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1. | ज़ैल में वह अह्काम और क़वानीन हैं जिन पर तुम्हें ध्यान से अमल करना होगा जब तुम उस मुल्क में आबाद होगे जो रब्ब तेरे बापदादा का ख़ुदा तुझे दे रहा है ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे। मुल्क में रहते हुए उम्र भर उन के ताबे रहो। |
2. | उन तमाम जगहों को बर्बाद करो जहाँ वह क़ौमें जिन्हें तुम्हें निकालना है अपने देवताओं की पूजा करती हैं, ख़्वाह वह ऊँचे पहाड़ों, पहाड़ियों या घने दरख़्तों के साय में क्यूँ न हों। |
3. | उन की क़ुर्बानगाहों को ढा देना। जिन पत्थरों की पूजा वह करते हैं उन्हें चिकना-चूर कर देना। यसीरत देवी के खम्बे जला देना। उन के देवताओं के मुजस्समे काट डालना। ग़रज़ इन जगहों से उन का नाम-ओ-निशान मिट जाए। |
4. | रब्ब अपने ख़ुदा की परस्तिश करने के लिए उन के तरीक़े न अपनाना। |
5. | रब्ब तुम्हारा ख़ुदा क़बीलों में से अपने नाम की सुकूनत के लिए एक जगह चुन लेगा। इबादत के लिए वहाँ जाया करो, |
6. | और वहाँ अपनी तमाम क़ुर्बानियाँ ला कर पेश करो, ख़्वाह वह भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ, ज़बह की क़ुर्बानियाँ, पैदावार का दसवाँ हिस्सा, उठाने वाली क़ुर्बानियाँ, मन्नत के हदिए, ख़ुशी से पेश की गई क़ुर्बानियाँ या मवेशियों के पहलौठे क्यूँ न हों। |
7. | वहाँ रब्ब अपने ख़ुदा के हुज़ूर अपने घरानों समेत खाना खा कर उन काम्याबियों की ख़ुशी मनाओ जो तुझे रब्ब तेरे ख़ुदा की बर्कत के बाइस हासिल हुई हैं। |
8. | उस वक़्त तुम्हें वह नहीं करना जो हम करते आए हैं। आज तक हर कोई अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ इबादत करता है, |
9. | क्यूँकि अब तक तुम आराम की उस जगह नहीं पहुँचे जो तुझे रब्ब तेरे ख़ुदा से मीरास में मिलनी है। |
10. | लेकिन जल्द ही तुम दरया-ए-यर्दन को पार करके उस मुल्क में आबाद हो जाओगे जो रब्ब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें मीरास में दे रहा है। उस वक़्त वह तुम्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों से बचाए रखेगा, और तुम आराम और सुकून से ज़िन्दगी गुज़ार सकोगे। |
11. | तब रब्ब तुम्हारा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए एक जगह चुन लेगा, और तुम्हें सब कुछ जो मैं बताऊँगा वहाँ ला कर पेश करना है, ख़्वाह वह भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ, ज़बह की क़ुर्बानियाँ, पैदावार का दसवाँ हिस्सा, उठाने वाली क़ुर्बानियाँ या मन्नत के ख़ास हदिए क्यूँ न हों। |
12. | वहाँ रब्ब के सामने तुम, तुम्हारे बेटे-बेटियाँ, तुम्हारे ग़ुलाम और लौंडियाँ ख़ुशी मनाएँ। अपने शहरों में आबाद लावियों को भी अपनी ख़ुशी में शरीक करो, क्यूँकि उन के पास मौरूसी ज़मीन नहीं होगी। |
13. | ख़बरदार, अपनी भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ हर जगह पर पेश न करना |
14. | बल्कि सिर्फ़ उस जगह पर जो रब्ब क़बीलों में से चुनेगा। वहीं सब कुछ यूँ मना जिस तरह मैं तुझे बताता हूँ। |
15. | लेकिन वह जानवर इस में शामिल नहीं हैं जो तू क़ुर्बानी के तौर पर पेश नहीं करना चाहता बल्कि सिर्फ़ खाना चाहता है। ऐसे जानवर तू आज़ादी से अपने तमाम शहरों में ज़बह करके उस बर्कत के मुताबिक़ खा सकता है जो रब्ब तेरे ख़ुदा ने तुझे दी है। ऐसा गोश्त हिरन और ग़ज़ाल के गोश्त की मानिन्द है यानी पाक और नापाक दोनों ही उसे खा सकते हैं। |
