं ज़ियादा दानिशमन्द समझ कर कहता है कि कोई भी भेद मुझ से पोशीदा नहीं रहता। |
4. | और यह हक़ीक़त भी है कि तू ने अपनी हिक्मत और समझ से बहुत दौलत हासिल की है, सोने और चाँदी से अपने ख़ज़ानों को भर दिया है। |
5. | बड़ी दानिशमन्दी से तू ने तिजारत के ज़रीए अपनी दौलत बढ़ाई। लेकिन जितनी तेरी दौलत बढ़ती गई उतना ही तेरा ग़रूर भी बढ़ता गया। |
6. | चुनाँचे रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि चूँकि तू अपने आप को ख़ुदा सा समझता है |
7. | इस लिए मैं सब से ज़ालिम क़ौमों को तेरे ख़िलाफ़ भेजूँगा जो अपनी तल्वारों को तेरी ख़ूबसूरती और हिक्मत के ख़िलाफ़ खैंच कर तेरी शान-ओ-शौकत की बेहुरमती करेंगी। |
8. | वह तुझे पाताल में उतारेंगी। समुन्दर के बीच में ही तुझे मार डाला जाएगा। |
9. | क्या तू उस वक़्त अपने क़ातिलों से कहेगा कि मैं ख़ुदा हूँ? हरगिज़ नहीं! अपने क़ातिलों के हाथ में होते वक़्त तू ख़ुदा नहीं बल्कि इन्सान साबित होगा। |
10. | तू अजनबियों के हाथों नामख़्तून की सी वफ़ात पाएगा। यह मेरा, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है’।” |
11. | रब्ब मज़ीद मुझ से हमकलाम हुआ, |
12. | “ऐ आदमज़ाद, सूर के बादशाह पर मातमी गीत गा कर उस से कह, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि तुझ पर कामिलियत का ठप्पा था। तू हिक्मत से भरपूर था, तेरा हुस्न कमाल का था। |
13. | अल्लाह के बाग़-ए-अदन में रह कर तू हर क़िस्म के जवाहिर से सजा हुआ था। लाल , ज़बर्जद , हज्र-उल-क़मर, पुखराज , अक़ीक़-ए-अह्मर और यशब , संग-ए-लाजवर्द , फ़ीरोज़ा और ज़ुमुर्रद सब तुझे आरास्ता करते थे। सब कुछ सोने के काम से मज़ीद ख़ूबसूरत बनाया गया था। जिस दिन तुझे ख़लक़ किया गया उसी दिन यह चीज़ें तेरे लिए तय्यार हुईं। |
14. | मैं ने तुझे अल्लाह के मुक़द्दस पहाड़ पर खड़ा किया था। वहाँ तू करूबी फ़रिश्ते की हैसियत से अपने पर फैलाए पहरादारी करता था, वहाँ तू जलते हुए पत्थरों के दर्मियान ही घूमता फिरता रहा। |
15. | जिस दिन तुझे ख़लक़ किया गया तेरा चाल-चलन बेइल्ज़ाम था, लेकिन अब तुझ में नाइन्साफ़ी पाई गई है। |
16. | तिजारत में काम्याबी की वजह से तू ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद से भर गया और गुनाह करने लगा। यह देख कर मैं ने तुझे अल्लाह के पहाड़ पर से उतार दिया। मैं ने तुझे जो पहरादारी करने वाला फ़रिश्ता था तबाह करके जलते हुए पत्थरों के दर्मियान से निकाल दिया। |
17. | तेरी ख़ूबसूरती तेरे लिए ग़रूर का बाइस बन गई, हाँ तेरी शान-ओ-शौकत ने तुझे इतना फुला दिया कि तेरी हिक्मत जाती रही। इसी लिए मैं ने तुझे ज़मीन पर पटख़ कर दीगर बादशाहों के सामने तमाशा बना दिया। |
18. | अपने बेशुमार गुनाहों और बेइन्साफ़ तिजारत से तू ने अपने मुक़द्दस मक़ामों की बेहुरमती की है। जवाब में मैं ने होने दिया कि आग तेरे दर्मियान से निकल कर तुझे भस्म करे। मैं ने तुझे तमाशा देखने वाले तमाम लोगों के सामने ही राख कर दिया। |
19. | जितनी भी क़ौमैं तुझे जानती थीं उन के रोंगटे खड़े हो गए। तेरा हौलनाक अन्जाम अचानक ही आ गया है। अब से तू कभी नहीं उठेगा’।” |
20. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
21. | “ऐ आदमज़ाद, सैदा की तरफ़ रुख़ करके उस के ख़िलाफ़ नुबुव्वत कर! |
22. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ सैदा, मैं तुझ से निपट लूँगा। तेरे दर्मियान ही मैं अपना जलाल दिखाऊँगा। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब्ब हूँ, क्यूँकि मैं शहर की अदालत करके अपना मुक़द्दस किरदार उन पर ज़ाहिर करूँगा। |
23. | मैं उस में मुहलक वबा फैला कर उस की गलियों में ख़ून बहा दूँगा। उसे चारों तरफ़ से तल्वार घेर लेगी तो उस में फंसे हुए लोग हलाक हो जाएँगे। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब्ब हूँ। |
24. | इस वक़्त इस्राईल के पड़ोसी उसे हक़ीर जानते हैं। अब तक वह उसे चुभने वाले ख़ार और ज़ख़्मी करने वाले काँटे हैं। लेकिन आइन्दा ऐसा नहीं होगा। तब वह जान लेंगे कि मैं रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ हूँ। |
25. | क्यूँकि रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि दीगर अक़्वाम के देखते देखते मैं ज़ाहिर करूँगा कि मैं मुक़द्दस हूँ। क्यूँकि मैं इस्राईलियों को उन अक़्वाम में से निकाल कर जमा करूँगा जहाँ मैं ने उन्हें मुन्तशिर कर दिया था। तब वह अपने वतन में जा बसेंगे, उस मुल्क में जो मैं ने अपने ख़ादिम याक़ूब को दिया था। |
26. | वह हिफ़ाज़त से उस में रह कर घर तामीर करेंगे और अंगूर के बाग़ लगाएँगे। लेकिन जो पड़ोसी उन्हें हक़ीर जानते थे उन की मैं अदालत करूँगा। तब वह जान लेंगे कि मैं रब्ब उन का ख़ुदा हूँ।” |
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