Deuteronomy (31/34)  

1. मूसा ने जा कर तमाम इस्राईलियों से मज़ीद कहा,
2. “अब मैं 120 साल का हो चुका हूँ। मेरा चलना फिरना मुश्किल हो गया है। और वैसे भी रब्ब ने मुझे बताया है, ‘तू दरया-ए-यर्दन को पार नहीं करेगा।’
3. रब्ब तेरा ख़ुदा ख़ुद तेरे आगे आगे जा कर यर्दन को पार करेगा। वही तेरे आगे आगे इन क़ौमों को तबाह करेगा ताकि तू उन के मुल्क पर क़ब्ज़ा कर सके। दरया को पार करते वक़्त यशूअ तेरे आगे चलेगा जिस तरह रब्ब ने फ़रमाया है।
4. रब्ब वहाँ के लोगों को बिलकुल उसी तरह तबाह करेगा जिस तरह वह अमोरियों को उन के बादशाहों सीहोन और ओज समेत तबाह कर चुका है।
5. रब्ब तुम्हें उन पर ग़ालिब आने देगा। उस वक़्त तुम्हें उन के साथ वैसा सुलूक करना है जैसा मैं ने तुम्हें बताया है।
6. मज़्बूत और दिलेर हो। उन से ख़ौफ़ न खाओ, क्यूँकि रब्ब तेरा ख़ुदा तेरे साथ चलता है। वह तुझे कभी नहीं छोड़ेगा, तुझे कभी तर्क नहीं करेगा।”
7. इस के बाद मूसा ने तमाम इस्राईलियों के सामने यशूअ को बुलाया और उस से कहा, “मज़्बूत और दिलेर हो, क्यूँकि तू इस क़ौम को उस मुल्क में ले जाएगा जिस का वादा रब्ब ने क़सम खा कर उन के बापदादा से किया था। लाज़िम है कि तू ही उसे तक़्सीम करके हर क़बीले को उस का मौरूसी इलाक़ा दे।
8. रब्ब ख़ुद तेरे आगे आगे चलते हुए तेरे साथ होगा। वह तुझे कभी नहीं छोड़ेगा, तुझे कभी नहीं तर्क करेगा। ख़ौफ़ न खाना, न घबराना।”
9. मूसा ने यह पूरी शरीअत लिख कर इस्राईल के तमाम बुज़ुर्गों और लावी के क़बीले के उन इमामों के सपुर्द की जो सफ़र करते वक़्त अह्द का सन्दूक़ उठा कर ले चलते थे। उस ने उन से कहा,
10. “हर सात साल के बाद इस शरीअत की तिलावत करना, यानी बहाली के साल में जब तमाम क़र्ज़ मन्सूख़ किए जाते हैं। तिलावत उस वक़्त करना है जब इस्राईली झोंपड़ियों की ईद के लिए रब्ब अपने ख़ुदा के सामने उस जगह हाज़िर होंगे जो वह मक़्दिस के लिए चुनेगा।
11. “हर सात साल के बाद इस शरीअत की तिलावत करना, यानी बहाली के साल में जब तमाम क़र्ज़ मन्सूख़ किए जाते हैं। तिलावत उस वक़्त करना है जब इस्राईली झोंपड़ियों की ईद के लिए रब्ब अपने ख़ुदा के सामने उस जगह हाज़िर होंगे जो वह मक़्दिस के लिए चुनेगा।
12. तमाम लोगों को मर्दों, औरतों, बच्चों और परदेसियों समेत वहाँ जमा करना ताकि वह सुन कर सीखें, रब्ब तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें और एहतियात से इस शरीअत की बातों पर अमल करें।
13. लाज़िम है कि उन की औलाद जो इस शरीअत से नावाक़िफ़ है इसे सुने और सीखे ताकि उम्र भर उस मुल्क में रब्ब तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ माने जिस पर तुम दरया-ए-यर्दन को पार करके क़ब्ज़ा करोगे।”
14. रब्ब ने मूसा से कहा, “अब तेरी मौत क़रीब है। यशूअ को बुला कर उस के साथ मुलाक़ात के ख़ैमे में हाज़िर हो जा। वहाँ मैं उसे उस की ज़िम्मादारियाँ सौंपूँगा।” मूसा और यशूअ आ कर ख़ैमे में हाज़िर हुए
15. तो रब्ब ख़ैमे के दरवाज़े पर बादल के सतून में ज़ाहिर हुआ।
16. उस ने मूसा से कहा, “तू जल्द ही मर कर अपने बापदादा से जा मिलेगा। लेकिन यह क़ौम मुल्क में दाख़िल होने पर ज़िना करके उस के अजनबी देवताओं की पैरवी करने लग जाएगी। वह मुझे तर्क करके वह अह्द तोड़ देगी जो मैं ने उन के साथ बाँधा है।
17. फिर मेरा ग़ज़ब उन पर भड़केगा। मैं उन्हें छोड़ कर अपना चिहरा उन से छुपा लूँगा। तब उन्हें कच्चा चबा लिया जाएगा और बहुत सारी हैबतनाक मुसीबतें उन पर आएँगी । उस वक़्त वह कहेंगे, ‘क्या यह मुसीबतें इस वजह से हम पर नहीं आईं कि रब्ब हमारे साथ नहीं है?’
