Colossians (2/4)  

1. मैं चाहता हूँ कि आप जान लें कि मैं आप के लिए किस क़दर जाँफ़िशानी कर रहा हूँ - आप के लिए, लौदीकिया वालों के लिए और उन तमाम ईमानदारों के लिए भी जिन की मेरे साथ मुलाक़ात नहीं हुई।
2. मेरी कोशिश यह है कि उन की दिली हौसलाअफ़्ज़ाई की जाए और वह मुहब्बत में एक हो जाएँ, कि उन्हें वह ठोस एतिमाद हासिल हो जाए जो पूरी समझ से पैदा होता है। क्यूँकि मैं चाहता हूँ कि वह अल्लाह का राज़ जान लें। राज़ क्या है? मसीह ख़ुद।
3. उसी में हिक्मत और इल्म-ओ-इर्फ़ान के तमाम ख़ज़ाने पोशीदा हैं।
4. ग़रज़ ख़बरदार रहें कि कोई आप को बज़ाहिर सहीह और मीठे मीठे अल्फ़ाज़ से धोका न दे।
5. क्यूँकि गो मैं जिस्म के लिहाज़ से हाज़िर नहीं हूँ, लेकिन रूह में मैं आप के साथ हूँ। और मैं यह देख कर ख़ुश हूँ कि आप कितनी मुनज़्ज़म ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, कि आप का मसीह पर ईमान कितना पुख़्ता है।
6. आप ने ईसा मसीह को ख़ुदावन्द के तौर पर क़बूल कर लिया है। अब उस में ज़िन्दगी गुज़ारें।
7. उस में जड़ पकड़ें, उस पर अपनी ज़िन्दगी तामीर करें, उस ईमान में मज़्बूत रहें जिस की आप को तालीम दी गई है और शुक्रगुज़ारी से लबरेज़ हो जाएँ।
8. मुह्तात रहें कि कोई आप को फ़ल्सफ़ियाना और महज़ फ़रेब देने वाली बातों से अपने जाल में न फंसा ले। ऐसी बातों का सरचश्मा मसीह नहीं बल्कि इन्सानी रिवायतें और इस दुनिया की क़ुव्वतें हैं।
9. क्यूँकि मसीह में उलूहियत की सारी मामूरी मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है।
10. और आप को जो मसीह में हैं उस की मामूरी में शरीक कर दिया गया है। वही हर हुक्मरान और इख़तियार वाले का सर है।
11. उस में आते वक़्त आप का ख़तना भी करवाया गया। लेकिन यह ख़तना इन्सानी हाथों से नहीं किया गया बल्कि मसीह के वसीले से। उस वक़्त आप की पुरानी फ़ित्रत उतार दी गई,
12. आप को बपतिस्मा दे कर मसीह के साथ दफ़नाया गया और आप को ईमान से ज़िन्दा कर दिया गया। क्यूँकि आप अल्लाह की क़ुद्रत पर ईमान लाए थे, उसी क़ुद्रत पर जिस ने मसीह को मुर्दों में से ज़िन्दा कर दिया था।
13. पहले आप अपने गुनाहों और नामख़्तून जिस्मानी हालत के सबब से मुर्दा थे, लेकिन अब अल्लाह ने आप को मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया है। उस ने हमारे तमाम गुनाहों को मुआफ़ कर दिया है।
14. हमारे क़र्ज़ की जो रसीद अपनी शराइत की बिना पर हमारे ख़िलाफ़ थी उसे उस ने मन्सूख़ कर दिया। हाँ, उस ने हम से दूर करके उसे कीलों से सलीब पर जड़ दिया।
15. उस ने हुक्मरानों और इख़तियार वालों से उन का असलिहा छीन कर सब के सामने उन की रुस्वाई की। हाँ, मसीह की सलीबी मौत से वह अल्लाह के क़ैदी बन गए और उन्हें फ़त्ह के जुलूस में उस के पीछे पीछे चलना पड़ा।
16. चुनाँचे कोई आप को इस वजह से मुज्रिम न ठहराए कि आप क्या क्या खाते-पीते या कौन कौन सी ईदें मनाते हैं। इसी तरह कोई आप की अदालत न करे अगर आप हिलाल की ईद या सबत का दिन नहीं मनाते।
17. यह चीज़ें तो सिर्फ़ आने वाली हक़ीक़त का साया ही हैं जबकि यह हक़ीक़त ख़ुद मसीह में पाई जाती है।
18. ऐसे लोग आप को मुज्रिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की पूजा पर इस्रार करते हैं। बड़ी तफ़्सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उन के ग़ैररुहानी ज़हन ख़्वाह-म-ख़्वाह फूल जाते हैं।
19. यूँ उन्हों ने मसीह के साथ लगे रहना छोड़ दिया अगरचि वह बदन का सर है। वही जोड़ों और पट्ठों के ज़रीए पूरे बदन को सहारा दे कर उस के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को जोड़ देता है। यूँ पूरा बदन अल्लाह की मदद से तरक़्क़ी करता जाता है।
20. आप तो मसीह के साथ मर कर दुनिया की कुव्वतों से आज़ाद हो गए हैं। अगर ऐसा है तो आप ज़िन्दगी ऐसे क्यूँ गुज़ारते हैं जैसे कि आप अभी तक इस दुनिया की मिल्कियत हैं? आप क्यूँ इस के अह्काम के ताबे रहते हैं?
21. मसलन “इसे हाथ न लगाना, वह न चखना, यह न छूना।”
22. इन तमाम चीज़ों का मक़्सद तो यह है कि इस्तेमाल हो कर ख़त्म हो जाएँ। यह सिर्फ़ इन्सानी अह्काम और तालीमात हैं।
23. बेशक यह अह्काम जो घड़े हुए मज़्हबी फ़राइज़, नाम-निहाद फ़रोतनी और जिस्म के सख़्त दबाओ का तक़ाज़ा करते हैं हिक्मत पर मब्नी तो लगते हैं, लेकिन यह बेकार हैं और सिर्फ़ जिस्म ही की ख़्वाहिशात पूरी करते हैं।

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