Daniel (4/12)  

1. नबूकद्नज़्ज़र दुनिया की तमाम क़ौमों, उम्मतों और ज़बानों के अफ़राद को ज़ैल का पैग़ाम भेजता है, सब की सलामती हो!
2. मैं ने सब को उन इलाही निशानात और मोजिज़ात से आगाह करने का फ़ैसला किया है जो अल्लाह तआला ने मेरे लिए किए हैं।
3. उस के निशान कितने अज़ीम, उस के मोजिज़ात कितने ज़बरदस्त हैं! उस की बादशाही अबदी है, उस की सल्तनत नसल-दर-नसल क़ाइम रहती है।
4. मैं, नबूकद्नज़्ज़र ख़ुशी और सुकून से अपने महल में रहता था।
5. लेकिन एक दिन मैं एक ख़्वाब देख कर बहुत घबरा गया। मैं पलंग पर लेटा हुआ था कि इतनी हौलनाक बातें और रोयाएँ मेरे सामने से गुज़रीं कि मैं डर गया।
6. तब मैं ने हुक्म दिया कि बाबल के तमाम दानिशमन्द मेरे पास आएँ ताकि मेरे लिए ख़्वाब की ताबीर करें।
7. क़िस्मत का हाल बताने वाले, जादूगर, नजूमी और ग़ैबदान पहुँचे तो मैं ने उन्हें अपना ख़्वाब बयान किया, लेकिन वह उस की ताबीर करने में नाकाम रहे।
8. आख़िरकार दान्याल मेरे हुज़ूर आया जिस का नाम बेल्तशज़्ज़र रखा गया है (मेरे देवता का नाम बेल है)। दान्याल में मुक़द्दस देवताओं की रूह है। उसे भी मैं ने अपना ख़्वाब सुनाया।
9. मैं बोला, “ऐ बेल्तशज़्ज़र, तुम जादूगरों के सरदार हो, और मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस देवताओं की रूह तुम में है। कोई भी भेद तुम्हारे लिए इतना मुश्किल नहीं है कि तुम उसे खोल न सको। अब मेरा ख़्वाब सुन कर उस की ताबीर करो!
10. पलंग पर लेटे हुए मैं ने रोया में देखा कि दुनिया के बीच में निहायत लम्बा सा दरख़्त लगा है।
11. यह दरख़्त इतना ऊँचा और तनावर होता गया कि आख़िरकार उस की चोटी आस्मान तक पहुँच गई और वह दुनिया की इन्तिहा तक नज़र आया।
12. उस के पत्ते ख़ूबसूरत थे, और वह बहुत फल लाता था। उस के साय में जंगली जानवर पनाह लेते, उस की शाख़ों में परिन्दे बसेरा करते थे। हर इन्सान-ओ-हैवान को उस से ख़ुराक मिलती थी।
13. मैं अभी दरख़्त को देख रहा था कि एक मुक़द्दस फ़रिश्ता आस्मान से उतर आया।
14. उस ने बड़े ज़ोर से आवाज़ दी, ‘दरख़्त को काट डालो! उस की शाख़ें तोड़ दो, उस के पत्ते झाड़ दो, उस का फल बिखेर दो! जानवर उस के साय में से निकल कर भाग जाएँ, परिन्दे उस की शाख़ों से उड़ जाएँ।
15. लेकिन उस का मुढ जड़ों समेत ज़मीन में रहने दो। उसे लोहे और पीतल की ज़न्जीरों में जकड़ कर खुले मैदान की घास में छोड़ दो। वहाँ उसे आस्मान की ओस तर करे, और जानवरों के साथ ज़मीन की घास ही उस को नसीब हो।
16. सात साल तक उस का इन्सानी दिल जानवर के दिल में बदल जाए।
17. क्यूँकि मुक़द्दस फ़रिश्तों ने फ़त्वा दिया है कि ऐसा ही हो ताकि इन्सान जान ले कि अल्लाह तआला का इख़तियार इन्सानी सल्तनतों पर है। वह अपनी ही मर्ज़ी से लोगों को उन पर मुक़र्रर करता है, ख़्वाह वह कितने ज़लील क्यूँ न हों।’
18. मैं, नबूकद्नज़्ज़र ने ख़्वाब में यह कुछ देखा। ऐ बेल्तशज़्ज़र, अब मुझे इस की ताबीर पेश करो। मेरी सल्तनत के तमाम दानिशमन्द इस में नाकाम रहे हैं। लेकिन तुम यह कर पाओगे, क्यूँकि तुम में मुक़द्दस देवताओं की रूह है।”
19. तब बेल्तशज़्ज़र यानी दान्याल के रोंगटे खड़े हो गए, और जो ख़यालात उभर आए उन से उस पर काफ़ी देर तक सख़्त दह्शत तारी रही। आख़िरकार बादशाह बोला, “ऐ बेल्तशज़्ज़र, ख़्वाब और उस का मतलब तुझे इतना दह्शतज़दा न करे।” बीलतशज़र ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा, काश ख़्वाब की बातें आप के दुश्मनों और मुख़ालिफ़ों को पेश आएँ!
