Daniel (2/12)  

1. अपनी हुकूमत के दूसरे साल में नबूकद्नज़्ज़र ने ख़्वाब देखा। ख़्वाब इतना हौलनाक था कि वह घबरा कर जाग उठा।
2. उस ने हुक्म दिया कि तमाम क़िस्मत का हाल बताने वाले, जादूगर, अफ़्सूँगर और नजूमी मेरे पास आ कर ख़्वाब का मतलब बताएँ। जब वह हाज़िर हुए
3. तो बादशाह बोला, “मैं ने एक ख़्वाब देखा है जो मुझे बहुत परेशान कर रहा है। अब मैं उस का मतलब जानना चाहता हूँ।”
4. नुजूमियों ने अरामी ज़बान में जवाब दिया, “बादशाह सलामत अपने ख़ादिमों के सामने यह ख़्वाब बयान करें तो हम उस की ताबीर करेंगे।”
5. लेकिन बादशाह बोला, “नहीं, तुम ही मुझे वह कुछ बताओ और उस की ताबीर करो जो मैं ने ख़्वाब में देखा। अगर तुम यह न कर सको तो मैं हुक्म दूँगा कि तुम्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए और तुम्हारे घर कचरे के ढेर हो जाएँ। यह मेरा मुसम्मम इरादा है।
6. लेकिन अगर तुम मुझे वह कुछ बता कर उस की ताबीर करो जो मैं ने ख़्वाब में देखा तो मैं तुमहें अच्छे तुह्फ़े और इनआम दूँगा, नीज़ तुम्हारी ख़ास इज़्ज़त करूँगा। अब शुरू करो! मुझे वह कुछ बताओ और उस की ताबीर करो जो मैं ने ख़्वाब में देखा।”
7. एक बार फिर उन्हों ने मिन्नत की, “बादशाह अपने ख़ादिमों के सामने अपना ख़्वाब बताएँ तो हम ज़रूर उस की ताबीर करेंगे।”
8. बादशाह ने जवाब दिया, “मुझे साफ़ पता है कि तुम क्या कर रहे हो! तुम सिर्फ़ टाल-मटोल कर रहे हो, क्यूँकि तुम समझ गए हो कि मेरा इरादा पक्का है।
9. अगर तुम मुझे ख़्वाब न बताओ तो तुम सब को एक ही सज़ा दी जाएगी। क्यूँकि तुम सब झूट और ग़लत बातें पेश करने पर मुत्तफ़िक़ हो गए हो, यह उम्मीद रखते हुए कि हालात किसी वक़्त बदल जाएँगे। मुझे ख़्वाब बताओ तो मुझे पता चल जाएगा कि तुम मुझे उस की सहीह ताबीर पेश कर सकते हो।”
10. नुजूमियों ने एतिराज़ किया, “दुनिया में कोई भी इन्सान वह कुछ नहीं कर पाता जो बादशाह माँगते हैं। यह कभी हुआ भी नहीं कि किसी बादशाह ने ऐसी बात किसी क़िस्मत का हाल बताने वाले, जादूगर या नजूमी से तलब की, ख़्वाह बादशाह कितना अज़ीम क्यूँ न था।
11. जिस चीज़ का तक़ाज़ा बादशाह करते हैं वह हद्द से ज़ियादा मुश्किल है। सिर्फ़ देवता ही यह बात बादशाह पर ज़ाहिर कर सकते हैं, लेकिन वह तो इन्सान के दर्मियान रहते नहीं।”
12. यह सुन कर बादशाह आग-बगूला हो गया। बड़े ग़ुस्से में उस ने हुक्म दिया कि बाबल के तमाम दानिशमन्दों को सज़ा-ए-मौत दी जाए।
13. फ़रमान सादिर हुआ कि दानिशमन्दों को मार डालना है। चुनाँचे दान्याल और उस के दोस्तों को भी तलाश किया गया ताकि उन्हें सज़ा-ए-मौत दें।
14. शाही मुहाफ़िज़ों का अफ़्सर बनाम अर्यूक अभी दानिशमन्दों को मार डालने के लिए रवाना हुआ कि दान्याल बड़ी हिक्मत और मौक़ाशनासी से उस से मुख़ातिब हुआ।
15. उस ने अफ़्सर से पूछा, “बादशाह ने इतना सख़्त फ़रमान क्यूँ जारी किया?” अर्यूक ने दान्याल को सारा मुआमला बयान किया।
16. दान्याल फ़ौरन बादशाह के पास गया और उस से दरख़्वास्त की, “ज़रा मुझे कुछ मुहलत दीजिए ताकि मैं बादशाह के ख़्वाब की ताबीर कर सकूँ।”
17. फिर वह अपने घर वापस गया और अपने दोस्तों हननियाह, मीसाएल और अज़रियाह को तमाम सूरत-ए-हाल सुनाई।
