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1. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
2. | “ऐ आदमज़ाद, तू एक सरकश क़ौम के दर्मियान रहता है। गो उन की आँखें हैं तो भी कुछ नहीं देखते, गो उन के कान हैं तो भी कुछ नहीं सुनते। क्यूँकि यह क़ौम हटधर्म है। |
3. | ऐ आदमज़ाद, अब अपना सामान यूँ लपेट ले जिस तरह तुझे जिलावतन किया जा रहा हो। फिर दिन के वक़्त और उन के देखते देखते घर से रवाना हो कर किसी और जगह चला जा। शायद उन्हें समझ आए कि उन्हें जिलावतन होना है, हालाँकि यह क़ौम सरकश है। |
4. | दिन के वक़्त उन के देखते देखते अपना सामान घर से निकाल ले, यूँ जैसे तू जिलावतनी के लिए तय्यारियाँ कर रहा हो। फिर शाम के वक़्त उन की मौजूदगी में जिलावतन का सा किरदार अदा करके रवाना हो जा। |
5. | घर से निकलने के लिए दीवार में सूराख़ बना, फिर अपना सारा सामान उस में से बाहर ले जा। सब इस के गवाह हों। |
6. | उन के देखते देखते अंधेरे में अपना सामान कंधे पर रख कर वहाँ से निकल जा। लेकिन अपना मुँह ढाँप ले ताकि तू मुल्क को देख न सके। लाज़िम है कि तू यह सब कुछ करे, क्यूँकि मैं ने मुक़र्रर किया है कि तू इस्राईली क़ौम को आगाह करने का निशान बन जाए।” |
7. | मैं ने वैसा ही किया जैसा रब्ब ने मुझे हुक्म दिया था। मैं ने अपना सामान यूँ लपेट लिया जैसे मुझे जिलावतन किया जा रहा हो। दिन के वक़्त मैं उसे घर से बाहर ले गया, शाम को मैं ने अपने हाथों से दीवार में सूराख़ बना लिया। लोगों के देखते देखते मैं सामान को अपने कंधे पर उठा कर वहाँ से निकल आया। उतने में अंधेरा हो गया था। |
8. | सुब्ह के वक़्त रब्ब का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, |
9. | “ऐ आदमज़ाद, इस हटधर्म क़ौम इस्राईल ने तुझ से पूछा कि तू क्या कर रहा है? |
10. | उन्हें जवाब दे, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि इस पैग़ाम का ताल्लुक़ यरूशलम के रईस और शहर में बसने वाले तमाम इस्राईलियों से है।’ |
11. | उन्हें बता, ‘मैं तुमहें आगाह करने का निशान हूँ। जो कुछ मैं ने किया वह तुम्हारे साथ हो जाएगा। तुम क़ैदी बन कर जिलावतन हो जाओगे। |
12. | जो रईस तुम्हारे दर्मियान है वह अंधेरे में अपना सामान कंधे पर उठा कर चला जाएगा। दीवार में सूराख़ बनाया जाएगा ताकि वह निकल सके। वह अपना मुँह ढाँप लेगा ताकि मुल्क को न देख सके। |
13. | लेकिन मैं अपना जाल उस पर डाल दूँगा, और वह मेरे फंदे में फंस जाएगा। मैं उसे बाबल लाऊँगा जो बाबलियों के मुल्क में है, अगरचि वह उसे अपनी आँखों से नहीं देखेगा। वहीं वह वफ़ात पाएगा। |
14. | जितने भी मुलाज़िम और दस्ते उस के इर्दगिर्द होंगे उन सब को मैं हवा में उड़ा कर चारों तरफ़ मुन्तशिर कर दूँगा। अपनी तल्वार को मियान से खैंच कर मैं उन के पीछे पड़ा रहूँगा। |
15. | जब मैं उन्हें दीगर अक़्वाम और मुख़्तलिफ़ ममालिक में मुन्तशिर करूँगा तो वह जान लेंगे कि मैं ही रब्ब हूँ। |
16. | लेकिन मैं उन में से चन्द एक को बचा कर तल्वार, काल और मुहलक वबा की ज़द में नहीं आने दूँगा। क्यूँकि लाज़िम है कि जिन अक़्वाम में भी वह जा बसें वहाँ वह अपनी मक्रूह हर्कतें सुनाएँ। तब यह अक़्वाम भी जान लेंगी कि मैं ही रब्ब हूँ’।” |
17. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
18. | “ऐ आदमज़ाद, खाना खाते वक़्त अपनी रोटी को लरज़ते हुए खा और अपने पानी को परेशानी के मारे थरथराते हुए पी। |
19. | साथ साथ उम्मत को बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मुल्क-ए-इस्राईल के शहर यरूशलम के बाशिन्दे परेशानी में अपना खाना खाएँगे और दह्शतज़दा हालत में अपना पानी पिएँगे, क्यूँकि उन का मुल्क तबाह और हर बर्कत से ख़ाली हो जाएगा। और सबब उस के बाशिन्दों का ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद होगा। |
20. | जिन शहरों में लोग अब तक आबाद हैं वह बर्बाद हो जाएँगे, मुल्क वीरान-ओ-सुन्सान हो जाएगा। तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ’।” |
21. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
22. | “ऐ आदमज़ाद, यह कैसी कहावत है जो मुल्क-ए-इस्राईल में आम हो गई है? लोग कहते हैं, ‘जूँ जूँ दिन गुज़रते जाते हैं तूँ तूँ हर रोया ग़लत साबित होती जाती है।’ |
23. | जवाब में उन्हें बता, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं इस कहावत को ख़त्म करूँगा, आइन्दा यह इस्राईल में इस्तेमाल नहीं होगी।’ उन्हें यह भी बता, ‘वह वक़्त क़रीब ही है जब हर रोया पूरी हो जाएगी। |
24. | क्यूँकि आइन्दा इस्राईली क़ौम में न फ़रेबदिह रोया, न चापलूसी की पेशगोइयाँ पाई जाएँगी। |
25. | क्यूँकि मैं रब्ब हूँ। जो कुछ मैं फ़रमाता हूँ वह वुजूद में आता है। ऐ सरकश क़ौम, देर नहीं होगी बल्कि तुम्हारे ही अय्याम में मैं बात भी करूँगा और उसे पूरा भी करूँगा।’ यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।” |
26. | रब्ब मज़ीद मुझ से हमकलाम हुआ, |
27. | “ऐ आदमज़ाद, इस्राईली क़ौम तेरे बारे में कहती है, ‘जो रोया यह आदमी देखता है वह बड़ी देर के बाद ही पूरी होगी, उस की पेशगोइयाँ दूर के मुस्तक़बिल के बारे में हैं।’ |
28. | लेकिन उन्हें जवाब दे, ‘रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि जो कुछ भी मैं फ़रमाता हूँ उस में मज़ीद देर नहीं होगी बल्कि वह जल्द ही पूरा होगा।’ यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।” |
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