Deuteronomy (15/34)  

1. हर सात साल के बाद एक दूसरे के कर्ज़े मुआफ़ कर देना।
2. उस वक़्त जिस ने भी किसी इस्राईली भाई को क़र्ज़ दिया है वह उसे मन्सूख़ करे। वह अपने पड़ोसी या भाई को पैसे वापस करने पर मज्बूर न करे, क्यूँकि रब्ब की ताज़ीम में क़र्ज़ मुआफ़ करने के साल का एलान किया गया है।
3. इस साल में तू सिर्फ़ ग़ैरमुल्की क़र्ज़दारों को पैसे वापस करने पर मज्बूर कर सकता है। अपने इस्राईली भाई के तमाम क़र्ज़ मुआफ़ कर देना।
4. तेरे दर्मियान कोई भी ग़रीब नहीं होना चाहिए, क्यूँकि जब तू उस मुल्क में रहेगा जो रब्ब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देने वाला है तो वह तुझे बहुत बर्कत देगा।
5. लेकिन शर्त यह है कि तू पूरे तौर पर उस की सुने और एहतियात से उस के उन तमाम अह्काम पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ।
6. फिर रब्ब तुम्हारा ख़ुदा तुझे अपने वादे के मुताबिक़ बर्कत देगा। तू किसी भी क़ौम से उधार नहीं लेगा बल्कि बहुत सी क़ौमों को उधार देगा। कोई भी क़ौम तुझ पर हुकूमत नहीं करेगी बल्कि तू बहुत सी क़ौमों पर हुकूमत करेगा।
7. जब तू उस मुल्क में आबाद होगा जो रब्ब तेरा ख़ुदा तुझे देने वाला है तो अपने दर्मियान रहने वाले ग़रीब भाई से सख़्त सुलूक न करना, न कंजूस होना।
8. खुले दिल से उस की मदद कर। जितनी उसे ज़रूरत है उसे उधार के तौर पर दे।
9. ख़बरदार, ऐसा मत सोच कि क़र्ज़ मुआफ़ करने का साल क़रीब है, इस लिए मैं उसे कुछ नहीं दूँगा। अगर तू ऐसी शरीर बात अपने दिल में सोचते हुए ज़रूरतमन्द भाई को क़र्ज़ देने से इन्कार करे और वह रब्ब के सामने तेरी शिकायत करे तो तू क़ुसूरवार ठहरेगा।
10. उसे ज़रूर कुछ दे बल्कि ख़ुशी से दे। फिर रब्ब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बर्कत देगा।
11. मुल्क में हमेशा ग़रीब और ज़रूरतमन्द लोग पाए जाएँगे, इस लिए मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि खुले दिल से अपने ग़रीब और ज़रूरतमन्द भाइयों की मदद कर।
12. अगर कोई इस्राईली भाई या बहन अपने आप को बेच कर तेरा ग़ुलाम बन जाए तो वह छः साल तेरी ख़िदमत करे। लेकिन लाज़िम है कि सातवें साल उसे आज़ाद कर दिया जाए।
13. आज़ाद करते वक़्त उसे ख़ाली हाथ फ़ारिग़ न करना
14. बल्कि अपनी भेड़-बक्रियों, अनाज, तेल और मै से उसे फ़य्याज़ी से कुछ दे, यानी उन चीज़ों में से जिन से रब्ब तेरे ख़ुदा ने तुझे बर्कत दी है।
15. याद रख कि तू भी मिस्र में ग़ुलाम था और कि रब्ब तेरे ख़ुदा ने फ़िद्या दे कर तुझे छुड़ाया। इसी लिए मैं आज तुझे यह हुक्म देता हूँ।
16. लेकिन मुम्किन है कि तेरा ग़ुलाम तुझे छोड़ना न चाहे, क्यूँकि वह तुझ से और तेरे ख़ान्दान से मुहब्बत रखता है, और वह तेरे पास रह कर ख़ुशहाल है।
17. इस सूरत में उसे दरवाज़े के पास ले जा और उस के कान की लौ चौखट के साथ लगा कर उसे सुताली यानी तेज़ औज़ार से छेद दे। तब वह ज़िन्दगी भर तेरा ग़ुलाम बना रहेगा। अपनी लौंडी के साथ भी ऐसा ही करना।
18. अगर ग़ुलाम तुझे छः साल के बाद छोड़ना चाहे तो बुरा न मानना। आख़िर अगर उस की जगह कोई और वही काम तनख़्वाह के लिए करता तो तेरे अख़्राजात दुगने होते। उसे आज़ाद करना तो रब्ब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बर्कत देगा।
19. अपनी गाइयों और भेड़-बक्रियों के नर पहलौठे रब्ब अपने ख़ुदा के लिए मख़्सूस करना। न गाय के पहलौठे को काम के लिए इस्तेमाल करना, न भेड़ के पहलौठे के बाल कतरना।
20. हर साल ऐसे बच्चे उस जगह ले जा जो रब्ब अपने मक़्दिस के लिए चुनेगा। वहाँ उन्हें रब्ब अपने ख़ुदा के हुज़ूर अपने पूरे ख़ान्दान समेत खाना।
21. अगर ऐसे जानवर में कोई ख़राबी हो, वह अंधा या लंगड़ा हो या उस में कोई और नुक़्स हो तो उसे रब्ब अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बान न करना।
22. ऐसे जानवर तू घर में ज़बह करके खा सकता है। वह हिरन और ग़ज़ाल की मानिन्द हैं जिन्हें तू खा तो सकता है लेकिन क़ुर्बानी के तौर पर पेश नहीं कर सकता। पाक और नापाक शख़्स दोनों उसे खा सकते हैं।
23. लेकिन ख़ून न खाना। उसे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेल कर ज़ाए कर देना।

  Deuteronomy (15/34)