18. वह बोला, “आस्मान के ख़ुदा से इल्तिजा करें कि वह मुझ पर रहम करे। मिन्नत करें कि वह मेरे लिए भेद खोले ताकि हम दीगर दानिशमन्दों के साथ हलाक न हो जाएँ।”
19. रात के वक़्त दान्याल ने रोया देखी जिस में उस के लिए भेद खोला गया। तब उस ने आस्मान के ख़ुदा की हम्द-ओ-सना की,
20. “अल्लाह के नाम की तम्जीद अज़ल से अबद तक हो। वही हिक्मत और क़ुव्वत का मालिक है।
21. वही औक़ात और ज़माने बदलने देता है। वही बादशाहों को तख़्त पर बिठा देता और उन्हें तख़्त पर से उतार देता है। वही दानिशमन्दों को दानाई और समझदारों को समझ अता करता है।
22. वही गहरी और पोशीदा बातें ज़ाहिर करता है। जो कुछ अंधेरे में छुपा रहता है उस का इल्म वह रखता है, क्यूँकि वह रौशनी से घिरा रहता है।
23. ऐ मेरे बापदादा के ख़ुदा, मैं तेरी हम्द-ओ-सना करता हूँ! तू ने मुझे हिक्मत और ताक़त अता की है। जो बात हम ने तुझ से माँगी वह तू ने हम पर ज़ाहिर की, क्यूँकि तू ने हम पर बादशाह का ख़्वाब ज़ाहिर किया है।”
24. फिर दान्याल अर्यूक के पास गया जिसे बादशाह ने बाबल के दानिशमन्दों को सज़ा-ए-मौत देने की ज़िम्मादारी दी थी। उस ने उस से दरख़्वास्त की, “बाबल के दानिशमन्दों को मौत के घाट न उतारें, क्यूँकि मैं बादशाह के ख़्वाब की ताबीर कर सकता हूँ। मुझे बादशाह के हुज़ूर पहुँचा दें तो मैं उन्हें सब कुछ बता दूँगा।”
25. यह सुन कर अर्यूक भाग कर दान्याल को बादशाह के हुज़ूर ले गया। वह बोला, “मुझे यहूदाह के जिलावतनों में से एक आदमी मिल गया जो बादशाह को ख़्वाब का मतलब बता सकता है।”
26. तब नबूकद्नज़्ज़र ने दान्याल से जो बेल्तशज़्ज़र कहलाता था पूछा, “क्या तुम मुझे वह कुछ बता सकते हो जो मैं ने ख़्वाब में देखा? क्या तुम उस की ताबीर कर सकते हो?”
27. दान्याल ने जवाब दिया, “जो भेद बादशाह जानना चाहते हैं उसे खोलने की कुंजी किसी भी दानिशमन्द, जादूगर, क़िस्मत का हाल बताने वाले या ग़ैबदान के पास नहीं होती।
28. लेकिन आस्मान पर एक ख़ुदा है जो भेदों का मतलब इन्सान पर ज़ाहिर कर देता है। उसी ने नबूकद्नज़्ज़र बादशाह को दिखाया कि आने वाले दिनों में क्या कुछ पेश आएगा। सोते वक़्त आप ने ख़्वाब में रोया देखी।
29. ऐ बादशाह, जब आप पलंग पर लेटे हुए थे तो आप के ज़हन में आने वाले दिनों के बारे में ख़यालात उभर आए। तब भेदों को खोलने वाले ख़ुदा ने आप पर ज़ाहिर किया कि आने वाले दिनों में क्या कुछ पेश आएगा।
30. इस भेद का मतलब मुझ पर ज़ाहिर हुआ है, लेकिन इस लिए नहीं कि मुझे दीगर तमाम दानिशमन्दों से ज़ियादा हिक्मत हासिल है बल्कि इस लिए कि आप को भेद का मतलब मालूम हो जाए और आप समझ सकें कि आप के ज़हन में क्या कुछ उभर आया है।
31. ऐ बादशाह, रोया में आप ने अपने सामने एक बड़ा और लम्बा-तड़ंगा मुजस्समा देखा जो तेज़ी से चमक रहा था। शक्ल-ओ-सूरत ऐसी थी कि इन्सान के रोंगटे खड़े हो जाते थे।
32. सर ख़ालिस सोने का था जबकि सीना और बाज़ू चाँदी के, पेट और रान पीतल की
33. और पिंडलियाँ लोहे की थीं। उस के पाँओ का आधा हिस्सा लोहा और आधा हिस्सा पकी हुई मिट्टी था।
34. आप इस मन्ज़र पर ग़ौर ही कर रहे थे कि अचानक किसी पहाड़ी ढलान से पत्थर का बड़ा टुकड़ा अलग हुआ। यह बग़ैर किसी इन्सानी हाथ के हुआ। पत्थर धड़ाम से मुजस्समे के लोहे और मिट्टी के पाँओ पर गिर कर दोनों को चूर चूर कर दिया।
