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1. | मूसा ने एतिराज़ किया, “लेकिन इस्राईली न मेरी बात का यक़ीन करेंगे, न मेरी सुनेंगे। वह तो कहेंगे, ‘रब्ब तुम पर ज़ाहिर नहीं हुआ’।” |
2. | जवाब में रब्ब ने मूसा से कहा, “तू ने हाथ में क्या पकड़ा हुआ है?” मूसा ने कहा, “लाठी।” |
3. | रब्ब ने कहा, “उसे ज़मीन पर डाल दे।” मूसा ने ऐसा किया तो लाठी साँप बन गई, और मूसा डर कर भागा। |
4. | रब्ब ने कहा, “अब साँप की दुम को पकड़ ले।” मूसा ने ऐसा किया तो साँप फिर लाठी बन गया। |
5. | रब्ब ने कहा, “यह देख कर लोगों को यक़ीन आएगा कि रब्ब जो उन के बापदादा का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा है तुझ पर ज़ाहिर हुआ है। |
6. | अब अपना हाथ अपने लिबास में डाल दे।” मूसा ने ऐसा किया। जब उस ने अपना हाथ निकाला तो वह बर्फ़ की मानिन्द सफ़ेद हो गया था। कोढ़ जैसी बीमारी लग गई थी। |
7. | तब रब्ब ने कहा, “अब अपना हाथ दुबारा अपने लिबास में डाल।” मूसा ने ऐसा किया। जब उस ने अपना हाथ दुबारा निकाला तो वह फिर सेहतमन्द था। |
8. | रब्ब ने कहा, “अगर लोगों को पहला मोजिज़ा देख कर यक़ीन न आए और वह तेरी न सुनें तो शायद उन्हें दूसरा मोजिज़ा देख कर यक़ीन आए। |
9. | अगर उन्हें फिर भी यक़ीन न आए और वह तेरी न सुनें तो दरया-ए-नील से कुछ पानी निकाल कर उसे ख़ुश्क ज़मीन पर उंडेल दे। यह पानी ज़मीन पर गिरते ही ख़ून बन जाएगा।” |
10. | लेकिन मूसा ने कहा, “मेरे आक़ा, मैं माज़रत चाहता हूँ, मैं अच्छी तरह बात नहीं कर सकता बल्कि मैं कभी भी यह लियाक़त नहीं रखता था। इस वक़्त भी जब मैं तुझ से बात कर रहा हूँ मेरी यही हालत है। मैं रुक रुक कर बोलता हूँ।” |
11. | रब्ब ने कहा, “किस ने इन्सान का मुँह बनाया? कौन एक को गूँगा और दूसरे को बहरा बना देता है? कौन एक को देखने की क़ाबिलियत देता है और दूसरे को इस से महरूम रखता है? क्या मैं जो रब्ब हूँ यह सब कुछ नहीं करता? |
12. | अब जा! तेरे बोलते वक़्त मैं ख़ुद तेरे साथ हूँगा और तुझे वह कुछ सिखाऊँगा जो तुझे कहना है।” |
13. | लेकिन मूसा ने इल्तिजा की, “मेरे आक़ा, मेहरबानी करके किसी और को भेज दे।” |
14. | तब रब्ब मूसा से सख़्त ख़फ़ा हुआ। उस ने कहा, “क्या तेरा लावी भाई हारून ऐसे काम के लिए हाज़िर नहीं है? मैं जानता हूँ कि वह अच्छी तरह बोल सकता है। देख, वह तुझ से मिलने के लिए निकल चुका है। तुझे देख कर वह निहायत ख़ुश होगा। |
15. | उसे वह कुछ बता जो उसे कहना है। तुम्हारे बोलते वक़्त मैं तेरे और उस के साथ हूँगा और तुम्हें वह कुछ सिखाऊँगा जो तुम्हें करना होगा। |
16. | हारून तेरी जगह क़ौम से बात करेगा जबकि तू मेरी तरह उसे वह कुछ बताएगा जो उसे कहना है। |
17. | लेकिन यह लाठी भी साथ ले जाना, क्यूँकि इसी के ज़रीए तू यह मोजिज़े करेगा।” |
18. | फिर मूसा अपने सुसर यित्रो के घर वापस चला गया। उस ने कहा, “मुझे ज़रा अपने अज़ीज़ों के पास वापस जाने दें जो मिस्र में हैं। मैं मालूम करना चाहता हूँ कि वह अभी तक ज़िन्दा हैं कि नहीं।” यित्रो ने जवाब दिया, “ठीक है, सलामती से जाएँ।” |
19. | मूसा अभी मिदियान में था कि रब्ब ने उस से कहा, “मिस्र को वापस चला जा, क्यूँकि जो आदमी तुझे क़त्ल करना चाहते थे वह मर गए हैं।” |
20. | चुनाँचे मूसा अपनी बीवी और बेटों को गधे पर सवार करके मिस्र को लौटने लगा। अल्लाह की लाठी उस के हाथ में थी। |
21. | रब्ब ने उस से यह भी कहा, “मिस्र जा कर फ़िरऔन के सामने वह तमाम मोजिज़े दिखा जिन का मैं ने तुझे इख़तियार दिया है। लेकिन मेरे कहने पर वह अड़ा रहेगा। वह इस्राईलियों को जाने की इजाज़त नहीं देगा। |
22. | उस वक़्त फ़िरऔन को बता देना, ‘रब्ब फ़रमाता है कि इस्राईल मेरा पहलौठा है। |
23. | मैं तुझे बता चुका हूँ कि मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी इबादत करे। अगर तू मेरे बेटे को जाने से मना करे तो मैं तेरे पहलौठे को जान से मार दूँगा’।” |
24. | एक दिन जब मूसा अपने ख़ान्दान के साथ रास्ते में किसी सराय में ठहरा हुआ था तो रब्ब ने उस पर हम्ला करके उसे मार देने की कोशिश की। |
25. | यह देख कर सफ़्फ़ूरा ने एक तेज़ पत्थर से अपने बेटे का ख़तना किया और काटे हुए हिस्से से मूसा के पैर छुए। उस ने कहा, “यक़ीनन तुम मेरे ख़ूनी दूल्हा हो।” |
26. | तब अल्लाह ने मूसा को छोड़ दिया। सफ़्फ़ूरा ने उसे ख़तने के बाइस ही ‘ख़ूनी दूल्हा’ कहा था। |
27. | रब्ब ने हारून से भी बात की, “रेगिस्तान में मूसा से मिलने जा।” हारून चल पड़ा और अल्लाह के पहाड़ के पास मूसा से मिला। उस ने उसे बोसा दिया। |
28. | मूसा ने हारून को सब कुछ सुना दिया जो रब्ब ने उसे कहने के लिए भेजा था। उस ने उसे उन मोजिज़ों के बारे में भी बताया जो उसे दिखाने थे। |
29. | फिर दोनों मिल कर मिस्र गए। वहाँ पहुँच कर उन्हों ने इस्राईल के तमाम बुज़ुर्गों को जमा किया। |
30. | हारून ने उन्हें वह तमाम बातें सुनाईं जो रब्ब ने मूसा को बताई थीं। उस ने मज़्कूरा मोजिज़े भी लोगों के सामने दिखाए। |
31. | फिर उन्हें यक़ीन आया। और जब उन्हों ने सुना कि रब्ब को तुम्हारा ख़याल है और वह तुम्हारी मुसीबत से आगाह है तो उन्हों ने रब्ब को सिज्दा किया। |
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