Daniel (6/12)  

1. दारा ने सल्तनत के तमाम सूबों पर 120 सूबेदार मुतअय्यिन करने का फ़ैसला किया।
2. उन पर तीन वज़ीर मुक़र्रर थे जिन में से एक दान्याल था। गवर्नर उन के सामने जवाबदिह थे ताकि बादशाह को नुक़्सान न पहुँचे।
3. जल्द ही पता चला कि दान्याल दूसरे वज़ीरों और सूबेदारों पर सब्क़त रखता था, क्यूँकि वह ग़ैरमामूली ज़िहानत का मालिक था। नतीजतन बादशाह ने उसे पूरी सल्तनत पर मुक़र्रर करने का इरादा किया।
4. जब दीगर वज़ीरों और सूबेदारों को यह बात मालूम हुई तो वह दान्याल पर इल्ज़ाम लगाने का बहाना ढूँडने लगे। लेकिन वह अपनी ज़िम्मादारियों को निभाने में इतना क़ाबिल-ए-एतिमाद था कि वह नाकाम रहे। क्यूँकि न वह रिश्वतखोर था, न किसी काम में सुस्त।
5. आख़िरकार वह आदमी आपस में कहने लगे, “इस तरीक़े से हमें दान्याल पर इल्ज़ाम लगाने का मौक़ा नहीं मिलेगा। लेकिन एक बात है जो इल्ज़ाम का बाइस बन सकती है यानी उस के ख़ुदा की शरीअत।”
6. तब वह गुरोह की सूरत में बादशाह के सामने हाज़िर हुए और कहने लगे, “दारा बादशाह अबद तक जीते रहें!
7. सल्तनत के तमाम वज़ीर, गवर्नर, सूबेदार, मुशीर और मुन्तज़िम आपस में मश्वरा करके मुत्तफ़िक़ हुए हैं कि अगले 30 दिन के दौरान सब को सिर्फ़ बादशाह से दुआ करनी चाहिए। बादशाह एक फ़रमान सादिर करें कि जो भी किसी और माबूद या इन्सान से इल्तिजा करे उसे शेरों की मान्द में फैंका जाएगा। ध्यान देना चाहिए कि सब ही इस पर अमल करें।
8. ऐ बादशाह, गुज़ारिश है कि आप यह फ़रमान ज़रूर सादिर करें बल्कि लिख कर उस की तस्दीक़ भी करें ताकि उसे तब्दील न किया जा सके। तब वह मादियों और फ़ार्सियों के क़वानीन का हिस्सा बन कर मन्सूख़ नहीं किया जा सकेगा।”
9. दारा बादशाह मान गया। उस ने फ़रमान लिखवा कर उस की तस्दीक़ की।
10. जब दान्याल को मालूम हुआ कि फ़रमान सादिर हुआ है तो वह सीधा अपने घर में चला गया। छत पर एक कमरा था जिस की खुली खिड़कियों का रुख़ यरूशलम की तरफ़ था। इस कमरे में दान्याल रोज़ाना तीन बार अपने घुटने टेक कर दुआ और अपने ख़ुदा की सिताइश करता था। अब भी उस ने यह सिलसिला जारी रखा।
11. जूँ ही दान्याल अपने ख़ुदा से दुआ और इल्तिजा कर रहा था तो उस के दुश्मनों ने गुरोह की सूरत में घर में घुस कर उसे यह करते हुए पाया।
12. तब वह बादशाह के पास गए और उसे शाही फ़रमान की याद दिलाई, “क्या आप ने फ़रमान सादिर नहीं किया था कि अगले 30 दिन के दौरान सब को सिर्फ़ बादशाह से दुआ करनी है, और जो किसी और माबूद या इन्सान से इल्तिजा करे उसे शेरों की मान्द में फैंका जाएगा?” बादशाह ने जवाब दिया, “जी, यह फ़रमान क़ाइम है बल्कि मादियों और फ़ार्सियों के क़वानीन का हिस्सा है जो मन्सूख़ नहीं किया जा सकता।”
13. उन्हों ने कहा, “ऐ बादशाह, दान्याल जो यहूदाह के जिलावतनों में से है न आप की पर्वा करता, न उस फ़रमान की जिस की आप ने लिख कर तस्दीक़ की। अभी तक वह रोज़ाना तीन बार अपने ख़ुदा से दुआ करता है।”
