← Ezekiel (11/48) → |
1. | तब रूह मुझे उठा कर रब्ब के घर के मशरिक़ी दरवाज़े के पास ले गया। वहाँ दरवाज़े पर 25 मर्द खड़े थे। मैं ने देखा कि क़ौम के दो बुज़ुर्ग याज़नियाह बिन अज़्ज़ूर और फ़लतियाह बिन बिनायाह भी उन में शामिल हैं। |
2. | रब्ब ने फ़रमाया, “ऐ आदमज़ाद, यह वही मर्द हैं जो शरीर मन्सूबे बाँध रहे और यरूशलम में बुरे मश्वरे दे रहे हैं। |
3. | यह कहते हैं, ‘आने वाले दिनों में घर तामीर करने की ज़रूरत नहीं। हमारा शहर तो देग है जबकि हम उस में पकने वाला बेहतरीन गोश्त हैं।’ |
4. | आदमज़ाद, चूँकि वह ऐसी बातें करते हैं इस लिए नुबुव्वत कर! उन के ख़िलाफ़ नुबुव्वत कर!” |
5. | तब रब्ब का रूह मुझ पर आ ठहरा, और उस ने मुझे यह पेश करने को कहा, “रब्ब फ़रमाता है, ‘ऐ इस्राईली क़ौम, तुम इस क़िस्म की बातें करते हो। मैं तो उन ख़यालात से ख़ूब वाक़िफ़ हूँ जो तुम्हारे दिलों से उभरते रहते हैं। |
6. | तुम ने इस शहर में मुतअद्दिद लोगों को क़त्ल करके उस की गलियों को लाशों से भर दिया है।’ |
7. | चुनाँचे रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है, ‘बेशक शहर देग है, लेकिन तुम उस में पकने वाला अच्छा गोश्त नहीं होगे बल्कि वही जिन को तुम ने उस के दर्मियान क़त्ल किया है। तुम्हें मैं इस शहर से निकाल दूँगा। |
8. | जिस तल्वार से तुम डरते हो, उसी को मैं तुम पर नाज़िल करूँगा।’ यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है। |
9. | ‘मैं तुमहें शहर से निकालूँगा और परदेसियों के हवाले करके तुम्हारी अदालत करूँगा। |
10. | तुम तल्वार की ज़द में आ कर मर जाओगे। इस्राईल की हुदूद पर ही मैं तुम्हारी अदालत करूँगा। तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ। |
11. | चुनाँचे न यरूशलम शहर तुम्हारे लिए देग होगा, न तुम उस में बेहतरीन गोश्त होगे बल्कि मैं इस्राईल की हुदूद ही पर तुम्हारी अदालत करूँगा। |
12. | तब तुम जान लोगे कि मैं ही रब्ब हूँ, जिस के अह्काम के मुताबिक़ तुम ने ज़िन्दगी नहीं गुज़ारी। क्यूँकि तुम ने मेरे उसूलों की पैरवी नहीं की बल्कि अपनी पड़ोसी क़ौमों के उसूलों की’।” |
13. | मैं अभी इस पेशगोई का एलान कर रहा था कि फ़लतियाह बिन बिनायाह फ़ौत हुआ। यह देख कर मैं मुँह के बल गिर गया और बुलन्द आवाज़ से चीख़ उठा, “हाय, हाय! ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, क्या तू इस्राईल के बचे खचे हिस्से को सरासर मिटाना चाहता है?” |
14. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
15. | “ऐ आदमज़ाद, यरूशलम के बाशिन्दे तेरे भाइयों, तेरे रिश्तेदारों और बाबल में जिलावतन हुए तमाम इस्राईलियों के बारे में कह रहे हैं, ‘यह लोग रब्ब से कहीं दूर हो गए हैं, अब इस्राईल हमारे ही क़ब्ज़े में है।’ |
16. | जो इस क़िस्म की बातें करते हैं उन्हें जवाब दे, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि जी हाँ, मैं ने उन्हें दूर दूर भगा दिया, और अब वह दीगर क़ौमों के दर्मियान ही रहते हैं। मैं ने ख़ुद उन्हें मुख़्तलिफ़ ममालिक में मुन्तशिर कर दिया, ऐसे इलाक़ों में जहाँ उन्हें मक़्दिस में मेरे हुज़ूर आने का मौक़ा थोड़ा ही मिलता है। |
17. | लेकिन रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ यह भी फ़रमाता है, ‘मैं तुमहें दीगर क़ौमों में से निकाल लूँगा, तुम्हें उन मुल्कों से जमा करूँगा जहाँ मैं ने तुम्हें मुन्तशिर कर दिया था। तब मैं तुमहें मुल्क-ए-इस्राईल दुबारा अता करूँगा।’ |
18. | फिर वह यहाँ आ कर तमाम मक्रूह बुत और घिनौनी चीज़ें दूर करेंगे। |
19. | उस वक़्त मैं उन्हें नया दिल बख़्श कर उन में नई रूह डालूँगा। मैं उन का संगीन दिल निकाल कर उन्हें गोश्त-पोस्त का नर्म दिल अता करूँगा। |
20. | तब वह मेरे अह्काम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारेंगे और ध्यान से मेरी हिदायात पर अमल करेंगे। वह मेरी क़ौम होंगे, और मैं उन का ख़ुदा हूँगा। |
21. | लेकिन जिन लोगों के दिल उन के घिनौने बुतों से लिपटे रहते हैं उन के सर पर मैं उन के ग़लत काम का मुनासिब अज्र लाऊँगा। यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।” |
22. | फिर करूबी फ़रिश्तों ने अपने परों को फैलाया, उन के पहिए हर्कत में आ गए और ख़ुदा-ए- इस्राईल का जलाल जो उन के ऊपर था |
23. | उठ कर शहर से निकल गया। चलते चलते वह यरूशलम के मशरिक़ में वाक़े पहाड़ पर ठहर गया। |
24. | अल्लाह के रूह की अताकरदा इस रोया में रूह मुझे उठा कर मुल्क-ए-बाबल के जिलावतनों के पास वापस ले गया। फिर रोया ख़त्म हुई, |
25. | और मैं ने जिलावतनों को सब कुछ सुनाया जो रब्ब ने मुझे दिखाया था। |
← Ezekiel (11/48) → |