← Ezekiel (26/48) → |
1. | यहूयाकीन बादशाह की जिलावतनी के 11वें साल में रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ। महीने का पहला दिन था। |
2. | “ऐ आदमज़ाद, सूर बेटी यरूशलम की तबाही देख कर ख़ुश हुई है। वह कहती है, ‘लो, अक़्वाम का दरवाज़ा टूट गया है! अब मैं ही इस की ज़िम्मादारियाँ निभाऊँगी। अब जब यरूशलम वीरान है तो मैं ही फ़रोग़ पाऊँगी।’ |
3. | जवाब में रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ सूर, मैं तुझ से निपट लूँगा! मैं मुतअद्दिद क़ौमों को तेरे ख़िलाफ़ भेजूँगा। समुन्दर की ज़बरदस्त मौजों की तरह वह तुझ पर टूट पड़ेंगी। |
4. | वह सूर शहर की फ़सील को ढा कर उस के बुर्जों को ख़ाक में मिला देंगी। तब मैं उसे इतने ज़ोर से झाड़ दूँगा कि मिट्टी तक नहीं रहेगी। ख़ाली चटान ही नज़र आएगी। |
5. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि वह समुन्दर के दर्मियान ऐसी जगह रहेगी जहाँ मछेरे अपने जालों को सुखाने के लिए बिछा देंगे। दीगर अक़्वाम उसे लूट लेंगी, |
6. | और ख़ुश्की पर उस की आबादियाँ तल्वार की ज़द में आ जाएँगी। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब्ब हूँ। |
7. | क्यूँकि रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं बाबल के बादशाह नबूकद्नज़्ज़र को तेरे ख़िलाफ़ भेजूँगा जो घोड़े, रथ, घुड़सवार और बड़ी फ़ौज ले कर शिमाल से तुझ पर हम्ला करेगा। |
8. | ख़ुश्की पर तेरी आबादियों को वह तल्वार से तबाह करेगा, फिर पुश्ते और बुर्जों से तुझे घेर लेगा। उस के फ़ौजी अपनी ढालें उठा कर तुझ पर हम्ला करेंगे। |
9. | बादशाह अपनी क़िलआशिकन मशीनों से तेरी फ़सील को ढा देगा और अपने आलात से तेरे बुर्जों को गिरा देगा। |
10. | जब उस के बेशुमार घोड़े चल पड़ेंगे तो इतनी गर्द उड़ जाएगी कि तू उस में डूब जाएगी। जब बादशाह तेरी फ़सील को तोड़ तोड़ कर तेरे दरवाज़ों में दाख़िल होगा तो तेरी दीवारें घोड़ों और रथों के शोर से लरज़ उठेंगी। |
11. | उस के घोड़ों के खुर तेरी तमाम गलियों को कुचल देंगे, और तेरे बाशिन्दे तल्वार से मर जाएँगे, तेरे मज़्बूत सतून ज़मीनबोस हो जाएँगे। |
12. | दुश्मन तेरी दौलत छीन लेंगे और तेरी तिजारत का माल लूट लेंगे। वह तेरी दीवारों को गिरा कर तेरी शानदार इमारतों को मिस्मार करेंगे, फिर तेरे पत्थर, लकड़ी और मल्बा समुन्दर में फैंक देंगे। |
13. | मैं तेरे गीतों का शोर बन्द करूँगा। आइन्दा तेरे सरोदों की आवाज़ सुनाई नहीं देगी। |
14. | मैं तुझे नंगी चटान में तब्दील करूँगा, और मछेरे तुझे अपने जाल बिछा कर सुखाने के लिए इस्तेमाल करेंगे। आइन्दा तुझे कभी दुबारा तामीर नहीं किया जाएगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
15. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ सूर बेटी, साहिली इलाक़े काँप उठेंगे जब तू धड़ाम से गिर जाएगी, जब हर तरफ़ ज़ख़्मी लोगों की कराहती आवाज़ें सुनाई देंगी, हर गली में क़त्ल-ओ-ग़ारत का शोर मचेगा। |
16. | तब साहिली इलाक़ों के तमाम हुक्मरान अपने तख़्तों से उतर कर अपने चोग़े और शानदार लिबास उतारेंगे। वह मातमी कपड़े पहन कर ज़मीन पर बैठ जाएँगे और बार बार लरज़ उठेंगे, यहाँ तक वह तेरे अन्जाम पर परेशान होंगे। |
17. | तब वह तुझ पर मातम करके गीत गाएँगे, ‘हाय, तू कितने धड़ाम से गिर कर तबाह हुई है! ऐ साहिली शहर, ऐ सूर बेटी, पहले तू अपने बाशिन्दों समेत समुन्दर के दर्मियान रह कर कितनी मश्हूर और ताक़तवर थी। गिर्द-ओ-नवाह के तमाम बाशिन्दे तुझ से दह्शत खाते थे। |
18. | अब साहिली इलाक़े तेरे अन्जाम को देख कर थरथरा रहे हैं। समुन्दर के जज़ीरे तेरे ख़ातमे की ख़बर सुन कर दह्शतज़दा हो गए हैं।’ |
19. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ सूर बेटी, मैं तुझे वीरान-ओ-सुन्सान करूँगा। तू उन दीगर शहरों की मानिन्द बन जाएगी जो नेस्त-ओ-नाबूद हो गए हैं। मैं तुझ पर सैलाब लाऊँगा, और गहरा पानी तुझे ढाँप देगा। |
20. | मैं तुझे पाताल में उतरने दूँगा, और तू उस क़ौम के पास पहुँचेगी जो क़दीम ज़माने से ही वहाँ बसती है। तब तुझे ज़मीन की गहराइयों में रहना पड़ेगा, वहाँ जहाँ क़दीम ज़मानों के खंडरात हैं। तू मुर्दों के मुल्क में रहेगी और कभी ज़िन्दगी के मुल्क में वापस नहीं आएगी, न वहाँ अपना मक़ाम दुबारा हासिल करेगी। |
21. | मैं होने दूँगा कि तेरा अन्जाम दह्शतनाक होगा, और तू सरासर तबाह हो जाएगी। लोग तेरा खोज लगाएँगे लेकिन तुझे कभी नहीं पाएँगे। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।” |
← Ezekiel (26/48) → |