20. आप ने एक दरख़्त देखा जो इतना ऊँचा और तनावर हो गया कि उस की चोटी आस्मान तक पहुँची और वह पूरी दुनिया को नज़र आया।
21. उस के पत्ते ख़ूबसूरत थे, और वह बहुत सा फल लाता था। उस के साय में जंगली जानवर पनाह लेते, उस की शाख़ों में परिन्दे बसेरा करते थे। हर इन्सान-ओ-हैवान को उस से ख़ुराक मिलती थी।
22. ऐ बादशाह, आप ही यह दरख़्त हैं! आप ही बड़े और ताक़तवर हो गए हैं बल्कि आप की अज़्मत बढ़ते बढ़ते आस्मान से बातें करने लगी, आप की सल्तनत दुनिया की इन्तिहा तक फैल गई है।
23. ऐ बादशाह, इस के बाद आप ने एक मुक़द्दस फ़रिश्ते को देखा जो आस्मान से उतर कर बोला, दरख़्त को काट डालो! उसे तबाह करो, लेकिन उस का मुढ जड़ों समेत ज़मीन में रहने दो। उसे लोहे और पीतल की ज़न्जीरों में जकड़ कर खुले मैदान की घास में छोड़ दो। वहाँ उसे आस्मान की ओस तर करे, और जानवरों के साथ ज़मीन की घास ही उस को नसीब हो। सात साल यूँ ही गुज़र जाएँ।
24. ऐ बादशाह, इस का मतलब यह है, अल्लाह तआला ने मेरे आक़ा बादशाह के बारे में फ़ैसला किया है
25. कि आप को इन्सानी संगत से निकाल कर भगाया जाएगा। तब आप जंगली जानवरों के साथ रह कर बैलों की तरह घास चरेंगे और आस्मान की ओस से तर हो जाएँगे। सात साल यूँ ही गुज़रेंगे। फिर आख़िरकार आप इक़्रार करेंगे कि अल्लाह तआला का इन्सानी सल्तनतों पर इख़तियार है, वह अपनी ही मर्ज़ी से लोगों को उन पर मुक़र्रर करता है।
26. लेकिन ख़्वाब में यह भी कहा गया कि दरख़्त के मुढ को जड़ों समेत ज़मीन में छोड़ा जाए। इस का मतलब है कि आप की सल्तनत ताहम क़ाइम रहेगी। जब आप एतिराफ़ करेंगे कि तमाम इख़तियार आस्मान के हाथ में है तो आप को सल्तनत वापस मिलेगी।
27. ऐ बादशाह, अब मेहरबानी से मेरा मश्वरा क़बूल फ़रमाएँ। इन्साफ़ करके और मज़्लूमों पर करम फ़रमा कर अपने गुनाहों को दूर करें। शायद ऐसा करने से आप की ख़ुशहाली क़ाइम रहे।”
28. दान्याल की हर बात नबूकद्नज़्ज़र को पेश आई।
29. बारह महीने के बाद बादशाह बाबल में अपने शाही महल की छत पर टहल रहा था।
30. तब वह कहने लगा, “लो, यह अज़ीम शहर देखो जो मैं ने अपनी रिहाइश के लिए तामीर किया है! यह सब कुछ मैं ने अपनी ही ज़बरदस्त क़ुव्वत से बना लिया है ताकि मेरी शान-ओ-शौकत मज़ीद बढ़ती जाए।”
31. बादशाह यह बात बोल ही रहा था कि आस्मान से आवाज़ सुनाई दी, “ऐ नबूकद्नज़्ज़र बादशाह, सुन! सल्तनत तुझ से छीन ली गई है।
32. तुझे इन्सानी संगत से निकाल कर भगाया जाएगा, और तू जंगली जानवरों के साथ रह कर बैल की तरह घास चरेगा। सात साल यूँ ही गुज़र जाएँगे। फिर आख़िरकार तू इक़्रार करेगा कि अल्लाह तआला का इन्सानी सल्तनतों पर इख़तियार है, वह अपनी ही मर्ज़ी से लोगों को उन पर मुक़र्रर करता है।”
33. जूँ ही आवाज़ बन्द हुई तो ऐसा ही हुआ। नबूकद्नज़्ज़र को इन्सानी संगत से निकाल कर भगाया गया, और वह बैलों की तरह घास चरने लगा। उस का जिस्म आस्मान की ओस से तर होता रहा। होते होते उस के बाल उक़ाब के परों जितने लम्बे और उस के नाख़ुन परिन्दे के चंगुल की मानिन्द हुए।
34. लेकिन सात साल गुज़रने के बाद मैं, नबूकद्नज़्ज़र अपनी आँखों को आस्मान की तरफ़ उठा कर दुबारा होश में आया। तब मैं ने अल्लाह तआला की तम्जीद की, मैं ने उस की हम्द-ओ-सना की जो हमेशा तक ज़िन्दा है। उस की हुकूमत अबदी है, उस की सल्तनत नसल-दर-नसल क़ाइम रहती है।
35. उस की निस्बत दुनिया के तमाम बाशिन्दे सिफ़र के बराबर हैं। वह आस्मानी फ़ौज और दुनिया के बाशिन्दों के साथ जो जी चाहे करता है। उसे कुछ करने से कोई नहीं रोक सकता, कोई उस से जवाब तलब करके पूछ नहीं सकता, “तू ने क्या किया?”
36. जूँ ही मैं दुबारा होश में आया तो मुझे पहली शाही इज़्ज़त और शान-ओ-शौकत भी अज़ सर-ए-नौ हासिल हुई। मेरे मुशीर और शुरफ़ा दुबारा मेरे सामने हाज़िर हुए, और मुझे दुबारा तख़्त पर बिठाया गया। पहले की निस्बत मेरी अज़्मत में इज़ाफ़ा हुआ।
37. अब मैं, नबूकद्नज़्ज़र आस्मान के बादशाह की हम्द-ओ-सना करता हूँ। मैं उसी को जलाल देता हूँ, क्यूँकि जो कुछ भी वह करे वह सहीह है। उस की तमाम राहें मुन्सिफ़ाना हैं। जो मग़रूर हो कर ज़िन्दगी गुज़ारते हैं उन्हें वह पस्त करने के क़ाबिल है।

  Daniel (4/12)