Ezekiel (20/48)  

1. यहूदाह के बादशाह यहूयाकीन की जिलावतनी के सातवें साल में इस्राईली क़ौम के कुछ बुज़ुर्ग मेरे पास आए ताकि रब्ब से कुछ दरयाफ़्त करें। पाँचवें महीने का दसवाँ दिन था। वह मेरे सामने बैठ गए।
2. तब रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ,
3. “ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के बुज़ुर्गों को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि क्या तुम मुझ से दरयाफ़्त करने आए हो? मेरी हयात की क़सम, मैं तुमहें कोई जवाब नहीं दूँगा! यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।’
4. ऐ आदमज़ाद, क्या तू उन की अदालत करने के लिए तय्यार है? फिर उन की अदालत कर! उन्हें उन के बापदादा की क़ाबिल-ए-घिन हर्कतों का इह्सास दिला।
5. उन्हें बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि इस्राईली क़ौम को चुनते वक़्त मैं ने अपना हाथ उठा कर उस से क़सम खाई। मुल्क-ए-मिस्र में ही मैं ने अपने आप को उन पर ज़ाहिर किया और क़सम खा कर कहा कि मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
6. यह मेरा अटल वादा है कि मैं तुम्हें मिस्र से निकाल कर एक मुल्क में पहुँचा दूँगा जिस का जाइज़ा मैं तुम्हारी ख़ातिर ले चुका हूँ। यह मुल्क दीगर तमाम ममालिक से कहीं ज़ियादा ख़ूबसूरत है, और इस में दूध और शहद की कस्रत है।
7. उस वक़्त मैं ने इस्राईलियों से कहा, “हर एक अपने घिनौने बुतों को फैंक दे! मिस्र के देवताओं से लिपटे न रहो, क्यूँकि उन से तुम अपने आप को नापाक कर रहे हो। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।”
8. लेकिन वह मुझ से बाग़ी हुए और मेरी सुनने के लिए तय्यार न थे। किसी ने भी अपने बुतों को न फैंका बल्कि वह इन घिनौनी चीज़ों से लिपटे रहे और मिस्री देवताओं को तर्क न किया। यह देख कर मैं वहीं मिस्र में अपना ग़ज़ब उन पर नाज़िल करना चाहता था। उसी वक़्त मैं अपना ग़ुस्सा उन पर उतारना चाहता था।
9. लेकिन मैं बाज़ रहा, क्यूँकि मैं नहीं चाहता था कि जिन अक़्वाम के दर्मियान इस्राईली रहते थे उन के सामने मेरे नाम की बेहुरमती हो जाए। क्यूँकि उन क़ौमों की मौजूदगी में ही मैं ने अपने आप को इस्राईलियों पर ज़ाहिर करके वादा किया था कि मैं तुम्हें मिस्र से निकाल लाऊँगा।
10. चुनाँचे मैं उन्हें मिस्र से निकाल कर रेगिस्तान में लाया।
11. वहाँ मैं ने उन्हें अपनी हिदायात दीं, वह अह्काम जिन की पैरवी करने से इन्सान जीता रहता है।
12. मैं ने उन्हें सबत का दिन भी अता किया। मैं चाहता था कि आराम का यह दिन मेरे उन के साथ अह्द का निशान हो, कि इस से लोग जान लें कि मैं रब्ब ही उन्हें मुक़द्दस बनाता हूँ।
13. लेकिन रेगिस्तान में भी इस्राईली मुझ से बाग़ी हुए। उन्हों ने मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िन्दगी न गुज़ारी बल्कि मेरे अह्काम को मुस्तरद कर दिया, हालाँकि इन्सान उन की पैरवी करने से ही जीता रहता है। उन्हों ने सबत की भी बड़ी बेहुरमती की। यह देख कर मैं अपना ग़ज़ब उन पर नाज़िल करके उन्हें वहीं रेगिस्तान में हलाक करना चाहता था।
14. ताहम मैं बाज़ रहा, क्यूँकि मैं नहीं चाहता था कि उन अक़्वाम के सामने मेरे नाम की बेहुरमती हो जाए जिन के देखते देखते मैं इस्राईलियों को मिस्र से निकाल लाया था।