18. और ऐसा ही होगा। मैं ज़रूर अपना चिहरा उन से छुपाए रखूँगा, क्यूँकि दीगर माबूदों के पीछे चलने से उन्हों ने एक निहायत शरीर क़दम उठाया होगा।
19. अब ज़ैल का गीत लिख कर इस्राईलियों को यूँ सिखाओ कि वह ज़बानी याद रहे और मेरे लिए उन के ख़िलाफ़ गवाही दिया करे।
20. क्यूँकि मैं उन्हें उस मुल्क में ले जा रहा हूँ जिस का वादा मैं ने क़सम खा कर उन के बापदादा से किया था, उस मुल्क में जिस में दूध और शहद की कस्रत है। वहाँ इतनी ख़ुराक होगी कि उन की भूक जाती रहेगी और वह मोटे हो जाएँगे। लेकिन फिर वह दीगर माबूदों के पीछे लग जाएँगे और उन की ख़िदमत करेंगे। वह मुझे रद्द करेंगे और मेरा अह्द तोड़ेंगे।
21. नतीजे में उन पर बहुत सारी हैबतनाक मुसीबतें आएँगी । फिर यह गीत जो उन की औलाद को याद रहेगा उन के ख़िलाफ़ गवाही देगा। क्यूँकि गो मैं उन्हें उस मुल्क में ले जा रहा हूँ जिस का वादा मैं ने क़सम खा कर उन से किया था तो भी मैं जानता हूँ कि वह अब तक किस तरह की सोच रखते हैं।”
22. मूसा ने उसी दिन यह गीत लिख कर इस्राईलियों को सिखाया।
23. फिर रब्ब ने यशूअ बिन नून से कहा, “मज़्बूत और दिलेर हो, क्यूँकि तू इस्राईलियों को उस मुल्क में ले जाएगा जिस का वादा मैं ने क़सम खा कर उन से किया था। मैं ख़ुद तेरे साथ हूँगा।”
24. जब मूसा ने पूरी शरीअत को किताब में लिख लिया
25. तो वह उन लावियों से मुख़ातिब हुआ जो सफ़र करते वक़्त अह्द का सन्दूक़ उठा कर ले जाते थे।
26. “शरीअत की यह किताब ले कर रब्ब अपने ख़ुदा के अह्द के सन्दूक़ के पास रखना। वहाँ वह पड़ी रहे और तेरे ख़िलाफ़ गवाही देती रहे।
27. क्यूँकि मैं ख़ूब जानता हूँ कि तू कितना सरकश और हटधर्म है। मेरी मौजूदगी में भी तुम ने कितनी दफ़ा रब्ब से सरकशी की। तो फिर मेरे मरने के बाद तुम क्या कुछ नहीं करोगे!
28. अब मेरे सामने अपने क़बीलों के तमाम बुज़ुर्गों और निगहबानों को जमा करो ताकि वह ख़ुद मेरी यह बातें सुनें और आस्मान और ज़मीन उन के ख़िलाफ़ गवाह हों।
29. क्यूँकि मुझे मालूम है कि मेरी मौत के बाद तुम ज़रूर बिगड़ जाओगे और उस रास्ते से हट जाओगे जिस पर चलने की मैं ने तुम्हें ताकीद की है। आख़िरकार तुम पर मुसीबत आएगी, क्यूँकि तुम वह कुछ करोगे जो रब्ब को बुरा लगता है, तुम अपने हाथों के काम से उसे ग़ुस्सा दिलाओगे।”
30. फिर मूसा ने इस्राईल की तमाम जमाअत के सामने यह गीत शुरू से ले कर आख़िर तक पेश किया,

  Deuteronomy (31/34)