Esther (1/10)  

1. अख़स्वेरुस बादशाह की सल्तनत भारत से ले कर एथोपिया तक 127 सूबों पर मुश्तमिल थी।
2. जिन वाक़िआत का ज़िक्र है वह उस वक़्त हुए जब वह सोसन शहर के क़िलए से हुकूमत करता था।
3. अपनी हुकूमत के तीसरे साल में उस ने अपने तमाम बुज़ुर्गों और अफ़्सरों की ज़ियाफ़त की। फ़ार्स और मादी के फ़ौजी अफ़्सर और सूबों के शुरफ़ा और रईस सब शरीक हुए।
4. शहनशाह ने पूरे 180 दिन तक अपनी सल्तनत की ज़बरदस्त दौलत और अपनी क़ुव्वत की शान-ओ-शौकत का मुज़ाहरा किया।
5. इस के बाद उस ने सोसन के क़िलए में रहने वाले तमाम लोगों की छोटे से ले कर बड़े तक ज़ियाफ़त की। यह जश्न सात दिन तक शाही बाग़ के सहन में मनाया गया।
6. मरमर के सतूनों के दर्मियान कतान के सफ़ेद और क़िर्मिज़ी रंग के क़ीमती पर्दे लटकाए गए थे, और वह सफ़ेद और अर्ग़वानी रंग की डोरियों के ज़रीए सतूनों में लगे चाँदी के छल्लों के साथ बंधे हुए थे। मेहमानों के लिए सोने और चाँदी के सोफ़े पच्चीकारी के ऐसे फ़र्श पर रखे हुए थे जिस में मरमर के इलावा मज़ीद तीन क़ीमती पत्थर इस्तेमाल हुए थे।
7. मै सोने के पियालों में पिलाई गई। हर पियाला फ़र्क़ और लासानी था, और बादशाह की फ़य्याज़ी के मुताबिक़ शाही मै की कस्रत थी।
8. हर कोई जितनी जी चाहे पी सकता था, क्यूँकि बादशाह ने हुक्म दिया था कि साक़ी मेहमानों की हर ख़्वाहिश पूरी करें।
9. इस दौरान वश्ती मलिका ने महल के अन्दर ख़वातीन की ज़ियाफ़त की।
10. सातवें दिन जब बादशाह का दिल मै पी पी कर बहल गया था तो उस ने उन सात ख़्वाजासराओं को बुलाया जो ख़ास उस की ख़िदमत करते थे। उन के नाम महूमान, बिज़्ज़ता, ख़र्बूना,बिग्ता, अबग्ता, ज़ितार और कर्कस थे।
11. उस ने हुक्म दिया, “वश्ती मलिका को शाही ताज पहना कर मेरे हुज़ूर ले आओ ताकि शुरफ़ा और बाक़ी मेहमानों को उस की ख़ूबसूरती मालूम हो जाए।” क्यूँकि वश्ती निहायत ख़ूबसूरत थी।
12. लेकिन जब ख़्वाजासरा मलिका के पास गए तो उस ने आने से इन्कार कर दिया। यह सुन कर बादशाह आग-बगूला हो गया
13. और दानाओं से बात की जो औक़ात के आलिम थे, क्यूँकि दस्तूर यह था कि बादशाह क़ानूनी मुआमलों में उलमा से मश्वरा करे।
14. आलिमों के नाम का कार्शीना, सितार, अदमाता, तरसीस, मरस, मर्सिना और ममूकान थे। फ़ार्स और मादी के यह सात शुरफ़ा आज़ादी से बादशाह के हुज़ूर आ सकते थे और सल्तनत में सब से आला उह्दा रखते थे।
15. अख़स्वेरुस ने पूछा, “क़ानून के लिहाज़ से वश्ती मलिका के साथ क्या सुलूक किया जाए? क्यूँकि उस ने ख़्वाजासराओं के हाथ भेजे हुए शाही हुक्म को नहीं माना।”
16. ममूकान ने बादशाह और दीगर शुरफ़ा की मौजूदगी में जवाब दिया, “वश्ती मलिका ने इस से न सिर्फ़ बादशाह का बल्कि उस के तमाम शुरफ़ा और सल्तनत के तमाम सूबों में रहने वाली क़ौमों का भी गुनाह किया है।
17. क्यूँकि जो कुछ उस ने किया है वह तमाम ख़वातीन को मालूम हो जाएगा। फिर वह अपने शौहरों को हक़ीर जान कर कहेंगी, ‘गो बादशाह ने वश्ती मलिका को अपने हुज़ूर आने का हुक्म दिया तो भी उस ने उस के हुज़ूर आने से इन्कार किया।’
18. आज ही फ़ार्स और मादी के शुरफ़ा की बीवियाँ मलिका की यह बात सुन कर अपने शौहरों से ऐसा ही सुलूक करेंगी। तब हम ज़िल्लत और ग़ुस्से के जाल में उलझ जाएँगे।
19. अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो तो वह एलान करें कि वश्ती मलिका को फिर कभी अख़स्वेरुस बादशाह के हुज़ूर आने की इजाज़त नहीं। और लाज़िम है कि यह एलान फ़ार्स और मादी के क़वानीन में दर्ज किया जाए ताकि उसे मन्सूख़ न किया जा सके। फिर बादशाह किसी और को मलिका का उह्दा दें, ऐसी औरत को जो ज़ियादा लाइक़ हो।
20. जब एलान पूरी सल्तनत में किया जाएगा तो तमाम औरतें अपने शौहरों की इज़्ज़त करेंगी, ख़्वाह वह छोटे हों या बड़े।”
21. यह बात बादशाह और उस के शुरफ़ा को पसन्द आई। ममूकान के मश्वरे के मुताबिक़
22. अख़स्वेरुस ने सल्तनत के तमाम सूबों में ख़त भेजे। हर सूबे को उस के अपने तर्ज़-ए-तहरीर में और हर क़ौम को उस की अपनी ज़बान में ख़त मिल गया कि हर मर्द अपने घर का सरपरस्त है और कि हर ख़ान्दान में शौहर की ज़बान बोली जाए।

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