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1. | मूसा का सुसर यित्रो अब तक मिदियान में इमाम था। जब उस ने सब कुछ सुना जो अल्लाह ने मूसा और अपनी क़ौम के लिए किया है, कि वह उन्हें मिस्र से निकाल लाया है |
2. | तो वह मूसा के पास आया। वह उस की बीवी सफ़्फ़ूरा को अपने साथ लाया, क्यूँकि मूसा ने उसे अपने बेटों समेत मैके भेज दिया था। |
3. | यित्रो मूसा के दोनों बेटों को भी साथ लाया। पहले बेटे का नाम जैर्सोम यानी ‘अजनबी मुल्क में परदेसी’ था, क्यूँकि जब वह पैदा हुआ तो मूसा ने कहा था, “मैं अजनबी मुल्क में परदेसी हूँ।” |
4. | दूसरे बेटे का नाम इलीअज़र यानी ‘मेरा ख़ुदा मददगार है’ था, क्यूँकि जब वह पैदा हुआ तो मूसा ने कहा था, “मेरे बाप के ख़ुदा ने मेरी मदद करके मुझे फ़िरऔन की तल्वार से बचाया है।” |
5. | यित्रो मूसा की बीवी और बेटे साथ ले कर उस वक़्त मूसा के पास पहुँचा जब उस ने रेगिस्तान में अल्लाह के पहाड़ यानी सीना के क़रीब ख़ैमा लगाया हुआ था। |
6. | उस ने मूसा को पैग़ाम भेजा था, “मैं, आप का सुसर यित्रो आप की बीवी और दो बेटों को साथ ले कर आप के पास आ रहा हूँ।” |
7. | मूसा अपने सुसर के इस्तिक़्बाल के लिए बाहर निकला, उस के सामने झुका और उसे बोसा दिया। दोनों ने एक दूसरे का हाल पूछा, फिर ख़ैमे में चले गए। |
8. | मूसा ने यित्रो को तफ़्सील से बताया कि रब्ब ने इस्राईलियों की ख़ातिर फ़िरऔन और मिस्रियों के साथ क्या कुछ किया है। उस ने रास्ते में पेश आई तमाम मुश्किलात का ज़िक्र भी किया कि रब्ब ने हमें किस तरह उन से बचाया है। |
9. | यित्रो उन सारे अच्छे कामों के बारे में सुन कर ख़ुश हुआ जो रब्ब ने इस्राईलियों के लिए किए थे जब उस ने उन्हें मिस्रियों के हाथ से बचाया था। |
10. | उस ने कहा, “रब्ब की तम्जीद हो जिस ने आप को मिस्रियों और फ़िरऔन के क़ब्ज़े से नजात दिलाई है। उसी ने क़ौम को ग़ुलामी से छुड़ाया है! |
11. | अब मैं ने जान लिया है कि रब्ब तमाम माबूदों से अज़ीम है, क्यूँकि उस ने यह सब कुछ उन लोगों के साथ किया जिन्हों ने अपने ग़रूर में इस्राईलियों के साथ बुरा सुलूक किया था।” |
12. | फिर यित्रो ने अल्लाह को भस्म होने वाली क़ुर्बानी और दीगर कई क़ुर्बानियाँ पेश कीं। तब हारून और तमाम बुज़ुर्ग मूसा के सुसर यित्रो के साथ अल्लाह के हुज़ूर खाना खाने बैठे। |
13. | अगले दिन मूसा लोगों का इन्साफ़ करने के लिए बैठ गया। उन की तादाद इतनी ज़ियादा थी कि वह सुब्ह से ले कर शाम तक मूसा के सामने खड़े रहे। |
14. | जब यित्रो ने यह सब कुछ देखा तो उस ने पूछा, “यह क्या है जो आप लोगों के साथ कर रहे हैं? सारा दिन वह आप को घेरे रहते और आप उन की अदालत करते रहते हैं। आप यह सब कुछ अकेले ही क्यूँ कर रहे हैं?” |
15. | मूसा ने जवाब दिया, “लोग मेरे पास आ कर अल्लाह की मर्ज़ी मालूम करते हैं। |
16. | जब कभी कोई तनाज़ो या झगड़ा होता है तो दोनों पार्टियाँ मेरे पास आती हैं। मैं फ़ैसला करके उन्हें अल्लाह के अह्काम और हिदायात बताता हूँ।” |
17. | मूसा के सुसर ने उस से कहा, “आप का तरीक़ा अच्छा नहीं है। |
18. | काम इतना वसी है कि आप उसे अकेले नहीं सँभाल सकते। इस से आप और वह लोग जो आप के पास आते हैं बुरी तरह थक जाते हैं। |
19. | मेरी बात सुनें! मैं आप को एक मश्वरा देता हूँ। अल्लाह उस में आप की मदद करे। लाज़िम है कि आप अल्लाह के सामने क़ौम के नुमाइन्दा रहें और उन के मुआमलात उस के सामने पेश करें। |
20. | यह भी ज़रूरी है कि आप उन्हें अल्लाह के अह्काम और हिदायात सिखाएँ, कि वह किस तरह ज़िन्दगी गुज़ारें और क्या क्या करें। |
21. | लेकिन साथ साथ क़ौम में से क़ाबिल-ए-एतिमाद आदमी चुनें। वह ऐसे लोग हों जो अल्लाह का ख़ौफ़ मानते हों, रास्तदिल हों और रिश्वत से नफ़रत करते हों। उन्हें हज़ार हज़ार, सौ सौ, पचास पचास और दस दस आदमियों पर मुक़र्रर करें। |
22. | उन आदमियों की ज़िम्मादारी यह होगी कि वह हर वक़्त लोगों का इन्साफ़ करें। अगर कोई बहुत ही पेचीदा मुआमला हो तो वह फ़ैसले के लिए आप के पास आएँ, लेकिन दीगर मुआमलों का फ़ैसला वह ख़ुद करें। यूँ वह काम में आप का हाथ बटाएँगे और आप का बोझ हल्का हो जाएगा। |
23. | अगर मेरा यह मश्वरा अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ हो और आप ऐसा करें तो आप अपनी ज़िम्मादारी निभा सकेंगे और यह तमाम लोग इन्साफ़ के मिलने पर सलामती के साथ अपने अपने घर जा सकेंगे।” |
24. | मूसा ने अपने सुसर का मश्वरा मान लिया और ऐसा ही किया। |
25. | उस ने इस्राईलियों में से क़ाबिल-ए-एतिमाद आदमी चुने और उन्हें हज़ार हज़ार, सौ सौ, पचास पचास और दस दस आदमियों पर मुक़र्रर किया। |
26. | यह मर्द क़ाज़ी बन कर मुस्तक़िल तौर पर लोगों का इन्साफ़ करने लगे। आसान मसलों का फ़ैसला वह ख़ुद करते और मुश्किल मुआमलों को मूसा के पास ले आते थे। |
27. | कुछ अर्से बाद मूसा ने अपने सुसर को रुख़्सत किया तो यित्रो अपने वतन वापस चला गया। |
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