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1. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
2. | “तुम लोग मुल्क-ए-इस्राईल के लिए यह कहावत क्यूँ इस्तेमाल करते हो, ‘वालिदैन ने खट्टे अंगूर खाए, लेकिन उन के बच्चों ही के दाँत खट्टे हो गए हैं।’ |
3. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मेरी हयात की क़सम, आइन्दा तुम यह कहावत इस्राईल में इस्तेमाल नहीं करोगे! |
4. | हर इन्सान की जान मेरी ही है, ख़्वाह बाप की हो या बेटे की। जिस ने गुनाह किया है सिर्फ़ उसी को सज़ा-ए-मौत मिलेगी। |
5. | लेकिन उस रास्तबाज़ का मुआमला फ़र्क़ है जो रास्ती और इन्साफ़ की राह पर चलते हुए |
6. | न ऊँची जगहों की नाजाइज़ क़ुर्बानियाँ खाता, न इस्राईली क़ौम के बुतों की पूजा करता है। न वह अपने पड़ोसी की बीवी की बेहुरमती करता, न माहवारी के दौरान किसी औरत से हमबिसतर होता है। |
7. | वह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता। अगर कोई ज़मानत दे कर उस से क़र्ज़ा ले तो पैसे वापस मिलने पर वह ज़मानत वापस कर देता है। वह चोरी नहीं करता बल्कि भूकों को खाना खिलाता और नंगों को कपड़े पहनाता है। |
8. | वह किसी से भी सूद नहीं लेता। वह ग़लत काम करने से गुरेज़ करता और झगड़ने वालों का मुन्सिफ़ाना फ़ैसला करता है। |
9. | वह मेरे क़वाइद के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता और वफ़ादारी से मेरे अह्काम पर अमल करता है। ऐसा शख़्स रास्तबाज़ है, और वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
10. | अब फ़र्ज़ करो कि उस का एक ज़ालिम बेटा है जो क़ातिल है और वह कुछ करता है |
11. | जिस से उस का बाप गुरेज़ करता था। वह ऊँची जगहों की नाजाइज़ क़ुर्बानियाँ खाता, अपने पड़ोसी की बीवी की बेहुरमती करता, |
12. | ग़रीबों और ज़रूरतमन्दों पर ज़ुल्म करता और चोरी करता है। जब क़र्ज़दार क़र्ज़ा अदा करे तो वह उसे ज़मानत वापस नहीं देता। वह बुतों की पूजा बल्कि कई क़िस्म की मक्रूह हर्कतें करता है। |
13. | वह सूद भी लेता है। क्या ऐसा आदमी ज़िन्दा रहेगा? हरगिज़ नहीं! इन तमाम मक्रूह हर्कतों की बिना पर उसे सज़ा-ए-मौत दी जाएगी। वह ख़ुद अपने गुनाहों का ज़िम्मादार ठहरेगा। |
14. | लेकिन फ़र्ज़ करो कि इस बेटे के हाँ बेटा पैदा हो जाए। गो बेटा सब कुछ देखता है जो उस के बाप से सरज़द होता है तो भी वह बाप के ग़लत नमूने पर नहीं चलता। |
15. | न वह ऊँची जगहों की नाजाइज़ क़ुर्बानियाँ खाता, न इस्राईली क़ौम के बुतों की पूजा करता है। वह अपने पड़ोसी की बीवी की बेहुरमती नहीं करता |
16. | और किसी पर भी ज़ुल्म नहीं करता। अगर कोई ज़मानत दे कर उस से क़र्ज़ा ले तो पैसे वापस मिलने पर वह ज़मानत लौटा देता है। वह चोरी नहीं करता बल्कि भूकों को खाना खिलाता और नंगों को कपड़े पहनाता है। |
17. | वह ग़लत काम करने से गुरेज़ करके सूद नहीं लेता। वह मेरे क़वाइद के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता और मेरे अह्काम पर अमल करता है। ऐसे शख़्स को अपने बाप की सज़ा नहीं भुगतनी पड़ेगी। उसे सज़ा-ए-मौत नहीं मिलेगी, हालाँकि उस के बाप ने मज़्कूरा गुनाह किए हैं। नहीं, वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा। |