16. | लेकिन ख़ून न खाना। उसे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेल कर ज़ाए कर देना। |
17. | जो भी चीज़ें रब्ब के लिए मख़्सूस की गई हैं उन्हें अपने शहरों में न खाना मसलन अनाज, अंगूर के रस और ज़ैतून के तेल का दसवाँ हिस्सा, मवेशियों के पहलौठे, मन्नत के हदिए, ख़ुशी से पेश की गई क़ुर्बानियाँ और उठाने वाली क़ुर्बानियाँ। |
18. | यह चीज़ें सिर्फ़ रब्ब के हुज़ूर खाना यानी उस जगह पर जिसे वह मक़्दिस के लिए चुनेगा। वहीं तू अपने बेटे-बेटियों, ग़ुलामों, लौंडियों और अपने क़बाइली इलाक़े के लावियों के साथ जमा हो कर ख़ुशी मना कि रब्ब ने हमारी मेहनत को बर्कत दी है। |
19. | अपने मुल्क में लावियों की ज़रूरियात उम्र भर पूरी करने की फ़िक्र रख। |
20. | जब रब्ब तेरा ख़ुदा अपने वादे के मुताबिक़ तेरी सरहद्दें बढ़ा देगा और तू गोश्त खाने की ख़्वाहिश रखेगा तो जिस तरह जी चाहे गोश्त खा सकेगा। |
21. | अगर तेरा घर उस मक़्दिस से दूर हो जिसे रब्ब तेरा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा तो तू जिस तरह जी चाहे अपने शहरों में रब्ब से मिले हुए मवेशियों को ज़बह करके खा सकता है। लेकिन ऐसा ही करना जैसा मैं ने हुक्म दिया है। |
22. | ऐसा गोश्त हिरन और ग़ज़ाल के गोश्त की मानिन्द है यानी पाक और नापाक दोनों ही उसे खा सकते हैं। |
23. | अलबत्ता गोश्त के साथ ख़ून न खाना, क्यूँकि ख़ून जानदार की जान है। उस की जान गोश्त के साथ न खाना। |
24. | ख़ून न खाना बल्कि उसे ज़मीन पर उंडेल कर ज़ाए कर देना। |
25. | उसे न खाना ताकि तुझे और तेरी औलाद को काम्याबी हासिल हो, क्यूँकि ऐसा करने से तू रब्ब की नज़र में सहीह काम करेगा। |
26. | लेकिन जो चीज़ें रब्ब के लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हैं या जो तू ने मन्नत मान कर उस के लिए मख़्सूस की हैं लाज़िम है कि तू उन्हें उस जगह ले जाए जिसे रब्ब मक़्दिस के लिए चुनेगा। |
27. | वहीं, रब्ब अपने ख़ुदा की क़ुर्बानगाह पर अपनी भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ गोश्त और ख़ून समेत चढ़ा। ज़बह की क़ुर्बानियों का ख़ून क़ुर्बानगाह पर उंडेल देना, लेकिन उन का गोश्त तू खा सकता है। |
28. | जो भी हिदायात मैं तुझे दे रहा हूँ उन्हें एहतियात से पूरा कर। फिर तू और तेरी औलाद ख़ुशहाल रहेंगे, क्यूँकि तू वह कुछ करेगा जो रब्ब तेरे ख़ुदा की नज़र में अच्छा और दुरुस्त है। |
29. | रब्ब तेरा ख़ुदा उन क़ौमों को मिटा देगा जिन की तरफ़ तू बढ़ रहा है। तू उन्हें उन के मुल्क से निकालता जाएगा और ख़ुद उस में आबाद हो जाएगा। |
30. | लेकिन ख़बरदार, उन के ख़त्म होने के बाद भी उन के देवताओं के बारे में मालूमात हासिल न कर, वर्ना तू फंस जाएगा। मत कहना कि यह क़ौमें किस तरीक़े से अपने देवताओं की पूजा करती हैं? हम भी ऐसा ही करें। |
31. | ऐसा मत कर! यह क़ौमें ऐसे घिनौने तरीक़े से पूजा करती हैं जिन से रब्ब नफ़रत करता है। वह अपने बच्चों को भी जला कर अपने देवताओं को पेश करते हैं। |
32. | कलाम की जो भी बात मैं तुमहें पेश करता हूँ उस के ताबे रह कर उस पर अमल करो। न किसी बात का इज़ाफ़ा करना, न कोई बात निकालना। |
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