Acts (21/28)  

1. मुश्किल से इफ़िसुस के बुज़ुर्गों से अलग हो कर हम रवाना हुए और सीधे जज़ीरा-ए-कोस पहुँच गए। अगले दिन हम रुदुस आए और वहाँ से पतरा पहुँचे।
2. पतरा में फ़ेनीके के लिए जहाज़ मिल गया तो हम उस पर सवार हो कर रवाना हुए।
3. जब क़ुब्रुस दूर से नज़र आया तो हम उस के जुनूब में से गुज़र कर शाम के शहर सूर पहुँच गए जहाँ जहाज़ को अपना सामान उतारना था।
4. जहाज़ से उतर कर हम ने मक़ामी शागिर्दों को तलाश किया और सात दिन उन के साथ ठहरे। उन ईमानदारों ने रूह-उल-क़ुद्स की हिदायत से पौलुस को समझाने की कोशिश की कि वह यरूशलम न जाए।
5. जब हम एक हफ़्ते के बाद जहाज़ पर वापस चले गए तो पूरी जमाअत बाल-बच्चों समेत हमारे साथ शहर से निकल कर साहिल तक आई। वहीं हम ने घुटने टेक कर दुआ की
6. और एक दूसरे को अलविदा कहा। फिर हम दुबारा जहाज़ पर सवार हुए जबकि वह अपने घरों को लौट गए।
7. सूर से अपना सफ़र जारी रख कर हम पतुलिमयिस पहुँचे जहाँ हम ने मक़ामी ईमानदारों को सलाम किया और एक दिन उन के साथ गुज़ारा।
8. अगले दिन हम रवाना हो कर क़ैसरिया पहुँच गए। वहाँ हम फ़िलिप्पुस के घर ठहरे। यह वही फ़िलिप्पुस था जो अल्लाह की ख़ुशख़बरी का मुनाद था और जिसे इबतिदाई दिनों में यरूशलम में खाना तक़्सीम करने के लिए छः और आदमियों के साथ मुक़र्रर किया गया था।
9. उस की चार ग़ैरशादीशुदा बेटियाँ थीं जो नुबुव्वत की नेमत रखती थीं।
10. कई दिन गुज़र गए तो यहूदिया से एक नबी आया जिस का नाम अगबुस था।
11. जब वह हम से मिलने आया तो उस ने पौलुस की पेटी ले कर अपने पाँओ और हाथों को बाँध लिया और कहा, “रूह-उल-क़ुद्स फ़रमाता है कि यरूशलम में यहूदी इस पेटी के मालिक को यूँ बाँध कर ग़ैरयहूदियों के हवाले करेंगे।”
12. यह सुन कर हम ने मक़ामी ईमानदारों समेत पौलुस को समझाने की ख़ूब कोशिश की कि वह यरूशलम न जाए।
13. लेकिन उस ने जवाब दिया, “आप क्यूँ रोते और मेरा दिल तोड़ते हैं? देखें, मैं ख़ुदावन्द ईसा के नाम की ख़ातिर यरूशलम में न सिर्फ़ बाँधे जाने बल्कि उस के लिए अपनी जान तक देने को तय्यार हूँ।”
14. हम उसे क़ाइल न कर सके, इस लिए हम यह कहते हुए ख़ामोश हो गए कि “ख़ुदावन्द की मर्ज़ी पूरी हो।”
15. इस के बाद हम तय्यारियाँ करके यरूशलम चले गए।
16. क़ैसरिया के कुछ शागिर्द भी हमारे साथ चले और हमें मनासोन के घर पहुँचा दिया जहाँ हमें ठहरना था। मनासोन क़ुब्रुस का था और जमाअत के इबतिदाई दिनों में ईमान लाया था।
17. जब हम यरूशलम पहुँचे तो मक़ामी भाइयों ने गर्मजोशी से हमारा इस्तिक़्बाल किया।
18. अगले दिन पौलुस हमारे साथ याक़ूब से मिलने गया। तमाम मक़ामी बुज़ुर्ग भी हाज़िर हुए।
19. उन्हें सलाम करके पौलुस ने तफ़्सील से बयान किया कि अल्लाह ने उस की ख़िदमत की मारिफ़त ग़ैरयहूदियों में क्या किया था।
20. यह सुन कर उन्हों ने अल्लाह की तम्जीद की। फिर उन्हों ने कहा, “भाई, आप को मालूम है कि हज़ारों यहूदी ईमान लाए हैं। और सब बड़ी सरगर्मी से शरीअत पर अमल करते हैं।
21. उन्हें आप के बारे में ख़बर दी गई है कि आप ग़ैरयहूदियों के दर्मियान रहने वाले यहूदियों को तालीम देते हैं कि वह मूसा की शरीअत को छोड़ कर न अपने बच्चों का ख़तना करवाएँ और न हमारे रस्म-ओ-रिवाज के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारें।
22. अब हम क्या करें? वह तो ज़रूर सुनेंगे कि आप यहाँ आ गए हैं।
23. इस लिए हम चाहते हैं कि आप यह करें : हमारे पास चार मर्द हैं जिन्हों ने मन्नत मान कर उसे पूरा कर लिया है।
