← Ephesians (2/6) → |
1. | आप भी अपनी ख़ताओं और गुनाहों की वजह से रुहानी तौर पर मुर्दा थे। |
2. | क्यूँकि पहले आप इन में फंसे हुए इस दुनिया के तौर-तरीक़ों के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते थे। आप हवा की कुव्वतों के सरदार के ताबे थे, उस रूह के जो इस वक़्त उन में सरगर्म-ए-अमल है जो अल्लाह के नाफ़रमान हैं। |
3. | पहले तो हम भी सब उन में ज़िन्दगी गुज़ारते थे। हम भी अपनी पुरानी फ़ित्रत की शहवतें, मर्ज़ी और सोच पूरी करने की कोशिश करते रहे। दूसरों की तरह हम पर भी फ़ित्री तौर पर अल्लाह का ग़ज़ब नाज़िल होना था। |
4. | लेकिन अल्लाह का रहम इतना वसी है और वह इतनी शिद्दत से हम से मुहब्बत रखता है |
5. | कि अगरचि हम अपने गुनाहों में मुर्दा थे तो भी उस ने हमें मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया। हाँ, आप को अल्लाह के फ़ज़्ल ही से नजात मिली है। |
6. | जब हम मसीह ईसा पर ईमान लाए तो उस ने हमें मसीह के साथ ज़िन्दा करके आस्मान पर बिठा दिया। |
7. | ईसा मसीह में हम पर मेहरबानी करने से अल्लाह आने वाले ज़मानों में अपने फ़ज़्ल की ला-मह्दूद दौलत दिखाना चाहता था। |
8. | क्यूँकि यह उस का फ़ज़्ल ही है कि आप को ईमान लाने पर नजात मिली है। यह आप की तरफ़ से नहीं है बल्कि अल्लाह की बख़्शिश है। |
9. | और यह नजात हमें अपने किसी काम के नतीजे में नहीं मिली, इस लिए कोई अपने आप पर फ़ख़र नहीं कर सकता। |
10. | हाँ, हम उसी की मख़्लूक़ हैं जिन्हें उस ने मसीह में नेक काम करने के लिए ख़लक़ किया है। और यह काम उस ने पहले से हमारे लिए तय्यार कर रखे हैं, क्यूँकि वह चाहता है कि हम उन्हें सरअन्जाम देते हुए ज़िन्दगी गुज़ारें। |
11. | यह बात ज़हन में रखें कि माज़ी में आप क्या थे। यहूदी सिर्फ़ अपने लिए लफ़्ज़ मख़्तून इस्तेमाल करते थे अगरचि वह अपना ख़तना सिर्फ़ इन्सानी हाथों से करवाते हैं। आप को जो ग़ैरयहूदी हैं वह नामख़्तून क़रार देते थे। |
12. | उस वक़्त आप मसीह के बग़ैर ही चलते थे। आप इस्राईल क़ौम के शहरी न बन सके और जो वादे अल्लाह ने अह्दों के ज़रीए अपनी क़ौम से किए थे वह आप के लिए नहीं थे। इस दुनिया में आप की कोई उम्मीद नहीं थी, आप अल्लाह के बग़ैर ही ज़िन्दगी गुज़ारते थे। |
13. | लेकिन अब आप मसीह में हैं। पहले आप दूर थे, लेकिन अब आप को मसीह के ख़ून के वसीले से क़रीब लाया गया है। |
14. | क्यूँकि मसीह हमारी सुलह है और उसी ने यहूदियों और ग़ैरयहूदियों को मिला कर एक क़ौम बना दिया है। अपने जिस्म को क़ुर्बान करके उस ने वह दीवार गिरा दी जिस ने उन्हें अलग करके एक दूसरे के दुश्मन बना रखा था। |
15. | उस ने शरीअत को उस के अह्काम और ज़वाबित समेत मन्सूख़ कर दिया ताकि दोनों गुरोहों को मिला कर एक नया इन्सान ख़लक़ करे, ऐसा इन्सान जो उस में एक हो और सुलह-सलामती के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे। |
16. | अपनी सलीबी मौत से उस ने दोनों गुरोहों को एक बदन में मिला कर उन की अल्लाह के साथ सुलह कराई। हाँ, उस ने अपने आप में यह दुश्मनी ख़त्म कर दी। |
17. | उस ने आ कर दोनों गुरोहों को सुलह-सलामती की ख़ुशख़बरी सुनाई, आप ग़ैरयहूदियों को जो अल्लाह से दूर थे और आप यहूदियों को भी जो उस के क़रीब थे। |
18. | अब हम दोनों मसीह के ज़रीए एक ही रूह में बाप के हुज़ूर आ सकते हैं। |
19. | नतीजे में अब आप परदेसी और अजनबी नहीं रहे बल्कि मुक़द्दसीन के हमवतन और अल्लाह के घराने के हैं। |
20. | आप को रसूलों और नबियों की बुन्याद पर तामीर किया गया है जिस के कोने का बुन्यादी पत्थर मसीह ईसा ख़ुद है। |
21. | उस में पूरी इमारत जुड़ जाती और बढ़ती बढ़ती ख़ुदावन्द में अल्लाह का मुक़द्दस घर बन जाती है। |
22. | दूसरों के साथ साथ उस में आप की भी तामीर हो रही है ताकि आप रूह में अल्लाह की सुकूनतगाह बन जाएँ। |
← Ephesians (2/6) → |