15. चुनाँचे मैं ने यह करने के बजाय अपना हाथ उठा कर क़सम खाई, “मैं तुम्हें उस मुल्क में नहीं ले जाऊँगा जो मैं ने तुम्हारे लिए मुक़र्रर किया था, हालाँकि उस में दूध और शहद की कस्रत है और वह दीगर तमाम ममालिक की निस्बत कहीं ज़ियादा ख़ूबसूरत है।
16. क्यूँकि तुम ने मेरी हिदायात को रद्द करके मेरे अह्काम के मुताबिक़ ज़िन्दगी न गुज़ारी बल्कि सबत के दिन की भी बेहुरमती की। अभी तक तुम्हारे दिल बुतों से लिपटे रहते हैं।”
17. लेकिन एक बार फिर मैं ने उन पर तरस खाया। न मैं ने उन्हें तबाह किया, न पूरी क़ौम को रेगिस्तान में मिटा दिया।
18. रेगिस्तान में ही मैं ने उन के बेटों को आगाह किया, “अपने बापदादा के क़वाइद के मुताबिक़ ज़िन्दगी मत गुज़ारना। न उन के अह्काम पर अमल करो, न उन के बुतों की पूजा से अपने आप को नापाक करो।
19. मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारो और एहतियात से मेरे अह्काम पर अमल करो।
20. मेरे सबत के दिन आराम करके उन्हें मुक़द्दस मानो ताकि वह मेरे साथ बंधे हुए अह्द का निशान रहें। तब तुम जान लोगे कि मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।”
21. लेकिन यह बच्चे भी मुझ से बाग़ी हुए। न उन्हों ने मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी, न एहतियात से मेरे अह्काम पर अमल किया, हालाँकि इन्सान उन की पैरवी करने से ही जीता रहता है। उन्हों ने मेरे सबत के दिनों की भी बेहुरमती की। यह देख कर मैं अपना ग़ुस्सा उन पर नाज़िल करके उन्हें वहीं रेगिस्तान में तबाह करना चाहता था।
22. लेकिन एक बार फिर मैं अपने हाथ को रोक कर बाज़ रहा, क्यूँकि मैं नहीं चाहता था कि उन अक़्वाम के सामने मेरे नाम की बेहुरमती हो जाए जिन के देखते देखते मैं इस्राईलियों को मिस्र से निकाल लाया था।
23. चुनाँचे मैं ने यह करने के बजाय अपना हाथ उठा कर क़सम खाई, “मैं तुम्हें दीगर अक़्वाम-ओ-ममालिक में मुन्तशिर करूँगा,
24. क्यूँकि तुम ने मेरे अह्काम की पैरवी नहीं की बल्कि मेरी हिदायात को रद्द कर दिया। गो मैं ने सबत का दिन मानने का हुक्म दिया था तो भी तुम ने आराम के इस दिन की बेहुरमती की। और यह भी काफ़ी नहीं था बल्कि तुम अपने बापदादा के बुतों के भी पीछे लगे रहे।”
25. तब मैं ने उन्हें ऐसे अह्काम दिए जो अच्छे नहीं थे, ऐसी हिदायात जो इन्सान को जीने नहीं देतीं।
26. नीज़, मैं ने होने दिया कि वह अपने पहलौठों को क़ुर्बान करके अपने आप को नापाक करें। मक़्सद यह था कि उन के रोंगटे खड़े हो जाएँ और वह जान लें कि मैं ही रब्ब हूँ।’
27. चुनाँचे ऐ आदमज़ाद, इस्राईली क़ौम को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि तुम्हारे बापदादा ने इस में भी मेरी तक्फ़ीर की कि वह मुझ से बेवफ़ा हुए।
28. मैं ने तो उन से मुल्क-ए-इस्राईल देने की क़सम खा कर वादा किया था। लेकिन जूँ ही मैं उन्हें उस में लाया तो जहाँ भी कोई ऊँची जगह या सायादार दरख़्त नज़र आया वहाँ वह अपने जानवरों को ज़बह करने, तैश दिलाने वाली क़ुर्बानियाँ चढ़ाने, ख़ुश्बूदार बख़ूर जलाने और मै की नज़रें पेश करने लगे।
29. मैं ने उन का सामना करके कहा, “यह किस तरह की ऊँची जगहें हैं जहाँ तुम जाते हो?” आज तक यह क़ुर्बानगाहें ऊँची जगहें कहलाती हैं।’
30. ऐ आदमज़ाद, इस्राईली क़ौम को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि क्या तुम अपने बापदादा की हर्कतें अपना कर अपने आप को नापाक करना चाहते हो? क्या तुम भी उन के घिनौने बुतों के पीछे लग कर ज़िना करना चाहते हो?