24. अब उन्हें साथ ले कर उन की तहारत की रुसूमात में शरीक हो जाएँ। उन के अख़्राजात भी आप बर्दाश्त करें ताकि वह अपने सरों को मुंडवा सकें। फिर सब जान लेंगे कि जो कुछ आप के बारे में कहा जाता है वह झूट है और कि आप भी शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं।
25. जहाँ तक ग़ैरयहूदी ईमानदारों की बात है हम उन्हें अपना फ़ैसला ख़त के ज़रीए भेज चुके हैं कि वह इन चीज़ों से पर्हेज़ करें : बुतों को पेश किया गया खाना, ख़ून, ऐसे जानवरों का गोश्त जिन्हें गला घूँट कर मार दिया गया हो और ज़िनाकारी।”
26. चुनाँचे अगले दिन पौलुस उन आदमियों को साथ ले कर उन की तहारत की रुसूमात में शरीक हुआ। फिर वह बैत-उल-मुक़द्दस में उस दिन का एलान करने गया जब तहारत के दिन पूरे हो जाएँगे और उन सब के लिए क़ुर्बानी पेश की जाएगी।
27. इस रस्म के लिए मुक़र्ररा सात दिन ख़त्म होने को थे कि सूबा आसिया के कुछ यहूदियों ने पौलुस को बैत-उल-मुक़द्दस में देखा। उन्हों ने पूरे हुजूम में हलचल मचा कर उसे पकड़ लिया
28. और चीख़ने लगे, “इस्राईल के हज़रात, हमारी मदद करें! यह वही आदमी है जो हर जगह तमाम लोगों को हमारी क़ौम, हमारी शरीअत और इस मक़ाम के ख़िलाफ़ तालीम देता है। न सिर्फ़ यह बल्कि इस ने बैत-उल-मुक़द्दस में ग़ैरयहूदियों को ला कर इस मुक़द्दस जगह की बेहुरमती भी की है।”
29. (यह आख़िरी बात उन्हों ने इस लिए की क्यूँकि उन्हों ने शहर में इफ़िसुस के ग़ैरयहूदी त्रुफ़िमुस को पौलुस के साथ देखा और ख़याल किया था कि वह उसे बैत-उल-मुक़द्दस में लाया है।)
30. पूरे शहर में हंगामा बरपा हुआ और लोग चारों तरफ़ से दौड़ कर आए। पौलुस को पकड़ कर उन्हों ने उसे बैत-उल-मुक़द्दस से बाहर घसीट लिया। जूँ ही वह निकल गए बैत-उल-मुक़द्दस के सहन के दरवाज़ों को बन्द कर दिया गया।
31. वह उसे मार डालने की कोशिश कर रहे थे कि रोमी पलटन के कमाँडर को ख़बर मिल गई, “पूरे यरूशलम में हलचल मच गई है।”
32. यह सुनते ही उस ने अपने फ़ौजियों और अफ़्सरों को इकट्ठा किया और दौड़ कर उन के साथ हुजूम के पास उतर गया। जब हुजूम ने कमाँडर और उस के फ़ौजियों को देखा तो वह पौलुस की पिटाई करने से रुक गया।
33. कमाँडर ने नज़्दीक आ कर उसे गिरिफ़्तार किया और दो ज़न्जीरों से बाँधने का हुक्म दिया। फिर उस ने पूछा, “यह कौन है? इस ने क्या किया है?”
34. हुजूम में से बाज़ कुछ चिल्लाए और बाज़ कुछ। कमाँडर कोई यक़ीनी बात मालूम न कर सका, क्यूँकि अफ़्रा-तफ़्री और शोर-शराबा बहुत था। इस लिए उस ने हुक्म दिया कि पौलुस को क़िलए में ले जाया जाए।
35. वह क़िलए की सीढ़ी तक पहुँच तो गए, लेकिन फिर हुजूम इतना बेकाबू हो गया कि फ़ौजियों को उसे अपने कंधों पर उठा कर चलना पड़ा।
36. लोग उन के पीछे पीछे चलते और चीख़ते चिल्लाते रहे, “उसे मार डालो! उसे मार डालो!”
37. वह पौलुस को क़िलए में ले जा रहे थे कि उस ने कमाँडर से पूछा, “क्या आप से एक बात करने की इजाज़त है?” कमाँडर ने कहा, “अच्छा, आप यूनानी बोल लेते हैं?
38. तो क्या आप वही मिस्री नहीं हैं जो कुछ देर पहले हुकूमत के ख़िलाफ़ उठ कर चार हज़ार दह्शतगरदों को रेगिस्तान में लाया था?”
39. पौलुस ने जवाब दिया, “मैं यहूदी और किलिकिया के मर्कज़ी शहर तर्सुस का शहरी हूँ। मेहरबानी करके मुझे लोगों से बात करने दें।”
40. कमाँडर मान गया और पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े हो कर हाथ से इशारा किया। जब सब ख़ामोश हो गए तो पौलुस अरामी ज़बान में उन से मुख़ातिब हुआ,

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