Deuteronomy (3/34)  

1. इस के बाद हम शिमाल में बसन की तरफ़ बढ़ गए। बसन का बादशाह ओज अपनी तमाम फ़ौज के साथ निकल कर हमारा मुक़ाबला करने के लिए इद्रई आया।
2. रब्ब ने मुझ से कहा, “उस से मत डर। मैं उसे, उस की पूरी फ़ौज और उस का मुल्क तेरे हवाले कर चुका हूँ। उस के साथ वह कुछ कर जो तू ने अमोरी बादशाह सीहोन के साथ किया जो हस्बोन में हुकूमत करता था।”
3. ऐसा ही हुआ। रब्ब हमारे ख़ुदा की मदद से हम ने बसन के बादशाह ओज और उस की तमाम क़ौम को शिकस्त दी। हम ने सब को हलाक कर दिया। कोई भी न बचा।
4. उसी वक़्त हम ने उस के तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया। हम ने कुल 60 शहरों पर यानी अर्जूब के सारे इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया जिस पर ओज की हुकूमत थी।
5. इन तमाम शहरों की हिफ़ाज़त ऊँची ऊँची फ़सीलों और कुंडे वाले दरवाज़ों से की गई थी। दीहात में बहुत सी ऐसी आबादियाँ भी मिल गईं जिन की फ़सीलें नहीं थीं।
6. हम ने उन के साथ वह कुछ किया जो हम ने हस्बोन के बादशाह सीहोन के इलाक़े के साथ किया था। हम ने सब कुछ रब्ब के हवाले करके हर शहर को और तमाम मर्दों, औरतों और बच्चों को हलाक कर डाला।
7. हम ने सिर्फ़ तमाम मवेशी और शहरों का लूटा हुआ माल अपने लिए बचाए रखा।
8. यूँ हम ने उस वक़्त अमोरियों के इन दो बादशाहों से दरया-ए-यर्दन का मशरिक़ी इलाक़ा वादी-ए-अर्नोन से ले कर हर्मून पहाड़ तक छीन लिया।
9. (सैदा के बाशिन्दे हर्मून को सिर्यून कहते हैं जबकि अमोरियों ने उस का नाम सनीर रखा)।
10. हम ने ओज बादशाह के पूरे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस में मैदान-ए-मुर्तफ़ा के तमाम शहर शामिल थे, नीज़ सल्का और इद्रई तक जिलिआद और बसन के पूरे इलाक़े।
11. बादशाह ओज देओ क़बीले रफ़ाई का आख़िरी मर्द था। उस का लोहे का ताबूत 13 से ज़ाइद फ़ुट लम्बा और छः फ़ुट चौड़ा था और आज तक अम्मोनियों के शहर रबा में देखा जा सकता है।
12. जब हम ने दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ी इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया तो मैं ने रूबिन और जद के क़बीलों को उस का जुनूबी हिस्सा शहरों समेत दिया। इस इलाक़े की जुनूबी सरहद्द दरया-ए-अर्नोन पर वाक़े शहर अरोईर है जबकि शिमाल में इस में जिलिआद के पहाड़ी इलाक़े का आधा हिस्सा भी शामिल है।
13. जिलिआद का शिमाली हिस्सा और बसन का मुल्क मैं ने मनस्सी के आधे क़बीले को दिया। (बसन में अर्जूब का इलाक़ा है जहाँ पहले ओज बादशाह की हुकूमत थी और जो रफ़ाइयों यानी देओं का मुल्क कहलाता था।
14. मनस्सी के क़बीले के एक आदमी बनाम याईर ने अर्जूब पर जसूरियों और माकातियों की सरहद्द तक क़ब्ज़ा कर लिया था। उस ने इस इलाक़े की बस्तियों को अपना नाम दिया। आज तक यही नाम हव्वोत-याईर यानी याईर की बस्तियाँ चलता है।)
