Acts (26/28)  

1. अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “आप को अपने दिफ़ा में बोलने की इजाज़त है।” पौलुस ने हाथ से इशारा करके अपने दिफ़ा में बोलने का आग़ाज़ किया,
2. “अग्रिप्पा बादशाह, मैं अपने आप को ख़ुशनसीब समझता हूँ कि आज आप ही मेरा यह दिफ़ाई बयान सुन रहे हैं जो मुझे यहूदियों के तमाम इल्ज़ामात के जवाब में देना पड़ रहा है।
3. ख़ासकर इस लिए कि आप यहूदियों के रस्म-ओ-रिवाज और तनाज़ुओं से वाक़िफ़ हैं। मेरी अर्ज़ है कि आप सब्र से मेरी बात सुनें।
4. तमाम यहूदी जानते हैं कि मैं ने जवानी से ले कर अब तक अपनी क़ौम बल्कि यरूशलम में किस तरह ज़िन्दगी गुज़ारी।
5. वह मुझे बड़ी देर से जानते हैं और अगर चाहें तो इस की गवाही भी दे सकते हैं कि मैं फ़रीसी की ज़िन्दगी गुज़ारता था, हमारे मज़्हब के उसी फ़िर्क़े की जो सब से कट्टर है।
6. और आज मेरी अदालत इस वजह से की जा रही है कि मैं उस वादे पर उम्मीद रखता हूँ जो अल्लाह ने हमारे बापदादा से किया।
7. हक़ीक़त में यह वही उम्मीद है जिस की वजह से हमारे बारह क़बीले दिन रात और बड़ी लगन से अल्लाह की इबादत करते रहते हैं और जिस की तक्मील के लिए वह तड़पते हैं। तो भी ऐ बादशाह, यह लोग मुझ पर यह उम्मीद रखने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं।
8. लेकिन आप सब को यह ख़याल क्यूँ नाक़ाबिल-ए-यक़ीन लगता है कि अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दा कर देता है?
9. पहले मैं भी समझता था कि हर मुम्किन तरीक़े से ईसा नासरी की मुख़ालफ़त करना मेरा फ़र्ज़ है।
10. और यह मैं ने यरूशलम में किया भी। राहनुमा इमामों से इख़तियार ले कर मैं ने वहाँ के बहुत से मुक़द्दसों को जेल में डलवा दिया। और जब कभी उन्हें सज़ा-ए-मौत देने का फ़ैसला करना था तो मैं ने भी इस हक़ में वोट दिया।
11. मैं तमाम इबादतख़ानों में गया और बहुत दफ़ा उन्हें सज़ा दिला कर ईसा के बारे में कुफ़्र बकने पर मज्बूर करने की कोशिश करता रहा। मैं इतने तैश में आ गया था कि उन की ईज़ारसानी की ग़रज़ से बैरून-ए-मुल्क भी गया।
12. एक दिन मैं राहनुमा इमामों से इख़तियार और इजाज़तनामा ले कर दमिश्क़ जा रहा था।
13. दोपहर तक़्रीबन बारह बजे मैं सड़क पर चल रहा था कि एक रौशनी देखी जो सूरज से ज़ियादा तेज़ थी। वह आस्मान से आ कर मेरे और मेरे हमसफ़रों के गिर्दागिर्द चमकी।
14. हम सब ज़मीन पर गिर गए और मैं ने अरामी ज़बान में एक आवाज़ सुनी, ‘साऊल, साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है? यूँ मेरे आँकुस के ख़िलाफ़ पाँओ मारना तेरे लिए ही दुश्वारी का बाइस है।’
15. मैं ने पूछा, ‘ख़ुदावन्द, आप कौन हैं?’ ख़ुदावन्द ने जवाब दिया, ‘मैं ईसा हूँ, वही जिसे तू सताता है।
