Acts (4/28)  

1. पत्रस और यूहन्ना लोगों से बात कर ही रहे थे कि इमाम, बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों का कप्तान और सदूक़ी उन के पास पहुँचे।
2. वह नाराज़ थे कि रसूल ईसा के जी उठने की मुनादी करके लोगों को मुर्दों में से जी उठने की तालीम दे रहे हैं।
3. उन्हों ने उन्हें गिरिफ़्तार करके अगले दिन तक जेल में डाल दिया, क्यूँकि शाम हो चुकी थी।
4. लेकिन जिन्हों ने उन का पैग़ाम सुन लिया था उन में से बहुत से लोग ईमान लाए। यूँ ईमानदारों में मर्दों की तादाद बढ़ कर तक़्रीबन 5,000 तक पहुँच गई।
5. अगले दिन यरूशलम में यहूदी अदालत-ए-अलिया के सरदारों, बुज़ुर्गों और शरीअत के उलमा का इज्लास मुनअक़िद हुआ।
6. इमाम-ए-आज़म हन्ना और इसी तरह काइफ़ा, यूहन्ना, सिकन्दर और इमाम-ए-आज़म के ख़ान्दान के दीगर मर्द भी शामिल थे।
7. उन्हों ने दोनों को अपने दर्मियान खड़ा करके पूछा, “तुम ने यह काम किस क़ुव्वत और नाम से किया?”
8. पत्रस ने रूह-उल-क़ुद्स से मामूर हो कर उन से कहा, “क़ौम के राहनुमाओ और बुज़ुर्गो,
9. आज हमारी पूछगिछ की जा रही है कि हम ने माज़ूर आदमी पर रहम का इज़्हार किस के वसीले से किया कि उसे शिफ़ा मिल गई है।
10. तो फिर आप सब और पूरी क़ौम इस्राईल जान ले कि यह नासरत के ईसा मसीह के नाम से हुआ है, जिसे आप ने मस्लूब किया और जिसे अल्लाह ने मुर्दों में से ज़िन्दा कर दिया। यह आदमी उसी के वसीले से सेहत पा कर यहाँ आप के सामने खड़ा है।
11. ईसा वह पत्थर है जिस के बारे में कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘जिस पत्थर को मकान बनाने वालों ने रद्द किया वह कोने का बुन्यादी पत्थर बन गया।’ और आप ही ने उसे रद्द कर दिया है।
12. किसी दूसरे के वसीले से नजात हासिल नहीं होती, क्यूँकि आस्मान के तले हम इन्सानों को कोई और नाम नहीं बख़्शा गया जिस के वसीले से हम नजात पा सकें।”
13. पत्रस और यूहन्ना की बातें सुन कर लोग हैरान हुए क्यूँकि वह दिलेरी से बात कर रहे थे अगरचि वह न तो आलिम थे, न उन्हों ने शरीअत की ख़ास तालीम पाई थी। साथ साथ सुनने वालों ने यह भी जान लिया कि दोनों ईसा के साथी हैं।
14. लेकिन चूँकि वह अपनी आँखों से उस आदमी को देख रहे थे जो शिफ़ा पा कर उन के साथ खड़ा था इस लिए वह इस के ख़िलाफ़ कोई बात न कर सके।
15. चुनाँचे उन्हों ने उन दोनों को इज्लास में से बाहर जाने को कहा और आपस में सलाह-मश्वरा करने लगे,
16. “हम इन लोगों के साथ क्या सुलूक करें? बात वाज़िह है कि उन के ज़रीए एक इलाही निशान दिखाया गया है। इस का यरूशलम के तमाम बाशिन्दों को इल्म हुआ है। हम इस का इन्कार नहीं कर सकते।
17. लेकिन लाज़िम है कि उन्हें धमकी दे कर हुक्म दें कि वह किसी भी शख़्स से यह नाम ले कर बात न करें, वर्ना यह मुआमला क़ौम में मज़ीद फैल जाएगा।”
18. चुनाँचे उन्हों ने दोनों को बुला कर हुक्म दिया कि वह आइन्दा ईसा के नाम से न कभी बोलें और न तालीम दें।
19. लेकिन पत्रस और यूहन्ना ने जवाब में कहा, “आप ख़ुद फ़ैसला कर लें, क्या यह अल्लाह के नज़्दीक ठीक है कि हम उस की निस्बत आप की बात मानें?