15. मैं ने जिलिआद का शिमाली हिस्सा मनस्सी के कुंबे मकीर को दिया
16. लेकिन जिलिआद का जुनूबी हिस्सा रूबिन और जद के क़बीलों को दिया। इस हिस्से की एक सरहद्द जुनूब में वादी-ए-अर्नोन के बीच में से गुज़रती है जबकि दूसरी सरहद्द दरया-ए-यब्बोक़ है जिस के पार अम्मोनियों की हुकूमत है।
17. उस की मग़रिबी सरहद्द दरया-ए-यर्दन है यानी किन्नरत (गलील) की झील से ले कर बहीरा-ए-मुर्दार तक जो पिसगा के पहाड़ी सिलसिले के दामन में है।
18. उस वक़्त मैं ने रूबिन, जद और मनस्सी के क़बीलों से कहा, “रब्ब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें मीरास में यह मुल्क दे दिया है। लेकिन शर्त यह है कि तुम्हारे तमाम जंग करने के क़ाबिल मर्द मुसल्लह हो कर तुम्हारे इस्राईली भाइयों के आगे आगे दरया-ए-यर्दन को पार करें।
19. सिर्फ़ तुम्हारी औरतें और बच्चे पीछे रह कर उन शहरों में इन्तिज़ार कर सकते हैं जो मैं ने तुम्हारे लिए मुक़र्रर किए हैं। तुम अपने मवेशियों को भी पीछे छोड़ सकते हो, क्यूँकि मुझे पता है कि तुम्हारे बहुत ज़ियादा जानवर हैं।
20. अपने भाइयों के साथ चलते हुए उन की मदद करते रहो। जब रब्ब तुम्हारा ख़ुदा उन्हें दरया-ए-यर्दन के मग़रिब में वाक़े मुल्क देगा और वह तुम्हारी तरह आराम और सुकून से वहाँ आबाद हो जाएँगे तब तुम अपने मुल्क में वापस जा सकते हो।”
21. साथ साथ मैं ने यशूअ से कहा, “तू ने अपनी आँखों से सब कुछ देख लिया है जो रब्ब तुम्हारे ख़ुदा ने इन दोनों बादशाहों सीहोन और ओज से किया। वह यही कुछ हर उस बादशाह के साथ करेगा जिस के मुल्क पर तू दरया को पार करके हम्ला करेगा।
22. उन से न डरो। तुम्हारा ख़ुदा ख़ुद तुम्हारे लिए जंग करेगा।”
23. उस वक़्त मैं ने रब्ब से इल्तिजा करके कहा,
24. “ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, तू अपने ख़ादिम को अपनी अज़्मत और क़ुद्रत दिखाने लगा है। क्या आस्मान या ज़मीन पर कोई और ख़ुदा है जो तेरी तरह के अज़ीम काम कर सकता है? हरगिज़ नहीं!
25. मेहरबानी करके मुझे भी दरया-ए-यर्दन को पार करके उस अच्छे मुल्क यानी उस बेहतरीन पहाड़ी इलाक़े को लुब्नान तक देखने की इजाज़त दे।”
26. लेकिन तुम्हारे सबब से रब्ब मुझ से नाराज़ था। उस ने मेरी न सुनी बल्कि कहा, “बस कर! आइन्दा मेरे साथ इस का ज़िक्र न करना।
27. पिसगा की चोटी पर चढ़ कर चारों तरफ़ नज़र दौड़ा। वहाँ से ग़ौर से देख, क्यूँकि तू ख़ुद दरया-ए-यर्दन को उबूर नहीं करेगा।
28. अपनी जगह यशूअ को मुक़र्रर कर। उस की हौसलाअफ़्ज़ाई कर और उसे मज़्बूत कर, क्यूँकि वही इस क़ौम को दरया-ए-यर्दन के मग़रिब में ले जाएगा और क़बीलों में उस मुल्क को तक़्सीम करेगा जिसे तू पहाड़ से देखेगा।”
29. चुनाँचे हम बैत-फ़ग़ूर के क़रीब वादी में ठहरे।

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