35. नतीजे में पूरा मुजस्समा पाश पाश हो गया। जितना भी लोहा, मिट्टी, पीतल, चाँदी और सोना था वह उस भूसे की मानिन्द बन गया जो गाहते वक़्त बाक़ी रह जाता है। हवा ने सब कुछ यूँ उड़ा दिया कि इन चीज़ों का नाम-ओ-निशान तक न रहा। लेकिन जिस पत्थर ने मुजस्समे को गिरा दिया वह ज़बरदस्त पहाड़ बन कर इतना बढ़ गया कि पूरी दुनिया उस से भर गई।
36. यही बादशाह का ख़्वाब था। अब हम बादशाह को ख़्वाब का मतलब बताते हैं।
37. ऐ बादशाह, आप शहनशाह हैं। आस्मान के ख़ुदा ने आप को सल्तनत, क़ुव्वत, ताक़त और इज़्ज़त से नवाज़ा है।
38. उस ने इन्सान को जंगली जानवरों और परिन्दों समेत आप ही के हवाले कर दिया है। जहाँ भी वह बसते हैं उस ने आप को ही उन पर मुक़र्रर किया है। आप ही मज़्कूरा सोने का सर हैं।
39. आप के बाद एक और सल्तनत क़ाइम हो जाएगी, लेकिन उस की ताक़त आप की सल्तनत से कम होगी। फिर पीतल की एक तीसरी सल्तनत वुजूद में आएगी जो पूरी दुनिया पर हुकूमत करेगी।
40. आख़िर में एक चौथी सल्तनत आएगी जो लोहे जैसी ताक़तवर होगी। जिस तरह लोहा सब कुछ तोड़ कर पाश पाश कर देता है उसी तरह वह दीगर सब को तोड़ कर पाश पाश करेगी।
41. आप ने देखा कि मुजस्समे के पाँओ और उंगलियों में कुछ लोहा और कुछ पकी हुई मिट्टी थी। इस का मतलब है, इस सल्तनत के दो अलग हिस्से होंगे। लेकिन जिस तरह ख़्वाब में मिट्टी के साथ लोहा मिलाया गया था उसी तरह चौथी सल्तनत में लोहे की कुछ न कुछ ताक़त होगी।
42. ख़्वाब में पाँओ की उंगलियों में कुछ लोहा भी था और कुछ मिट्टी भी। इस का मतलब है, चौथी सल्तनत का एक हिस्सा ताक़तवर और दूसरा नाज़ुक होगा।
43. लोहे और मिट्टी की मिलावट का मतलब है कि गो लोग आपस में शादी करने से एक दूसरे के साथ मुत्तहिद होने की कोशिश करेंगे तो भी वह एक दूसरे से पैवस्त नहीं रहेंगे, बिलकुल उसी तरह जिस तरह लोहा मिट्टी के साथ पैवस्त नहीं रह सकता।
44. जब यह बादशाह हुकूमत करेंगे, उन ही दिनों में आस्मान का ख़ुदा एक बादशाही क़ाइम करेगा जो न कभी तबाह होगी, न किसी दूसरी क़ौम के हाथ में आएगी। यह बादशाही इन दीगर तमाम सल्तनतों को पाश पाश करके ख़त्म करेगी, लेकिन ख़ुद अबद तक क़ाइम रहेगी।
45. यही ख़्वाब में उस पत्थर का मतलब है जिस ने बग़ैर किसी इन्सानी हाथ के पहाड़ी ढलान से अलग हो कर मुजस्समे के लोहे, पीतल, मिट्टी, चाँदी और सोने को पाश पाश कर दिया। इस तरीक़े से अज़ीम ख़ुदा ने बादशाह पर ज़ाहिर किया है कि मुस्तक़बिल में क्या कुछ पेश आएगा। यह ख़्वाब क़ाबिल-ए-एतिमाद और उस की ताबीर सहीह है।”
46. यह सुन कर नबूकद्नज़्ज़र बादशाह ने औंधे मुँह हो कर दान्याल को सिज्दा किया और हुक्म दिया कि दान्याल को ग़ल्ला और बख़ूर की क़ुर्बानियाँ पेश की जाएँ।
47. दान्याल से उस ने कहा, “यक़ीनन, तुम्हारा ख़ुदा ख़ुदाओं का ख़ुदा और बादशाहों का मालिक है। वह वाक़ई भेदों को खोलता है, वर्ना तुम यह भेद मेरे लिए खोल न पाते।”
48. नबूकद्नज़्ज़र ने दान्याल को बड़ा उह्दा और मुतअद्दिद बेशक़ीमत तुह्फ़े दिए। उस ने उसे पूरे सूबा बाबल का गवर्नर बना दिया। साथ साथ दान्याल बाबल के तमाम दानिशमन्दों पर मुक़र्रर हुआ।
49. उस की गुज़ारिश पर बादशाह ने सद्रक, मीसक और अबद्नजू को सूबा बाबल की इन्तिज़ामिया पर मुक़र्रर किया। दान्याल ख़ुद शाही दरबार में हाज़िर रहता था।

  Daniel (2/12)