31. क्यूँकि अपने नज़राने पेश करने और अपने बच्चों को क़ुर्बान करने से तुम अपने आप को अपने बुतों से आलूदा करते हो। ऐ इस्राईली क़ौम, आज तक यही तुम्हारा रवय्या है! तो फिर मैं क्या करूँ? क्या मुझे तुम्हें जवाब देना चाहिए जब तुम मुझ से कुछ दरयाफ़्त करने के लिए आते हो? हरगिज़ नहीं! मेरी हयात की क़सम, मैं तुमहें जवाब में कुछ नहीं बताऊँगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
32. तुम कहते हो, “हम दीगर क़ौमों की मानिन्द होना चाहते, दुनिया के दूसरे ममालिक की तरह लकड़ी और पत्थर की चीज़ों की इबादत करना चाहते हैं।” गो यह ख़याल तुम्हारे ज़हनों में उभर आया है, लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा।
33. रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मेरी हयात की क़सम, मैं बड़े ग़ुस्से और ज़ोरदार तरीक़े से अपनी क़ुद्रत का इज़्हार करके तुम पर हुकूमत करूँगा।
34. मैं बड़े ग़ुस्से और ज़ोरदार तरीक़े से अपनी क़ुद्रत का इज़्हार करके तुम्हें उन क़ौमों और ममालिक से निकाल कर जमा करूँगा जहाँ तुम मुन्तशिर हो गए हो।
35. तब मैं तुमहें अक़्वाम के रेगिस्तान में ला कर तुम्हारे रू-ब-रू तुम्हारी अदालत करूँगा।
36. जिस तरह मैं ने तुम्हारे बापदादा की अदालत मिस्र के रेगिस्तान में की उसी तरह तुम्हारी भी अदालत करूँगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
37. जिस तरह गल्लाबान भेड़-बक्रियों को अपनी लाठी के नीचे से गुज़रने देता है ताकि उन्हें गिन ले उसी तरह मैं तुमहें अपनी लाठी के नीचे से गुज़रने दूँगा और तुम्हें अह्द के बंधन में शरीक करूँगा।
38. जो बेवफ़ा हो कर मुझ से बाग़ी हो गए हैं उन्हें मैं तुम से दूर कर दूँगा ताकि तुम पाक हो जाओ। अगरचि मैं उन्हें भी उन दीगर ममालिक से निकाल लाऊँगा जिन में वह रह रहे हैं तो भी वह मुल्क-ए-इस्राईल में दाख़िल नहीं होंगे। तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ।
39. ऐ इस्राईली क़ौम, तुम्हारे बारे में रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि जाओ, हर एक अपने बुतों की इबादत करता जाए! लेकिन एक वक़्त आएगा जब तुम ज़रूर मेरी सुनोगे, जब तुम अपनी क़ुर्बानियों और बुतों की पूजा से मेरे मुक़द्दस नाम की बेहुरमती नहीं करोगे।
40. क्यूँकि रब्ब फ़रमाता है कि आइन्दा पूरी इस्राईली क़ौम मेरे मुक़द्दस पहाड़ यानी इस्राईल के बुलन्द पहाड़ सिय्यून पर मेरी ख़िदमत करेगी। वहाँ मैं ख़ुशी से उन्हें क़बूल करूँगा, और वहाँ मैं तुम्हारी क़ुर्बानियाँ, तुम्हारे पहले फल और तुम्हारे तमाम मुक़द्दस हदिए तलब करूँगा।
41. मेरे तुम्हें उन अक़्वाम और ममालिक से निकाल कर जमा करने के बाद जिन में तुम मुन्तशिर हो गए हो तुम इस्राईल में मुझे क़ुर्बानियाँ पेश करोगे, और मैं उन की ख़ुश्बू सूँघ कर ख़ुशी से तुम्हें क़बूल करूँगा। यूँ मैं तुम्हारे ज़रीए दीगर अक़्वाम पर ज़ाहिर करूँगा कि मैं क़ुद्दूस ख़ुदा हूँ।
42. तब जब मैं तुम्हें मुल्क-ए-इस्राईल यानी उस मुल्क में लाऊँगा जिस का वादा मैं ने क़सम खा कर तुम्हारे बापदादा से किया था तो तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ।
43. वहाँ तुम्हें अपना वह चाल-चलन और अपनी वह हर्कतें याद आएँगी जिन से तुम ने अपने आप को नापाक कर दिया था, और तुम अपने तमाम बुरे आमाल के बाइस अपने आप से घिन खाओगे।
44. ऐ इस्राईली क़ौम, तुम जान लोगे कि मैं रब्ब हूँ जब मैं अपने नाम की ख़ातिर नर्मी से तुम से पेश आऊँगा, हालाँकि तुम अपने बुरे सुलूक और तबाहकुन हर्कतों की वजह से सख़्त सज़ा के लाइक़ थे। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है’।”
45. रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ,
46. “ऐ आदमज़ाद, जुनूब की तरफ़ रुख़ करके उस के ख़िलाफ़ नुबुव्वत कर! दश्त-ए-नजब के जंगल के ख़िलाफ़ नुबुव्वत करके
47. उसे बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं तुझ में ऐसी आग लगाने वाला हूँ जो तेरे तमाम दरख़्तों को भस्म करेगी, ख़्वाह वह हरे-भरे या सूखे हुए हों। इस आग के भड़कते शोले नहीं बुझेंगे बल्कि जुनूब से ले कर शिमाल तक हर चिहरे को झुलसा देंगे।
48. हर एक को नज़र आएगा कि यह आग मेरे, रब्ब के हाथ ने लगाई है। यह बुझेगी नहीं’।”
49. यह सुन कर मैं बोला, “ऐ क़ादिर-ए-मुतलक़, यह बताने का क्या फ़ाइदा है? लोग पहले से मेरे बारे में कहते हैं कि यह हमेशा नाक़ाबिल-ए-समझ तम्सीलें पेश करता है।”

  Ezekiel (20/48)