← Acts (22/28) → |
1. | “भाइयो और बुज़ुर्गो, मेरी बात सुनें कि मैं अपने दिफ़ा में कुछ बताऊँ।” |
2. | जब उन्हों ने सुना कि वह अरामी ज़बान में बोल रहा है तो वह मज़ीद ख़ामोश हो गए। पौलुस ने अपनी बात जारी रखी। |
3. | “मैं यहूदी हूँ और किलिकिया के शहर तर्सुस में पैदा हुआ। लेकिन मैं ने इसी शहर यरूशलम में पर्वरिश पाई और जम्लीएल के ज़ेर-ए-निगरानी तालीम हासिल की। उन्हों ने मुझे तफ़्सील और एहतियात से हमारे बापदादा की शरीअत सिखाई। उस वक़्त मैं भी आप की तरह अल्लाह के लिए सरगर्म था। |
4. | इस लिए मैं ने इस नई राह के पैरोकारों का पीछा किया और मर्दों और ख़वातीन को गिरिफ़्तार करके जेल में डलवा दिया यहाँ तक कि मरवा भी दिया। |
5. | इमाम-ए-आज़म और यहूदी अदालत-ए-आलिया के मैम्बरान इस बात की तस्दीक़ कर सकते हैं। उन ही से मुझे दमिश्क़ में रहने वाले यहूदी भाइयों के लिए सिफ़ारिशी ख़त मिल गए ताकि मैं वहाँ भी जा कर इस नए फ़िर्क़े के लोगों को गिरिफ़्तार करके सज़ा देने के लिए यरूशलम लाऊँ। |
6. | मैं इस मक़्सद के लिए दमिश्क़ के क़रीब पहुँच गया था कि अचानक आस्मान की तरफ़ से एक तेज़ रौशनी मेरे गिर्द चमकी। |
7. | मैं ज़मीन पर गिर पड़ा तो एक आवाज़ सुनाई दी, ‘साऊल, साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है?’ |
8. | मैं ने पूछा, ‘ख़ुदावन्द, आप कौन हैं?’ आवाज़ ने जवाब दिया, ‘मैं ईसा नासरी हूँ जिसे तू सताता है।’ |
9. | मेरे हमसफ़रों ने रौशनी को तो देखा, लेकिन मुझ से मुख़ातिब होने वाले की आवाज़ न सुनी। |
10. | मैं ने पूछा, ‘ख़ुदावन्द, मैं क्या करूँ?’ ख़ुदावन्द ने जवाब दिया, ‘उठ कर दमिश्क़ में जा। वहाँ तुझे वह सारा काम बताया जाएगा जो अल्लाह तेरे ज़िम्मे लगाने का इरादा रखता है।’ |
11. | रौशनी की तेज़ी ने मुझे अंधा कर दिया था, इस लिए मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क़ ले गए। |
12. | वहाँ एक आदमी रहता था जिस का नाम हननियाह था। वह शरीअत का कट्टर पैरोकार था और वहाँ के रहने वाले यहूदियों में नेकनाम। |
13. | वह आया और मेरे पास खड़े हो कर कहा, ‘साऊल भाई, दुबारा बीना हो जाएँ!’ उसी लम्हे मैं उसे देख सका। |
14. | फिर उस ने कहा, ‘हमारे बापदादा के ख़ुदा ने आप को इस मक़्सद के लिए चुन लिया है कि आप उस की मर्ज़ी जान कर उस के रास्त ख़ादिम को देखें और उस के अपने मुँह से उस की आवाज़ सुनें। |
15. | जो कुछ आप ने देख और सुन लिया है उस की गवाही आप तमाम लोगों को देंगे। |
16. | चुनाँचे आप क्यूँ देर कर रहे हैं? उठें और उस के नाम में बपतिस्मा लें ताकि आप के गुनाह धुल जाएँ।’ |
17. | जब मैं यरूशलम वापस आया तो मैं एक दिन बैत-उल-मुक़द्दस में गया। वहाँ दुआ करते करते मैं वज्द की हालत में आ गया |
18. | और ख़ुदावन्द को देखा। उस ने फ़रमाया, ‘जल्दी कर! यरूशलम को फ़ौरन छोड़ दे क्यूँकि लोग मेरे बारे में तेरी गवाही को क़बूल नहीं करेंगे।’ |
19. | मैं ने एतिराज़ किया, ‘ऐ ख़ुदावन्द, वह तो जानते हैं कि मैं ने जगह-ब-जगह इबादतख़ाने में जा कर तुझ पर ईमान रखने वालों को गिरिफ़्तार किया और उन की पिटाई करवाई। |
20. | और उस वक़्त भी जब तेरे शहीद स्तिफ़नुस को क़त्ल किया जा रहा था मैं साथ खड़ा था। मैं राज़ी था और उन लोगों के कपड़ों की निगरानी कर रहा था जो उसे संगसार कर रहे थे।’ |
21. | लेकिन ख़ुदावन्द ने कहा, ‘जा, क्यूँकि मैं तुझे दूरदराज़ इलाक़ों में ग़ैरयहूदियों के पास भेज दूँगा’।” |
22. | यहाँ तक हुजूम पौलुस की बातें सुनता रहा। लेकिन अब वह चिल्ला उठे, “इसे हटा दो! इसे जान से मार दो! यह ज़िन्दा रहने के लाइक़ नहीं!” |
23. | वह चीख़ें मार मार कर अपनी चादरें उतारने और हवा में गर्द उड़ाने लगे। |
24. | इस पर कमाँडर ने हुक्म दिया कि पौलुस को क़िलए में ले जाया जाए और कोड़े लगा कर उस की पूछगिछ की जाए। क्यूँकि वह मालूम करना चाहता था कि लोग किस वजह से पौलुस के ख़िलाफ़ यूँ चीख़ें मार रहे हैं। |
25. | जब वह उसे कोड़े लगाने के लिए ले कर जा रहे थे तो पौलुस ने साथ खड़े अफ़्सर से कहा, “क्या आप के लिए जाइज़ है कि एक रोमी शहरी के कोड़े लगवाएँ और वह भी अदालत में पेश किए बग़ैर?” |
26. | अफ़्सर ने जब यह सुना तो कमाँडर के पास जा कर उसे इत्तिला दी, “आप क्या करने को हैं? यह आदमी तो रोमी शहरी है!” |
27. | कमाँडर पौलुस के पास आया और पूछा, “मुझे सहीह बताएँ, क्या आप रोमी शहरी हैं?” पौलुस ने जवाब दिया, “जी हाँ।” |
28. | कमाँडर ने कहा, “मैं तो बड़ी रक़म दे कर शहरी बना हूँ।” पौलुस ने जवाब दिया, “लेकिन मैं तो पैदाइशी शहरी हूँ।” |
29. | यह सुनते ही वह फ़ौजी जो उस की पूछगिछ करने को थे पीछे हट गए। कमाँडर ख़ुद घबरा गया कि मैं ने एक रोमी शहरी को ज़न्जीरों में जकड़ रखा है। |
30. | अगले दिन कमाँडर साफ़ मालूम करना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर क्यूँ इल्ज़ाम लगा रहे हैं। इस लिए उस ने राहनुमा इमामों और यहूदी अदालत-ए-आलिया के तमाम मैम्बरान का इज्लास मुनअक़िद करने का हुक्म दिया। फिर पौलुस को आज़ाद करके क़िलए से नीचे लाया और उन के सामने खड़ा किया। |
← Acts (22/28) → |