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1. | जब इस्राईली रब्ब के मक़्दिस के पास जमा होते हैं तो उसे हाज़िर होने की इजाज़त नहीं जो काटने या कुचलने से ख़ोजा बन गया है। |
2. | इसी तरह वह भी मुक़द्दस इजतिमा से दूर रहे जो नाजाइज़ ताल्लुक़ात के नतीजे में पैदा हुआ है। उस की औलाद भी दसवीं पुश्त तक उस में नहीं आ सकती। |
3. | कोई भी अम्मोनी या मोआबी मुक़द्दस इजतिमा में शरीक नहीं हो सकता। इन क़ौमों की औलाद दसवीं पुश्त तक भी इस जमाअत में हाज़िर नहीं हो सकती, |
4. | क्यूँकि जब तुम मिस्र से निकल आए तो वह रोटी और पानी ले कर तुम से मिलने न आए। न सिर्फ़ यह बल्कि उन्हों ने मसोपुतामिया के शहर फ़तोर में जा कर बलआम बिन बओर को पैसे दिए ताकि वह तुझ पर लानत भेजे। |
5. | लेकिन रब्ब तेरे ख़ुदा ने बलआम की न सुनी बल्कि उस की लानत बर्कत में बदल दी। क्यूँकि रब्ब तेरा ख़ुदा तुझ से पियार करता है। |
6. | उम्र भर कुछ न करना जिस से इन क़ौमों की सलामती और ख़ुशहाली बढ़ जाए। |
7. | लेकिन अदोमियों को मक्रूह न समझना, क्यूँकि वह तुम्हारे भाई हैं। इसी तरह मिस्रियों को भी मक्रूह न समझना, क्यूँकि तू उन के मुल्क में परदेसी मेहमान था। |
8. | उन की तीसरी नसल के लोग रब्ब के मुक़द्दस इजतिमा में शरीक हो सकते हैं। |
9. | अपने दुश्मनों से जंग करते वक़्त अपनी लश्करगाह में हर नापाक चीज़ से दूर रहना। |
10. | मसलन अगर कोई आदमी रात के वक़्त एहतिलाम के बाइस नापाक हो जाए तो वह लश्करगाह के बाहर जा कर शाम तक वहाँ ठहरे। |
11. | दिन ढलते वक़्त वह नहा ले तो सूरज डूबने पर लश्करगाह में वापस आ सकता है। |
12. | अपनी हाजत रफ़ा करने के लिए लश्करगाह से बाहर कोई जगह मुक़र्रर कर। |
13. | जब किसी को हाजत के लिए बैठना हो तो वह इस के लिए गढ़ा खोदे और बाद में उसे मिट्टी से भर दे। इस लिए अपने सामान में खुदाई का कोई आला रखना ज़रूरी है। |
14. | रब्ब तेरा ख़ुदा तेरी लश्करगाह में तेरे दर्मियान ही घूमता फिरता है ताकि तू मह्फ़ूज़ रहे और दुश्मन तेरे सामने शिकस्त खाए। इस लिए लाज़िम है कि तेरी लश्करगाह उस के लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हो। ऐसा न हो कि अल्लाह वहाँ कोई शर्मनाक बात देख कर तुझ से दूर हो जाए। |
15. | अगर कोई ग़ुलाम तेरे पास पनाह ले तो उसे मालिक को वापस न करना। |
16. | वह तेरे साथ और तेरे दर्मियान ही रहे, वहाँ जहाँ वह बसना चाहे, उस शहर में जो उसे पसन्द आए। उसे न दबाना। |
17. | किसी देवता की ख़िदमत में इस्मतफ़रोशी करना हर इस्राईली औरत और मर्द के लिए मना है। |
18. | मन्नत मानते वक़्त न कस्बी का अज्र, न कुत्ते के पैसे रब्ब के मक़्दिस में लाना, क्यूँकि रब्ब तेरे ख़ुदा को दोनों चीज़ों से घिन है। |
19. | अगर कोई इस्राईली भाई तुझ से क़र्ज़ ले तो उस से सूद न लेना, ख़्वाह तू ने उसे पैसे, खाना या कोई और चीज़ दी हो। |
20. | अपने इस्राईली भाई से सूद न ले बल्कि सिर्फ़ परदेसी से। फिर जब तू मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उस में रहेगा तो रब्ब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बर्कत देगा। |
21. | जब तू रब्ब अपने ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत माने तो उसे पूरा करने में देर न करना। रब्ब तेरा ख़ुदा यक़ीनन तुझ से इस का मुतालबा करेगा। अगर तू उसे पूरा न करे तो क़ुसूरवार ठहरेगा। |
22. | अगर तू मन्नत मानने से बाज़ रहे तो क़ुसूरवार नहीं ठहरेगा, |
23. | लेकिन अगर तू अपनी दिली ख़ुशी से रब्ब के हुज़ूर मन्नत माने तो हर सूरत में उसे पूरा कर। |
24. | किसी हमवतन के अंगूर के बाग़ में से गुज़रते वक़्त तुझे जितना जी चाहे उस के अंगूर खाने की इजाज़त है। लेकिन अपने किसी बर्तन में फल जमा न करना। |
25. | इसी तरह किसी हमवतन के अनाज के खेत में से गुज़रते वक़्त तुझे अपने हाथों से अनाज की बालियाँ तोड़ने की इजाज़त है। लेकिन दरान्ती इस्तेमाल न करना। |
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