20. मुम्किन ही नहीं कि जो कुछ हम ने देख और सुन लिया है उसे दूसरों को सुनाने से बाज़ रहें।”
21. तब इज्लास के मैम्बरान ने दोनों को मज़ीद धमकियाँ दे कर छोड़ दिया। वह फ़ैसला न कर सके कि क्या सज़ा दें, क्यूँकि तमाम लोग पत्रस और यूहन्ना के इस काम की वजह से अल्लाह की तम्जीद कर रहे थे।
22. क्यूँकि जिस आदमी को मोजिज़ाना तौर पर शिफ़ा मिली थी वह चालीस साल से ज़ियादा लंगड़ा रहा था।
23. उन की रिहाई के बाद पत्रस और यूहन्ना अपने साथियों के पास वापस गए और सब कुछ सुनाया जो राहनुमा इमामों और बुज़ुर्गों ने उन्हें बताया था।
24. यह सुन कर तमाम ईमानदारों ने मिल कर ऊँची आवाज़ से दुआ की, “ऐ आक़ा, तू ने आस्मान-ओ-ज़मीन और समुन्दर को और जो कुछ उन में है ख़लक़ किया है।
25. और तू ने अपने ख़ादिम हमारे बाप दाऊद के मुँह से रूह-उल-क़ुद्स की मारिफ़त कहा, ‘अक़्वाम क्यूँ तैश में आ गई हैं? उम्मतें क्यूँ बेकार साज़िशें कर रही हैं?
26. दुनिया के बादशाह उठ खड़े हुए, हुक्मरान रब्ब और उस के मसीह के ख़िलाफ़ जमा हो गए हैं।’
27. और वाक़ई यही कुछ इस शहर में हुआ। हेरोदेस अनतिपास, पुन्तियुस पीलातुस, ग़ैरयहूदी और यहूदी सब तेरे मुक़द्दस ख़ादिम ईसा के ख़िलाफ़ जमा हुए जिसे तू ने मसह किया था।
28. लेकिन जो कुछ उन्हों ने किया वह तू ने अपनी क़ुद्रत और मर्ज़ी से पहले ही से मुक़र्रर किया था।
29. ऐ रब्ब, अब उन की धमकियों पर ग़ौर कर। अपने ख़ादिमों को अपना कलाम सुनाने की बड़ी दिलेरी अता फ़रमा।
30. अपनी क़ुद्रत का इज़्हार कर ताकि हम तेरे मुक़द्दस ख़ादिम ईसा के नाम से शिफ़ा, इलाही निशान और मोजिज़े दिखा सकें।”
31. दुआ के इख़तिताम पर वह जगह हिल गई जहाँ वह जमा थे। सब रूह-उल-क़ुद्स से मामूर हो गए और दिलेरी से अल्लाह का कलाम सुनाने लगे।
32. ईमानदारों की पूरी जमाअत यकदिल थी। किसी ने भी अपनी मिल्कियत की किसी चीज़ के बारे में नहीं कहा कि यह मेरी है बल्कि उन की हर चीज़ मुश्तरका थी।
33. और रसूल बड़े इख़तियार के साथ ख़ुदावन्द ईसा के जी उठने की गवाही देते रहे। अल्लाह की बड़ी मेहरबानी उन सब पर थी।
34. उन में से कोई भी ज़रूरतमन्द नहीं था, क्यूँकि जिस के पास भी ज़मीनें या मकान थे उस ने उन्हें फ़रोख़्त करके रक़म
35. रसूलों के पाँओ में रख दी। यूँ जमाशुदा पैसों में से हर एक को उतने दिए जाते जितनों की उसे ज़रूरत होती थी।
36. मसलन यूसुफ़ नामी एक आदमी था जिस का नाम रसूलों ने बर्नबास (हौसलाअफ़्ज़ाई का बेटा) रखा था। वह लावी क़बीले से और जज़ीरा-ए-क़ुब्रुस का रहने वाला था।
37. उस ने अपना एक खेत फ़रोख़्त करके पैसे रसूलों के पाँओ में रख दिए।

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