Acts (23/28)  

1. पौलुस ने ग़ौर से अदालत-ए-आलिया के मैम्बरान की तरफ़ देख कर कहा, “भाइयो, आज तक मैं ने साफ़ ज़मीर के साथ अल्लाह के सामने ज़िन्दगी गुज़ारी है।”
2. इस पर इमाम-ए-आज़म हननियाह ने पौलुस के क़रीब खड़े लोगों से कहा कि वह उस के मुँह पर थप्पड़ मारें।
3. पौलुस ने उस से कहा, “मक्कार ! अल्लाह तुम को ही मारेगा, क्यूँकि तुम यहाँ बैठे शरीअत के मुताबिक़ मेरा फ़ैसला करना चाहते हो जबकि मुझे मारने का हुक्म दे कर ख़ुद शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी कर रहे हो!”
4. पौलुस के क़रीब खड़े आदमियों ने कहा, “तुम अल्लाह के इमाम-ए-आज़म को बुरा कहने की जुरअत क्यूँकर करते हो?”
5. पौलुस ने जवाब दिया, “भाइयो, मुझे मालूम न था कि वह इमाम-ए-आज़म हैं, वर्ना ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल न करता। क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है कि अपनी क़ौम के हाकिमों को बुरा-भला मत कहना।”
6. पौलुस को इल्म था कि अदालत-ए-आलिया के कुछ लोग सदूक़ी हैं जबकि दीगर फ़रीसी हैं। इस लिए वह इज्लास में पुकार उठा, “भाइयो, मैं फ़रीसी बल्कि फ़रीसी का बेटा भी हूँ। मुझे इस लिए अदालत में पेश किया गया है कि मैं मुर्दों में से जी उठने की उम्मीद रखता हूँ।”
7. इस बात से फ़रीसी और सदूक़ी एक दूसरे से झगड़ने लगे और इज्लास के अफ़राद दो गुरोहों में बट गए।
8. वजह यह थी कि सदूक़ी नहीं मानते कि हम जी उठेंगे। वह फ़रिश्तों और रूहों का भी इन्कार करते हैं। इस के मुक़ाबले में फ़रीसी यह सब कुछ मानते हैं।
9. होते होते बड़ा शोर मच गया। फ़रीसी फ़िर्क़े के कुछ आलिम खड़े हो कर जोश से बह्स करने लगे, “हमें इस आदमी में कोई ग़लती नज़र नहीं आती, शायद कोई रूह या फ़रिश्ता इस से हमकलाम हुआ हो।”
10. झगड़े ने इतना ज़ोर पकड़ा कि कमाँडर डर गया, क्यूँकि ख़त्रा था कि वह पौलुस के टुकड़े कर डालें। इस लिए उस ने अपने फ़ौजियों को हुक्म दिया कि वह उतरें और पौलुस को यहूदियों के बीच में से छीन कर क़िलए में वापस लाएँ।
11. उसी रात ख़ुदावन्द पौलुस के पास आ खड़ा हुआ और कहा, “हौसला रख, क्यूँकि जिस तरह तू ने यरूशलम में मेरे बारे में गवाही दी है लाज़िम है कि इसी तरह रोम शहर में भी गवाही दे।”
12. अगले दिन कुछ यहूदियों ने साज़िश करके क़सम खाई, “हम न तो कुछ खाएँगे, न पिएँगे जब तक पौलुस को क़त्ल न कर लें।”
13. चालीस से ज़ियादा मर्दों ने इस साज़िश में हिस्सा लिया।
14. वह राहनुमा इमामों और बुज़ुर्गों के पास गए और कहा, “हम ने पक्की क़सम खाई है कि कुछ नहीं खाएँगे जब तक पौलुस को क़त्ल न कर लें।
15. अब ज़रा यहूदी अदालत-ए-आलिया के साथ मिल कर कमाँडर से गुज़ारिश करें कि वह उसे दुबारा आप के पास लाएँ। बहाना यह पेश करें कि आप मज़ीद तफ़्सील से उस के मुआमले का जाइज़ा लेना चाहते हैं। जब उसे लाया जाएगा तो हम उस के यहाँ पहुँचने से पहले पहले उसे मार डालने के लिए तय्यार होंगे।”
16. लेकिन पौलुस के भानजे को इस बात का पता चल गया। उस ने क़िलए में जा कर पौलुस को इत्तिला दी।
17. इस पर पौलुस ने रोमी अफ़्सरों में से एक को बुला कर कहा, “इस जवान को कमाँडर के पास ले जाएँ। इस के पास उन के लिए ख़बर है।”
18. अफ़्सर भानजे को कमाँडर के पास ले गया और कहा, “क़ैदी पौलुस ने मुझे बुला कर मुझ से गुज़ारिश की कि इस नौजवान को आप के पास ले आऊँ। उस के पास आप के लिए ख़बर है।”
19. कमाँडर नौजवान का हाथ पकड़ कर दूसरों से अलग हो गया। फिर उस ने पूछा, “क्या ख़बर है जो आप मुझे बताना चाहते हैं?”
