Deuteronomy (29/34)  

1. जब इस्राईली मोआब में थे तो रब्ब ने मूसा को हुक्म दिया कि इस्राईलियों के साथ एक और अह्द बाँधे। यह उस अह्द के इलावा था जो रब्ब होरिब यानी सीना पर उन के साथ बाँध चुका था।
2. इस सिलसिले में मूसा ने तमाम इस्राईलियों को बुला कर कहा, “तुम ने ख़ुद देखा कि रब्ब ने मिस्र के बादशाह फ़िरऔन, उस के मुलाज़िमों और पूरे मुल्क के साथ क्या कुछ किया।
3. तुम ने अपनी आँखों से वह बड़ी आज़्माइशें, इलाही निशान और मोजिज़े देखे जिन के ज़रीए रब्ब ने अपनी क़ुद्रत का इज़्हार किया।
4. मगर अफ़्सोस, आज तक रब्ब ने तुम्हें न समझदार दिल अता किया, न आँखें जो देख सकें या कान जो सुन सकें।
5. रेगिस्तान में मैं ने 40 साल तक तुम्हारी राहनुमाई की। इस दौरान न तुम्हारे कपड़े फटे और न तुम्हारे जूते घिसे।
6. न तुम्हारे पास रोटी थी, न मै या मै जैसी कोई और चीज़। तो भी रब्ब ने तुम्हारी ज़रूरियात पूरी कीं ताकि तुम सीख लो कि वही रब्ब तुम्हारा ख़ुदा है।
7. फिर हम यहाँ आए तो हस्बोन का बादशाह सीहोन और बसन का बादशाह ओज निकल कर हम से लड़ने आए। लेकिन हम ने उन्हें शिकस्त दी।
8. उन के मुल्क पर क़ब्ज़ा करके हम ने उसे रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले को मीरास में दिया।
9. अब एहतियात से इस अह्द की तमाम शराइत पूरी करो ताकि तुम हर बात में काम्याब हो।
10. इस वक़्त तुम सब रब्ब अपने ख़ुदा के हुज़ूर खड़े हो, तुम्हारे क़बीलों के सरदार, तुम्हारे बुज़ुर्ग, निगहबान, मर्द,
11. औरतें और बच्चे। तेरे दर्मियान रहने वाले परदेसी भी लक्कड़हारों से ले कर पानी भरने वालों तक तेरे साथ यहाँ हाज़िर हैं।
12. तू इस लिए यहाँ जमा हुआ है कि रब्ब अपने ख़ुदा का वह अह्द तस्लीम करे जो वह आज क़सम खा कर तेरे साथ बाँध रहा है।
13. इस से वह आज इस की तस्दीक़ कर रहा है कि तू उस की क़ौम और वह तेरा ख़ुदा है यानी वही बात जिस का वादा उस ने तुझ से और तेरे बापदादा इब्राहीम, इस्हाक़ और याक़ूब से किया था।
14. लेकिन मैं यह अह्द क़सम खा कर न सिर्फ़ तुम्हारे साथ जो हाज़िर हो बाँध रहा हूँ बल्कि तुम्हारी आने वाली नसलों के साथ भी।
15. लेकिन मैं यह अह्द क़सम खा कर न सिर्फ़ तुम्हारे साथ जो हाज़िर हो बाँध रहा हूँ बल्कि तुम्हारी आने वाली नसलों के साथ भी।
16. तुम ख़ुद जानते हो कि हम मिस्र में किस तरह ज़िन्दगी गुज़ारते थे। यह भी तुम्हें याद है कि हम किस तरह मुख़्तलिफ़ ममालिक में से गुज़रते हुए यहाँ तक पहुँचे।
17. तुम ने उन के नफ़रतअंगेज़ बुत देखे जो लकड़ी, पत्थर, चाँदी और सोने के थे।
18. ध्यान दो कि यहाँ मौजूद कोई भी मर्द, औरत, कुम्बा या क़बीला रब्ब अपने ख़ुदा से हट कर दूसरी क़ौमों के देवताओं की पूजा न करे। ऐसा न हो कि तुम्हारे दर्मियान कोई जड़ फूट कर ज़हरीला और कड़वा फल लाए।
19. तुम सब ने वह लानतें सुनी हैं जो रब्ब नाफ़रमानों पर भेजेगा। तो भी हो सकता है कि कोई अपने आप को रब्ब की बर्कत का वारिस समझ कर कहे, “बेशक मैं अपनी ग़लत राहों से हटने के लिए तय्यार नहीं हूँ, लेकिन कोई बात नहीं। मैं मह्फ़ूज़ रहूँगा।” ख़बरदार, ऐसी हर्कत से वह न सिर्फ़ अपने ऊपर बल्कि पूरे मुल्क पर तबाही लाएगा।
20. रब्ब कभी भी उसे मुआफ़ करने पर आमादा नहीं होगा बल्कि वह उसे अपने ग़ज़ब और ग़ैरत का निशाना बनाएगा। इस किताब में दर्ज तमाम लानतें उस पर आएँगी, और रब्ब दुनिया से उस का नाम-ओ-निशान मिटा देगा।
21. वह उसे पूरी जमाअत से अलग करके उस पर अह्द की वह तमाम लानतें लाएगा जो शरीअत की इस किताब में लिखी हुई हैं।
22. मुस्तक़बिल में तुम्हारी औलाद और दूरदराज़ ममालिक से आने वाले मुसाफ़िर उन मुसीबतों और अमराज़ का असर देखेंगे जिन से रब्ब ने मुल्क को तबाह किया होगा।
23. चारों तरफ़ ज़मीन झुलसी हुई और गंधक और नमक से ढकी हुई नज़र आएगी। बीज उस में बोया नहीं जाएगा, क्यूँकि ख़ुदरौ पौदों तक कुछ नहीं उगेगा। तुम्हारा मुल्क सदूम, अमूरा, अदमा और ज़बोईम की मानिन्द होगा जिन को रब्ब ने अपने ग़ज़ब में तबाह किया।
24. तमाम क़ौमें पूछेंगी, ‘रब्ब ने इस मुल्क के साथ ऐसा क्यूँ किया? उस के सख़्त ग़ज़ब की क्या वजह थी?’
25. उन्हें जवाब मिलेगा, ‘वजह यह है कि इस मुल्क के बाशिन्दों ने रब्ब अपने बापदादा के ख़ुदा का अह्द तोड़ दिया जो उस ने उन्हें मिस्र से निकालते वक़्त उन से बाँधा था।
26. उन्हों ने जा कर दीगर माबूदों की ख़िदमत की और उन्हें सिज्दा किया जिन से वह पहले वाक़िफ़ नहीं थे और जो रब्ब ने उन्हें नहीं दिए थे।
27. इसी लिए उस का ग़ज़ब इस मुल्क पर नाज़िल हुआ और वह उस पर वह तमाम लानतें लाया जिन का ज़िक्र इस किताब में है।
28. वह इतना ग़ुस्से हुआ कि उस ने उन्हें जड़ से उखाड़ कर एक अजनबी मुल्क में फैंक दिया जहाँ वह आज तक आबाद हैं।’
29. बहुत कुछ पोशीदा है, और सिर्फ़ रब्ब हमारा ख़ुदा उस का इल्म रखता है। लेकिन उस ने हम पर अपनी शरीअत का इन्किशाफ़ कर दिया है। लाज़िम है कि हम और हमारी औलाद उस के फ़रमाँबरदार रहें।

  Deuteronomy (29/34)