Ezekiel (14/48)  

1. इस्राईल के कुछ बुज़ुर्ग मुझ से मिलने आए और मेरे सामने बैठ गए।
2. तब रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ,
3. “ऐ आदमज़ाद, इन आदमियों के दिल अपने बुतों से लिपटे रहते हैं। जो चीज़ें उन के लिए ठोकर और गुनाह का बाइस हैं उन्हें उन्हों ने अपने मुँह के सामने ही रखा है। तो फिर क्या मुनासिब है कि मैं उन्हें जवाब दूँ जब वह मुझ से दरयाफ़्त करने आते हैं?
4. उन्हें बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है, यह लोग अपने बुतों से लिपटे रहते और वह चीज़ें अपने मुँह के सामने रखते हैं जो ठोकर और गुनाह का बाइस हैं। साथ साथ यह नबी के पास भी जाते हैं ताकि मुझ से मालूमात हासिल करें। जो भी इस्राईली ऐसा करे उसे मैं ख़ुद जो रब्ब हूँ जवाब दूँगा, ऐसा जवाब जो उस के मुतअद्दिद बुतों के ऐन मुताबिक़ होगा।
5. मैं उन से ऐसा सुलूक करूँगा ताकि इस्राईली क़ौम के दिल को मज़्बूती से पकड़ लूँ। क्यूँकि अपने बुतों की ख़ातिर सब के सब मुझ से दूर हो गए हैं।’
6. चुनाँचे इस्राईली क़ौम को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि तौबा करो! अपने बुतों और तमाम मक्रूह रस्म-ओ-रिवाज से मुँह मोड़ कर मेरे पास वापस आ जाओ।
7. उस के अन्जाम पर ध्यान दो जो ऐसा नहीं करेगा, ख़्वाह वह इस्राईली या इस्राईल में रहने वाला परदेसी हो। अगर वह मुझ से दूर हो कर अपने बुतों से लिपट जाए और वह चीज़ें अपने सामने रखे जो ठोकर और गुनाह का बाइस हैं तो जब वह नबी की मारिफ़त मुझ से मालूमात हासिल करने की कोशिश करेगा तो मैं, रब्ब उसे मुनासिब जवाब दूँगा।
8. मैं ऐसे शख़्स का सामना करके उस से यूँ निपट लूँगा कि वह दूसरों के लिए इब्रतअंगेज़ मिसाल बन जाएगा। मैं उसे यूँ मिटा दूँगा कि मेरी क़ौम में उस का नाम-ओ-निशान तक नहीं रहेगा। तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ।
9. अगर किसी नबी को कुछ सुनाने पर उकसाया गया जो मेरी तरफ़ से नहीं था तो यह इस लिए हुआ कि मैं, रब्ब ने ख़ुद उसे उकसाया। ऐसे नबी के ख़िलाफ़ मैं अपना हाथ उठा कर उसे यूँ तबाह करूँगा कि मेरी क़ौम में उस का नाम-ओ-निशान तक नहीं रहेगा।
10. दोनों को उन के क़ुसूर की मुनासिब सज़ा मिलेगी, नबी को भी और उसे भी जो हिदायत पाने के लिए उस के पास आता है।
11. तब इस्राईली क़ौम न मुझ से दूर हो कर आवारा फिरेगी, न अपने आप को इन तमाम गुनाहों से आलूदा करेगी। वह मेरी क़ौम होंगे, और मैं उन का ख़ुदा हूँगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है’।”
12. रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ,
13. “ऐ आदमज़ाद, फ़र्ज़ कर कि कोई मुल्क बेवफ़ा हो कर मेरा गुनाह करे, और मैं काल के ज़रीए उसे सज़ा दे कर उस में से इन्सान-ओ-हैवान मिटा डालूँ।
14. ख़्वाह मुल्क में नूह, दान्याल और अय्यूब क्यूँ न बसते तो भी मुल्क न बचता। यह आदमी अपनी रास्तबाज़ी से सिर्फ़ अपनी ही जानों को बचा सकते। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
15. या फ़र्ज़ कर कि मैं मज़्कूरा मुल्क में वहशी दरिन्दों को भेज दूँ जो इधर उधर फिर कर सब को फाड़ खाएँ। मुल्क वीरान-ओ-सुन्सान हो जाए और जंगली दरिन्दों की वजह से कोई उस में से गुज़रने की जुरअत न करे।
16. मेरी हयात की क़सम, ख़्वाह मज़्कूरा तीन रास्तबाज़ आदमी मुल्क में क्यूँ न बसते तो भी अकेले ही बचते। वह अपने बेटे-बेटियों को भी बचा न सकते बल्कि पूरा मुल्क वीरान-ओ-सुन्सान होता। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
17. या फ़र्ज़ कर कि मैं मज़्कूरा मुल्क को जंग से तबाह करूँ, मैं तल्वार को हुक्म दूँ कि मुल्क में से गुज़र कर इन्सान-ओ-हैवान को नेस्त-ओ-नाबूद कर दे।
18. मेरी हयात की क़सम, ख़्वाह मज़्कूरा तीन रास्तबाज़ आदमी मुल्क में क्यूँ न बसते वह अकेले ही बचते। वह अपने बेटे-बेटियों को भी बचा न सकते। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
19. या फ़र्ज़ कर कि मैं अपना ग़ुस्सा मुल्क पर उतार कर उस में मुहलक वबा यूँ फैला दूँ कि इन्सान-ओ-हैवान सब के सब मर जाएँ।
20. मेरी हयात की क़सम, ख़्वाह नूह, दान्याल और अय्यूब मुल्क में क्यूँ न बसते तो भी वह अपने बेटे-बेटियों को बचा न सकते। वह अपनी रास्तबाज़ी से सिर्फ़ अपनी ही जानों को बचाते। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
21. अब यरूशलम के बारे में रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान सुनो! यरूशलम का कितना बुरा हाल होगा जब मैं अपनी चार सख़्त सज़ाएँ उस पर नाज़िल करूँगा। क्यूँकि इन्सान-ओ-हैवान जंग, काल, वहशी दरिन्दों और मुहलक वबा की ज़द में आ कर हलाक हो जाएँगे।
22. तो भी चन्द एक बचेंगे, कुछ बेटे-बेटियाँ जिलावतन हो कर बाबल में तुम्हारे पास आएँगे। जब तुम उन का बुरा चाल-चलन और हर्कतें देखोगे तो तुम्हें तसल्ली मिलेगी कि हर आफ़त मुनासिब थी जो मैं यरूशलम पर लाया।
23. उन का चाल-चलन और हर्कतें देख कर तुम्हें तसल्ली मिलेगी, क्यूँकि तुम जान लोगे कि जो कुछ भी मैं ने यरूशलम के साथ किया वह बिलावजह नहीं था। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।”

  Ezekiel (14/48)