20. उस ने जवाब दिया, “यहूदी आप से दरख़्वास्त करने पर मुत्तफ़िक़ हो गए हैं कि आप कल पौलुस को दुबारा यहूदी अदालत-ए-आलिया के सामने लाएँ। बहाना यह होगा कि वह और ज़ियादा तफ़्सील से उस के बारे में मालूमात हासिल करना चाहते हैं।
21. लेकिन उन की बात न मानें, क्यूँकि उन में से चालीस से ज़ियादा आदमी उस की ताक में बैठे हैं। उन्हों ने क़सम खाई है कि हम न कुछ खाएँगे न पिएँगे जब तक उसे क़त्ल न कर लें। वह अभी तय्यार बैठे हैं और सिर्फ़ इस इन्तिज़ार में हैं कि आप उन की बात मानें।”
22. कमाँडर ने नौजवान को रुख़्सत करके कहा, “जो कुछ आप ने मुझे बता दिया है उस का किसी से ज़िक्र न करना।”
23. फिर कमाँडर ने अपने अफ़्सरों में से दो को बुलाया जो सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर थे। उस ने हुक्म दिया, “दो सौ फ़ौजी, सत्तर घुड़सवार और दो सौ नेज़ाबाज़ तय्यार करें। उन्हें आज रात को नौ बजे क़ैसरिया जाना है।
24. पौलुस के लिए भी घोड़े तय्यार रखना ताकि वह सहीह-सलामत गवर्नर के पास पहुँचे।”
25. फिर उस ने यह ख़त लिखा,
26. “अज़ : क्लौदियुस लूसियास मुअज़्ज़ज़ गवर्नर फेलिक्स को सलाम।
27. यहूदी इस आदमी को पकड़ कर क़त्ल करने को थे। मुझे पता चला कि यह रोमी शहरी है, इस लिए मैं ने अपने दस्तों के साथ आ कर इसे निकाल कर बचा लिया।
28. मैं मालूम करना चाहता था कि वह क्यूँ इस पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं, इस लिए मैं उतर कर इसे उन की अदालत-ए-आलिया के सामने लाया।
29. मुझे मालूम हुआ कि उन का इल्ज़ाम उन की शरीअत से ताल्लुक़ रखता है। लेकिन इस ने ऐसा कुछ नहीं किया जिस की बिना पर यह जेल में डालने या सज़ा-ए-मौत के लाइक़ हो।
30. फिर मुझे इत्तिला दी गई कि इस आदमी को क़त्ल करने की साज़िश की गई है, इस लिए मैं ने इसे फ़ौरन आप के पास भेज दिया। मैं ने इल्ज़ाम लगाने वालों को भी हुक्म दिया कि वह इस पर अपना इल्ज़ाम आप को ही पेश करें।”
31. फ़ौजियों ने उसी रात कमाँडर का हुक्म पूरा किया। पौलुस को साथ ले कर वह अन्तीपत्रिस तक पहुँच गए।
32. अगले दिन पयादे क़िलए को वापस चले जबकि घुड़सवारों ने पौलुस को ले कर सफ़र जारी रखा।
33. क़ैसरिया पहुँच कर उन्हों ने पौलुस को ख़त समेत गवर्नर फेलिक्स के सामने पेश किया।
34. उस ने ख़त पढ़ लिया और फिर पौलुस से पूछा, “आप किस सूबे के हैं?” पौलुस ने कहा, “किलिकिया का।”
35. इस पर गवर्नर ने कहा, “मैं आप की समाअत उस वक़्त करूँगा जब आप पर इल्ज़ाम लगाने वाले पहुँचेंगे।” और उस ने हुक्म दिया कि हेरोदेस के महल में पौलुस की पहरादारी की जाए।

  Acts (23/28)