Daniel (1/12)  

1. शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम की सल्तनत के तीसरे साल में शाह-ए-बाबल नबूकद्नज़्ज़र ने यरूशलम आ कर उस का मुहासरा किया।
2. उस वक़्त रब्ब ने यहूयक़ीम और अल्लाह के घर का काफ़ी सामान नबूकद्नज़्ज़र के हवाले कर दिया। नबूकद्नज़्ज़र ने यह चीज़ें मुल्क-ए-बाबल में ले जा कर अपने देवता के मन्दिर के ख़ज़ाने में मह्फ़ूज़ कर दीं।
3. फिर उस ने अपने दरबार के आला अफ़्सर अश्पनाज़ को हुक्म दिया, “यहूदाह के शाही ख़ान्दान और ऊँचे तब्क़े के ख़ान्दानों की तफ़्तीश करो। उन में से कुछ ऐसे नौजवानों को चुन कर ले आओ
4. जो बेऐब, ख़ूबसूरत, हिक्मत के हर लिहाज़ से समझदार, तालीमयाफ़्ता और समझने में तेज़ हों। ग़रज़ यह आदमी शाही महल में ख़िदमत करने के क़ाबिल हों। उन्हें बाबल की ज़बान लिखने और बोलने की तालीम दो।”
5. बादशाह ने मुक़र्रर किया कि रोज़ाना उन्हें शाही बावर्चीख़ाने से कितना खाना और मै मिलनी है। तीन साल की तर्बियत के बाद उन्हें बादशाह की ख़िदमत के लिए हाज़िर होना था।
6. जब इन नौजवानों को चुना गया तो चार आदमी उन में शामिल थे जिन के नाम दान्याल, हननियाह, मीसाएल और अज़रियाह थे।
7. दरबार के आला अफ़्सर ने उन के नए नाम रखे। दान्याल बेल्तशज़्ज़र में बदल गया, हननियाह सद्रक में, मीसाएल मीसक में और अज़रियाह अबद्नजू में।
8. लेकिन दान्याल ने मुसम्मम इरादा कर लिया कि मैं अपने आप को शाही खाना खाने और शाही मै पीने से नापाक नहीं करूँगा। उस ने दरबार के आला अफ़्सर से इन चीज़ों से पर्हेज़ करने की इजाज़त माँगी।
9. अल्लाह ने पहले से इस अफ़्सर का दिल नर्म कर दिया था, इस लिए वह दान्याल का ख़ास लिहाज़ करता और उस पर मेहरबानी करता था।
10. लेकिन दान्याल की दरख़्वास्त सुन कर उस ने जवाब दिया, “मुझे अपने आक़ा बादशाह से डर है। उन ही ने मुतअय्यिन किया कि तुम्हें क्या क्या खाना और पीना है। अगर उन्हें पता चले कि तुम दूसरे नौजवानों की निस्बत दुबले-पतले और कमज़ोर लगे तो वह मेरा सर क़लम करेंगे।”
11. तब दान्याल ने उस निगरान से बात की जिसे दरबार के आला अफ़्सर ने दान्याल, हननियाह, मीसाएल और अज़रियाह पर मुक़र्रर किया था। वह बोला,
12. “ज़रा दस दिन तक अपने ख़ादिमों को आज़्माएँ। इतने में हमें खाने के लिए सिर्फ़ साग-पात और पीने के लिए पानी दीजिए।
13. इस के बाद हमारी सूरत का मुक़ाबला उन दीगर नौजवानों के साथ करें जो शाही खाना खाते हैं। फिर इस के मद्द-ए-नज़र फ़ैसला करें कि आइन्दा आप अपने ख़ादिमों को इजाज़त देंगे कि नहीं।”
14. निगरान मान गया। दस दिन तक वह उन्हें साग-पात खिला कर और पानी पिला कर आज़्माता रहा।
15. दस दिन के बाद क्या देखता है कि दान्याल और उस के तीन दोस्त शाही खाना खाने वाले दीगर नौजवानों की निस्बत कहीं ज़ियादा सेहतमन्द और मोटे-ताज़े लग रहे हैं।
16. तब निगरान उन के लिए मुक़र्ररा शाही खाने और मै का इन्तिज़ाम बन्द करके उन्हें सिर्फ़ साग-पात खिलाने लगा।
17. अल्लाह ने इन चार आदमियों को अदब और हिक्मत के हर शोबे में इल्म और समझ अता की। नीज़, दान्याल हर क़िस्म की रोया और ख़्वाब की ताबीर कर सकता था।
18. मुक़र्ररा तीन साल के बाद दरबार के आला अफ़्सर ने तमाम नौजवानों को नबूकद्नज़्ज़र के सामने पेश किया।
19. जब बादशाह ने उन से गुफ़्तगु की तो मालूम हुआ कि दान्याल, हननियाह, मीसाएल और अज़रियाह दूसरों पर सब्क़त रखते हैं। चुनाँचे चारों बादशाह के मुलाज़िम बन गए।
20. जब भी किसी मुआमले में ख़ास हिक्मत और समझ दरकार होती तो बादशाह ने देखा कि यह चार नौजवान मश्वरा देने में पूरी सल्तनत के तमाम क़िस्मत का हाल बताने वालों और जादूगरों से दस गुना ज़ियादा क़ाबिल हैं।
21. दान्याल ख़ोरस की हुकूमत के पहले साल तक शाही दरबार में ख़िदमत करता रहा।

      Daniel (1/12)