18. | लेकिन उस के बाप को ज़रूर उस के गुनाहों की सज़ा मिलेगी, वह यक़ीनन मरेगा। क्यूँकि उस ने लोगों पर ज़ुल्म किया, अपने भाई से चोरी की और अपनी ही क़ौम के दर्मियान बुरा काम किया। |
19. | लेकिन तुम लोग एतिराज़ करते हो, ‘बेटा बाप के क़ुसूर में क्यूँ न शरीक हो? उसे भी बाप की सज़ा भुगतनी चाहिए।’ जवाब यह है कि बेटा तो रास्तबाज़ और इन्साफ़ की राह पर चलता रहा है, वह एहतियात से मेरे तमाम अह्काम पर अमल करता रहा है। इस लिए लाज़िम है कि वह ज़िन्दा रहे। |
20. | जिस से गुनाह सरज़द हुआ है सिर्फ़ उसे ही मरना है। लिहाज़ा न बेटे को बाप की सज़ा भुगतनी पड़ेगी, न बाप को बेटे की। रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी का अज्र पाएगा, और बेदीन अपनी बेदीनी का। |
21. | तो भी अगर बेदीन आदमी अपने गुनाहों को तर्क करे और मेरे तमाम क़वाइद के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ार कर रास्तबाज़ी और इन्साफ़ की राह पर चल पड़े तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, वह मरेगा नहीं। |
22. | जितने भी ग़लत काम उस से सरज़द हुए हैं उन का हिसाब मैं नहीं लूँगा बल्कि उस के रास्तबाज़ चाल-चलन का लिहाज़ करके उसे ज़िन्दा रहने दूँगा। |
23. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि क्या मैं बेदीन की हलाकत देख कर ख़ुश होता हूँ? हरगिज़ नहीं, बल्कि मैं चाहता हूँ कि वह अपनी बुरी राहों को छोड़ कर ज़िन्दा रहे। |
24. | इस के बरअक्स क्या रास्तबाज़ ज़िन्दा रहेगा अगर वह अपनी रास्तबाज़ ज़िन्दगी तर्क करे और गुनाह करके वही क़ाबिल-ए-घिन हर्कतें करने लगे जो बेदीन करते हैं? हरगिज़ नहीं! जितना भी अच्छा काम उस ने किया उस का मैं ख़याल नहीं करूँगा बल्कि उस की बेवफ़ाई और गुनाहों का। उन ही की वजह से उसे सज़ा-ए-मौत दी जाएगी। |
25. | लेकिन तुम लोग दावा करते हो कि जो कुछ रब्ब करता है वह ठीक नहीं। ऐ इस्राईली क़ौम, सुनो! यह कैसी बात है कि मेरा अमल ठीक नहीं? अपने ही आमाल पर ग़ौर करो! वही दुरुस्त नहीं। |
26. | अगर रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ ज़िन्दगी तर्क करके गुनाह करे तो वह इस बिना पर मर जाएगा। अपनी नारास्ती की वजह से ही वह मर जाएगा। |
27. | इस के बरअक्स अगर बेदीन अपनी बेदीन ज़िन्दगी तर्क करके रास्ती और इन्साफ़ की राह पर चलने लगे तो वह अपनी जान को छुड़ाएगा। |
28. | क्यूँकि अगर वह अपना क़ुसूर तस्लीम करके अपने गुनाहों से मुँह मोड़ ले तो वह मरेगा नहीं बल्कि ज़िन्दा रहेगा। |
29. | लेकिन इस्राईली क़ौम दावा करती है कि जो कुछ रब्ब करता है वह ठीक नहीं। ऐ इस्राईली क़ौम, यह कैसी बात है कि मेरा अमल ठीक नहीं? अपने ही आमाल पर ग़ौर करो! वही दुरुस्त नहीं। |
30. | इस लिए रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ इस्राईल की क़ौम, मैं तेरी अदालत करूँगा, हर एक का उस के कामों के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करूँगा। चुनाँचे ख़बरदार! तौबा करके अपनी बेवफ़ा हर्कतों से मुँह फेरो, वर्ना तुम गुनाह में फंस कर गिर जाओगे। |
31. | अपने तमाम ग़लत काम तर्क करके नया दिल और नई रूह अपना लो। ऐ इस्राईलियो, तुम क्यूँ मर जाओ? |
32. | क्यूँकि मैं किसी की मौत से ख़ुश नहीं होता। चुनाँचे तौबा करो, तब ही तुम ज़िन्दा रहोगे। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
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