Amos (4/9)  

1. ऐ कोह-ए-सामरिया की मोटी-ताज़ी गाइयो , सुनो मेरी बात! तुम ग़रीबों पर ज़ुल्म करती और ज़रूरतमन्दों को कुचल देती, तुम अपने शौहरों को कहती हो, “जा कर मै ले आओ, हम और पीना चाहती हैं।”
2. रब्ब ने अपनी क़ुद्दूसियत की क़सम खा कर फ़रमाया है, “वह दिन आने वाला है जब दुश्मन तुम्हें काँटों के ज़रीए घसीट कर अपने साथ ले जाएगा। जो बचेगा उसे मछली के काँटे से पकड़ा जाएगा।
3. हर एक को फ़सील के रख़नों में से सीधा निकलना पड़ेगा, हर एक को हर्मून पहाड़ की तरफ़ भगा दिया जाएगा।” यह रब्ब का फ़रमान है।
4. “चलो, बैत-एल जा कर गुनाह करो, जिल्जाल जा कर अपने गुनाहों में इज़ाफ़ा करो! सुब्ह के वक़्त अपनी क़ुर्बानियों को चढ़ाओ, तीसरे दिन आम्दनी का दसवाँ हिस्सा पेश करो।
5. ख़मीरी रोटी जला कर अपनी शुक्रगुज़ारी का इज़्हार करो, बुलन्द आवाज़ से उन क़ुर्बानियों का एलान करो जो तुम अपनी ख़ुशी से अदा कर रहे हो। क्यूँकि ऐसी हर्कतें तुम इस्राईलियों को बहुत पसन्द हैं।” यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
6. रब्ब फ़रमाता है, “मैं ने काल पड़ने दिया। हर शहर और आबादी में रोटी ख़त्म हुई। तो भी तुम मेरे पास वापस नहीं आए!
7. अभी फ़सल के पकने तक तीन माह बाक़ी थे कि मैं ने तुम्हारे मुल्क में बारिशों को रोक दिया। मैं ने होने दिया कि एक शहर में बारिश हुई जबकि साथ वाला शहर उस से महरूम रहा, एक खेत बारिश से सेराब हुआ जबकि दूसरा झुलस गया।
8. जिस शहर में थोड़ा बहुत पानी बाक़ी था वहाँ दीगर कई शहरों के बाशिन्दे लड़खड़ाते हुए पहुँचे, लेकिन उन के लिए काफ़ी नहीं था। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए!” यह रब्ब का फ़रमान है।
9. रब्ब फ़रमाता है, “मैं ने तुम्हारी फ़सलों को पतरोग और फफूँदी से तबाह कर दिया। जो भी तुम्हारे मुतअद्दिद अंगूर, अन्जीर, ज़ैतून और बाक़ी फल के बाग़ों में उगता था उसे टिड्डियाँ खा गईं। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए!”
10. रब्ब फ़रमाता है, “मैं ने तुम्हारे दर्मियान ऐसी मुहलक बीमारी फैला दी जैसी क़दीम ज़माने में मिस्र में फैल गई थी। तुम्हारे नौजवानों को मैं ने तल्वार से मार डाला, तुम्हारे घोड़े तुम से छीन लिए गए। तुम्हारी लश्करगाहों में लाशों का ताफ़्फ़ुन इतना फैल गया कि तुम बहुत तंग हुए। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए।”
11. रब्ब फ़रमाता है, “मैं ने तुम्हारे दर्मियान ऐसी तबाही मचाई जैसी उस दिन हुई जब मैं ने सदूम और अमूरा को तबाह किया। तुम्हारी हालत बिलकुल उस लकड़ी की मानिन्द थी जो आग से निकाल कर बचाई तो गई लेकिन फिर भी काफ़ी झुलस गई थी। तो भी तुम वापस न आए।
12. चुनाँचे ऐ इस्राईल, अब मैं आइन्दा भी तेरे साथ ऐसा ही करूँगा। और चूँकि मैं तेरे साथ ऐसा करूँगा, इस लिए अपने ख़ुदा से मिलने के लिए तय्यार हो जा, ऐ इस्राईल!”
13. क्यूँकि अल्लाह ही पहाड़ों को तश्कील देता, हवा को ख़लक़ करता और अपने ख़यालात को इन्सान पर ज़ाहिर करता है। वही तड़का और अंधेरा पैदा करता और वही ज़मीन की बुलन्दियों पर चलता है। उस का नाम ‘रब, लश्करों का ख़ुदा’ है।

  Amos (4/9)