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1. | वह बोला, “ऐ आदमज़ाद, खड़ा हो जा! मैं तुझ से बात करना चाहता हूँ।” |
2. | जूँ ही वह मुझ से हमकलाम हुआ तो रूह ने मुझ में आ कर मुझे खड़ा कर दिया। फिर मैं ने आवाज़ को यह कहते हुए सुना, |
3. | “ऐ आदमज़ाद, मैं तुझे इस्राईलियों के पास भेज रहा हूँ, एक ऐसी सरकश क़ौम के पास जिस ने मुझ से बग़ावत की है। शुरू से ले कर आज तक वह अपने बापदादा समेत मुझ से बेवफ़ा रहे हैं। |
4. | जिन लोगों के पास मैं तुझे भेज रहा हूँ वह बेशर्म और ज़िद्दी हैं। उन्हें वह कुछ सुना दे जो रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है। |
5. | ख़्वाह यह बाग़ी सुनें या न सुनें, वह ज़रूर जान लेंगे कि हमारे दर्मियान नबी बरपा हुआ है। |
6. | ऐ आदमज़ाद, उन से या उन की बातों से मत डरना। गो तू काँटेदार झाड़ियों से घिरा रहेगा और तुझे बिच्छूओं के दर्मियान बसना पड़ेगा तो भी ख़ौफ़ज़दा न हो। न उन की बातों से ख़ौफ़ खाना, न उन के रवय्ये से दह्शत खाना। क्यूँकि यह क़ौम सरकश है। |
7. | ख़्वाह यह सुनें या न सुनें लाज़िम है कि तू मेरे पैग़ामात उन्हें सुनाए। क्यूँकि वह बाग़ी ही हैं। |
8. | ऐ आदमज़ाद, जब मैं तुझ से हमकलाम हूँगा तो ध्यान दे और इस सरकश क़ौम की तरह बग़ावत मत करना। अपने मुँह को खोल कर वह कुछ खा जो मैं तुझे खिलाता हूँ।” |
9. | तब एक हाथ मेरी तरफ़ बढ़ा हुआ नज़र आया जिस में तूमार था। |
10. | तूमार को खोला गया तो मैं ने देखा कि उस में आगे भी और पीछे भी मातम और आह-ओ-ज़ारी क़लमबन्द हुई है। |
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