16. लेकिन अब उठ कर खड़ा हो जा, क्यूँकि मैं तुझे अपना ख़ादिम और गवाह मुक़र्रर करने के लिए तुझ पर ज़ाहिर हुआ हूँ। जो कुछ तू ने देखा है उस की तुझे गवाही देनी है और उस की भी जो मैं आइन्दा तुझ पर ज़ाहिर करूँगा।
17. मैं तुझे तेरी अपनी क़ौम से बचाए रखूँगा और उन ग़ैरयहूदी क़ौमों से भी जिन के पास तुझे भेजूँगा।
18. तू उन की आँखों को खोल देगा ताकि वह तारीकी और इब्लीस के इख़तियार से नूर और अल्लाह की तरफ़ रुजू करें। फिर उन के गुनाहों को मुआफ़ कर दिया जाएगा और वह उन के साथ आस्मानी मीरास में शरीक होंगे जो मुझ पर ईमान लाने से मुक़द्दस किए गए हैं।’
19. ऐ अग्रिप्पा बादशाह, जब मैं ने यह सुना तो मैं ने इस आस्मानी रोया की नाफ़रमानी न की
20. बल्कि इस बात की मुनादी की कि लोग तौबा करके अल्लाह की तरफ़ रुजू करें और अपने अमल से अपनी तब्दीली का इज़्हार भी करें। मैं ने इस की तब्लीग़ पहले दमिश्क़ में की, फिर यरूशलम और पूरे यहूदिया में और इस के बाद ग़ैरयहूदी क़ौमों में भी।
21. इसी वजह से यहूदियों ने मुझे बैत-उल-मुक़द्दस में पकड़ कर क़त्ल करने की कोशिश की।
22. लेकिन अल्लाह ने आज तक मेरी मदद की है, इस लिए मैं यहाँ खड़ा हो कर छोटों और बड़ों को अपनी गवाही दे सकता हूँ। जो कुछ मैं सुनाता हूँ वह वही कुछ है जो मूसा और नबियों ने कहा है,
23. कि मसीह दुख उठा कर पहला शख़्स होगा जो मुर्दों में से जी उठेगा और कि वह यूँ अपनी क़ौम और ग़ैरयहूदियों के सामने अल्लाह के नूर का परचार करेगा।”
24. अचानक फ़ेस्तुस पौलुस की बात काट कर चिल्ला उठा, “पौलुस, होश में आओ! इल्म की ज़ियादती ने तुम्हें दीवाना कर दिया है।”
25. पौलुस ने जवाब दिया, “मुअज़्ज़ज़ फ़ेस्तुस, मैं दीवाना नहीं हूँ। मेरी यह बातें हक़ीक़ी और माक़ूल हैं।
26. बादशाह सलामत इन से वाक़िफ़ हैं, इस लिए मैं उन से खुल कर बात कर सकता हूँ। मुझे यक़ीन है कि यह सब कुछ उन से छुपा नहीं रहा, क्यूँकि यह पोशीदगी में या किसी कोने में नहीं हुआ।
27. ऐ अग्रिप्पा बादशाह, क्या आप नबियों पर ईमान रखते हैं? बल्कि मैं जानता हूँ कि आप उन पर ईमान रखते हैं।”
28. अग्रिप्पा ने कहा, “आप तो बड़ी जल्दी से मुझे क़ाइल करके मसीही बनाना चाहते हैं।”
29. पौलुस ने जवाब दिया, “जल्द या बदेर मैं अल्लाह से दुआ करता हूँ कि न सिर्फ़ आप बल्कि तमाम हाज़िरीन मेरी मानिन्द बन जाएँ, सिवा-ए-मेरी ज़न्जीरों के।”
30. फिर बादशाह, गवर्नर, बिरनीके और बाक़ी सब उठ कर चले गए।
31. वहाँ से निकल कर वह एक दूसरे से बात करने लगे। सब इस पर मुत्तफ़िक़ थे कि “इस आदमी ने कुछ नहीं किया जो सज़ा-ए-मौत या क़ैद के लाइक़ हो।”
32. और अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “अगर इस ने शहनशाह से अपील न की होती तो इसे रिहा किया जा सकता था।”

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