Ecclesiastes (1/12)  

1. ज़ैल में वाइज़ के अल्फ़ाज़ क़लमबन्द हैं, उस के जो दाऊद का बेटा और यरूशलम में बादशाह है,
2. वाइज़ फ़रमाता है, “बातिल ही बातिल, बातिल ही बातिल, सब कुछ बातिल ही बातिल है!”
3. सूरज तले जो मेहनत-मशक़्क़त इन्सान करे उस का क्या फ़ाइदा है? कुछ नहीं!
4. एक पुश्त आती और दूसरी जाती है, लेकिन ज़मीन हमेशा तक क़ाइम रहती है।
5. सूरज तुलू और ग़ुरूब हो जाता है, फिर सुरअत से उसी जगह वापस चला जाता है जहाँ से दुबारा तुलू होता है।
6. हवा जुनूब की तरफ़ चलती, फिर मुड़ कर शिमाल की तरफ़ चलने लगती है। यूँ चक्कर काट काट कर वह बार बार नुक़्ता-ए-आग़ाज़ पर वापस आती है।
7. तमाम दरया समुन्दर में जा मिलते हैं, तो भी समुन्दर की सतह वही रहती है, क्यूँकि दरयाओं का पानी मुसल्सल उन सरचश्मों के पास वापस आता है जहाँ से बह निकला है।
8. इन्सान बातें करते करते थक जाता है और सहीह तौर से कुछ बयान नहीं कर सकता। आँख कभी इतना नहीं देखती कि कहे, “अब बस करो, काफ़ी है।” कान कभी इतना नहीं सुनता कि और न सुनना चाहे।
9. जो कुछ पेश आया वही दुबारा पेश आएगा, जो कुछ किया गया वही दुबारा किया जाएगा। सूरज तले कोई भी बात नई नहीं।
10. क्या कोई बात है जिस के बारे में कहा जा सके, “देखो, यह नई है”? हरगिज़ नहीं, यह भी हम से बहुत देर पहले ही मौजूद थी।
11. जो पहले ज़िन्दा थे उन्हें कोई याद नहीं करता, और जो आने वाले हैं उन्हें भी वह याद नहीं करेंगे जो उन के बाद आएँगे।
12. मैं जो वाइज़ हूँ यरूशलम में इस्राईल का बादशाह था।
13. मैं ने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि जो कुछ आस्मान तले किया जाता है उस की हिक्मत के ज़रीए तफ़्तीश-ओ-तह्क़ीक़ करूँ। यह काम नागवार है गो अल्लाह ने ख़ुद इन्सान को इस में मेहनत-मशक़्क़त करने की ज़िम्मादारी दी है।
14. मैं ने तमाम कामों का मुलाहज़ा किया जो सूरज तुले होते हैं, तो नतीजा यह निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है।
15. जो पेचदार है वह सीधा नहीं हो सकता, जिस की कमी है उसे गिना नहीं जा सकता।
16. मैं ने दिल में कहा, “हिक्मत में मैं ने इतना इज़ाफ़ा किया और इतनी तरक़्क़ी की कि उन सब से सब्क़त ले गया जो मुझ से पहले यरूशलम पर हुकूमत करते थे। मेरे दिल ने बहुत हिक्मत और इल्म अपना लिया है।”
17. मैं ने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिक्मत समझूँ, नीज़ कि मुझे दीवानगी और हमाक़त की समझ भी आए। लेकिन मुझे मालूम हुआ कि यह भी हवा को पकड़ने के बराबर है।
18. क्यूँकि जहाँ हिक्मत बहुत है वहाँ रंजीदगी भी बहुत है। जो इल्म-ओ-इर्फ़ान में इज़ाफ़ा करे, वह दुख में इज़ाफ़ा करता है।

      Ecclesiastes (1/12)