14. यह सुन कर बादशाह को बड़ी दिक़्क़त मह्सूस हुई। पूरा दिन वह सोचता रहा कि मैं दान्याल को किस तरह बचाऊँ। सूरज के ग़ुरूब होने तक वह उसे छुड़ाने के लिए कोशाँ रहा।
15. लेकिन आख़िरकार वह आदमी गुरोह की सूरत में दुबारा बादशाह के हुज़ूर आए और कहने लगे, “बादशाह को याद रहे कि मादियों और फ़ार्सियों के क़वानीन के मुताबिक़ जो भी फ़रमान बादशाह सादिर करे उसे तब्दील नहीं किया जा सकता।”
16. चुनाँचे बादशाह ने हुक्म दिया कि दान्याल को पकड़ कर शेरों की मान्द में फैंका जाए। ऐसा ही हुआ। बादशाह बोला, “ऐ दान्याल, जिस ख़ुदा की इबादत तुम बिलानाग़ा करते आए हो वह तुम्हें बचाए।”
17. फिर मान्द के मुँह पर पत्थर रखा गया, और बादशाह ने अपनी मुहर और अपने बड़ों की मुहरें उस पर लगाईं ताकि कोई भी उसे खोल कर दान्याल की मदद न करे।
18. इस के बाद बादशाह शाही महल में वापस चला गया और पूरी रात रोज़ा रखे हुए गुज़ारी। न कुछ उस का दिल बहलाने के लिए उस के पास लाया गया, न उसे नींद आई।
19. जब पौ फटने लगी तो वह उठ कर शेरों की मान्द के पास गया।
20. उस के क़रीब पहुँच कर बादशाह ने ग़मगीन आवाज़ से पुकारा, “ऐ ज़िन्दा ख़ुदा के बन्दे दान्याल, क्या तुम्हारे ख़ुदा जिस की तुम बिलानाग़ा इबादत करते रहे हो तुम्हें शेरों से बचा सका?”
21. दान्याल ने जवाब दिया, “बादशाह अबद तक जीते रहें!
22. मेरे ख़ुदा ने अपने फ़रिश्ते को भेज दिया जिस ने शेरों के मुँह को बन्द किए रखा। उन्हों ने मुझे कोई भी नुक़्सान न पहुँचाया, क्यूँकि अल्लाह के सामने मैं बेक़ुसूर हूँ। बादशाह सलामत के ख़िलाफ़ भी मुझ से जुर्म नहीं हुआ।”
23. यह सुन कर बादशाह आपे में न समाया। उस ने दान्याल को मान्द से निकालने का हुक्म दिया। जब उसे खैंच कर निकाला गया तो मालूम हुआ कि उसे कोई भी नुक़्सान नहीं पहुँचा। यूँ उसे अल्लाह पर भरोसा रखने का अज्र मिला।
24. लेकिन जिन आदमियों ने दान्याल पर इल्ज़ाम लगाया था उन का बुरा अन्जाम हुआ। बादशाह के हुक्म पर उन्हें उन के बाल-बच्चों समेत शेरों की मान्द में फैंका गया। मान्द के फ़र्श पर गिरने से पहले ही शेर उन पर झपट पड़े और उन्हें फाड़ कर उन की हड्डियों को चबा लिया।
25. फिर दारा बादशाह ने सल्तनत की तमाम क़ौमों, उम्मतों और अहल-ए-ज़बान को ज़ैल का पैग़ाम भेजा, “सब की सलामती हो!
26. मेरा फ़रमान सुनो! लाज़िम है कि मेरी सल्तनत की हर जगह लोग दान्याल के ख़ुदा के सामने थरथराएँ और उस का ख़ौफ़ मानें। क्यूँकि वह ज़िन्दा ख़ुदा और अबद तक क़ाइम है। न कभी उस की बादशाही तबाह, न उस की हुकूमत ख़त्म होगी।
27. वही बचाता और नजात देता है, वही आस्मान-ओ-ज़मीन पर इलाही निशान और मोजिज़े दिखाता है। उसी ने दान्याल को शेरों के क़ब्ज़े से बचाया।”
28. चुनाँचे दान्याल को दारा बादशाह और फ़ार्स के बादशाह ख़ोरस के दौर-ए-हुकूमत में बहुत काम्याबी हासिल हुई।

  Daniel (6/12)