Deuteronomy (19/34)  

1. रब्ब तेरा ख़ुदा उस मुल्क में आबाद क़ौमों को तबाह करेगा जो वह तुझे दे रहा है। जब तू उन्हें भगा कर उन के शहरों और घरों में आबाद हो जाएगा
2. तो पूरे मुल्क को तीन हिस्सों में तक़्सीम कर। हर हिस्से में एक मर्कज़ी शहर मुक़र्रर कर। उन तक पहुँचाने वाले रास्ते साफ़-सुथरे रखना। इन शहरों में हर वह शख़्स पनाह ले सकता है जिस के हाथ से कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ है।
3. तो पूरे मुल्क को तीन हिस्सों में तक़्सीम कर। हर हिस्से में एक मर्कज़ी शहर मुक़र्रर कर। उन तक पहुँचाने वाले रास्ते साफ़-सुथरे रखना। इन शहरों में हर वह शख़्स पनाह ले सकता है जिस के हाथ से कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ है।
4. वह ऐसे शहर में जा कर इन्तिक़ाम लेने वालों से मह्फ़ूज़ रहेगा। शर्त यह है कि उस ने न क़सदन और न दुश्मनी के बाइस किसी को मार दिया हो।
5. मसलन दो आदमी जंगल में दरख़्त काट रहे हैं। कुल्हाड़ी चलाते वक़्त एक की कुल्हाड़ी दस्ते से निकल कर उस के साथी को लग जाए और वह मर जाए। ऐसा शख़्स फ़रार हो कर ऐसे शहर में पनाह ले सकता है ताकि बचा रहे।
6. इस लिए ज़रूरी है कि ऐसे शहरों का फ़ासिला ज़ियादा न हो। क्यूँकि जब इन्तिक़ाम लेने वाला उस का ताक़्क़ुब करेगा तो ख़त्रा है कि वह तैश में उसे पकड़ कर मार डाले, अगरचि भागने वाला बेक़ुसूर है। जो कुछ उस ने किया वह दुश्मनी के सबब से नहीं बल्कि ग़ैरइरादी तौर पर हुआ।
7. इस लिए लाज़िम है कि तू पनाह के तीन शहर अलग कर ले।
8. बाद में रब्ब तेरा ख़ुदा तेरी सरहद्दें मज़ीद बढ़ा देगा, क्यूँकि यही वादा उस ने क़सम खा कर तेरे बापदादा से किया है। अपने वादे के मुताबिक़ वह तुझे पूरा मुल्क देगा,
9. अलबत्ता शर्त यह है कि तू एहतियात से उन तमाम अह्काम की पैरवी करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। दूसरे अल्फ़ाज़ में शर्त यह है कि तू रब्ब अपने ख़ुदा को पियार करे और हमेशा उस की राहों में चलता रहे। अगर तू ऐसा ही करे और नतीजतन रब्ब का वादा पूरा हो जाए तो लाज़िम है कि तू पनाह के तीन और शहर अलग कर ले।
10. वर्ना तेरे मुल्क में जो रब्ब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है बेक़ुसूर लोगों को जान से मारा जाएगा और तू ख़ुद ज़िम्मादार ठहरेगा।
11. लेकिन हो सकता है कोई दुश्मनी के बाइस किसी की ताक में बैठ जाए और उस पर हम्ला करके उसे मार डाले। अगर क़ातिल पनाह के किसी शहर में भाग कर पनाह ले
12. तो उस के शहर के बुज़ुर्ग इत्तिला दें कि उसे वापस लाया जाए। उसे इन्तिक़ाम लेने वाले के हवाले किया जाए ताकि उसे सज़ा-ए-मौत मिले।
13. उस पर रहम मत करना। लाज़िम है कि तू इस्राईल में से बेक़ुसूर की मौत का दाग़ मिटाए ताकि तू ख़ुशहाल रहे।
14. जब तू उस मुल्क में रहेगा जो रब्ब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देगा ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे तो ज़मीन की वह हद्दें आगे पीछे न करना जो तेरे बापदादा ने मुक़र्रर कीं।
15. तू किसी को एक ही गवाह के कहने पर क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता। जो भी जुर्म सरज़द हुआ है, कम अज़ कम दो या तीन गवाहों की ज़रूरत है। वर्ना तू उसे क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता।
16. अगर जिस पर इल्ज़ाम लगाया गया है इन्कार करके दावा करे कि गवाह झूट बोल रहा है
17. तो दोनों मक़्दिस में रब्ब के हुज़ूर आ कर ख़िदमत करने वाले इमामों और क़ाज़ियों को अपना मुआमला पेश करें।
18. क़ाज़ी इस का ख़ूब खोज लगाएँ। अगर बात दुरुस्त निकले कि गवाह ने झूट बोल कर अपने भाई पर ग़लत इल्ज़ाम लगाया है
19. तो उस के साथ वह कुछ किया जाए जो वह अपने भाई के लिए चाह रहा था। यूँ तू अपने दर्मियान से बुराई मिटा देगा।
20. फिर तमाम बाक़ी लोग यह सुन कर डर जाएँगे और आइन्दा तेरे दर्मियान ऐसी ग़लत हर्कत करने की जुरअत नहीं करेंगे।
21. क़ुसूरवार पर रहम न करना। उसूल यह हो कि जान के बदले जान, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पाँओ के बदले पाँओ।

  Deuteronomy (19/34)