Acts (20/28)  

1. जब शहर में अफ़्रा-तफ़्री ख़त्म हुई तो पौलुस ने शागिर्दों को बुला कर उन की हौसलाअफ़्ज़ाई की। फिर वह उन्हें ख़ैरबाद कह कर मकिदुनिया के लिए रवाना हुआ।
2. वहाँ पहुँच कर उस ने जगह-ब-जगह जा कर बहुत सी बातों से ईमानदारों की हौसलाअफ़्ज़ाई की। यूँ चलते चलते वह यूनान पहुँच गया
3. जहाँ वह तीन माह तक ठहरा। वह मुल्क-ए-शाम के लिए जहाज़ पर सवार होने वाला था कि पता चला कि यहूदियों ने उस के ख़िलाफ़ साज़िश की है। इस पर उस ने मकिदुनिया से हो कर वापस जाने का फ़ैसला किया।
4. उस के कई हमसफ़र थे : बेरिया से पुरुस का बेटा सोपत्रुस, थिस्सलुनीके से अरिस्तर्ख़ुस और सिकुन्दुस, दिर्बे से गयुस, तीमुथियुस और सूबा आसिया से तुख़िकुस और त्रुफ़िमुस।
5. यह आदमी आगे निकल कर त्रोआस चले गए जहाँ उन्हों ने हमारा इन्तिज़ार किया।
6. बेख़मीरी रोटी की ईद के बाद हम फ़िलिप्पी के क़रीब जहाज़ पर सवार हुए और पाँच दिन के बाद उन के पास त्रोआस पहुँच गए। वहाँ हम सात दिन रहे।
7. इत्वार को हम अशा-ए-रब्बानी मनाने के लिए जमा हुए। पौलुस लोगों से बात करने लगा और चूँकि वह अगले दिन रवाना होने वाला था इस लिए वह आधी रात तक बोलता रहा।
8. ऊपर की मन्ज़िल में जिस कमरे में हम जमा थे वहाँ बहुत से चराग़ जल रहे थे।
9. एक जवान खिड़की की दहलीज़ पर बैठा था। उस का नाम यूतिख़ुस था। जूँ जूँ पौलुस की बातें लम्बी होती जा रही थीं उस पर नींद ग़ालिब आती जा रही थी। आख़िरकार वह गहरी नींद में तीसरी मन्ज़िल से ज़मीन पर गिर गया। जब लोगों ने नीचे पहुँच कर उसे ज़मीन पर से उठाया तो वह जाँ-ब-हक़ हो चुका था।
10. लेकिन पौलुस उतर कर उस पर झुक गया और उसे अपने बाज़ूओं में ले लिया। उस ने कहा, “मत घबराएँ, वह ज़िन्दा है।”
11. फिर वह वापस ऊपर आ गया, अशा-ए-रब्बानी मनाई और खाना खाया। उस ने अपनी बातें पौ फटने तक जारी रखीं, फिर रवाना हुआ।
12. और उन्हों ने जवान को ज़िन्दा हालत में वहाँ से ले कर बहुत तसल्ली पाई।
13. हम आगे निकल कर अस्सुस के लिए जहाज़ पर सवार हुए। ख़ुद पौलुस ने इन्तिज़ाम करवाया था कि वह पैदल जा कर अस्सुस में हमारे जहाज़ पर आएगा।
14. वहाँ वह हम से मिला और हम उसे जहाज़ पर ला कर मतुलेने पहुँचे।
15. अगले दिन हम ख़ियुस के जज़ीरे से गुज़रे। उस से अगले दिन हम सामुस के जज़ीरे के क़रीब आए। इस के बाद के दिन हम मीलेतुस पहुँच गए।
16. पौलुस पहले से फ़ैसला कर चुका था कि मैं इफ़िसुस में नहीं ठहरूँगा बल्कि आगे निकलूँगा, क्यूँकि वह जल्दी में था। वह जहाँ तक मुम्किन था पन्तिकुस्त की ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचना चाहता था।
17. मीलेतुस से पौलुस ने इफ़िसुस की जमाअत के बुज़ुर्गों को बुला लिया।
18. जब वह पहुँचे तो उस ने उन से कहा, “आप जानते हैं कि मैं सूबा आसिया में पहला क़दम उठाने से ले कर पूरा वक़्त आप के साथ किस तरह रहा।
19. मैं ने बड़ी इनकिसारी से ख़ुदावन्द की ख़िदमत की है। मुझे बहुत आँसू बहाने पड़े और यहूदियों की साज़िशों से मुझ पर बहुत आज़्माइशें आईं।
20. मैं ने आप के फ़ाइदे की कोई भी बात आप से छुपाए न रखी बल्कि आप को अलानिया और घर घर जा कर तालीम देता रहा।
21. मैं ने यहूदियों को यूनानियों समेत गवाही दी कि उन्हें तौबा करके अल्लाह की तरफ़ रुजू करने और हमारे ख़ुदावन्द ईसा पर ईमान लाने की ज़रूरत है।
22. और अब मैं रूह-उल-क़ुद्स से बंधा हुआ यरूशलम जा रहा हूँ। मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या कुछ होगा,
23. लेकिन इतना मुझे मालूम है कि रूह-उल-क़ुद्स मुझे शहर-ब-शहर इस बात से आगाह कर रहा है कि मुझे क़ैद और मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा।
24. ख़ैर, मैं अपनी ज़िन्दगी को किसी तरह भी अहम नहीं समझता। अहम बात सिर्फ़ यह है कि मैं अपना वह मिशन और ज़िम्मादारी पूरी करूँ जो ख़ुदावन्द ईसा ने मेरे सपुर्द की है। और वह ज़िम्मादारी यह है कि मैं लोगों को गवाही दे कर यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ कि अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से उन के लिए क्या कुछ किया है।
25. और अब मैं जानता हूँ कि आप सब जिन्हें मैं ने अल्लाह की बादशाही का पैग़ाम सुना दिया है मुझे इस के बाद कभी नहीं देखेंगे।
26. इस लिए मैं आज ही आप को बताता हूँ कि अगर आप में से कोई भी हलाक हो जाए तो मैं बेक़ुसूर हूँ,
27. क्यूँकि मैं आप को अल्लाह की पूरी मर्ज़ी बताने से न झिजका।
28. चुनाँचे ख़बरदार रह कर अपना और उस पूरे गल्ले का ख़याल रखना जिस पर रूह-उल-क़ूदस ने आप को मुक़र्रर किया है। निगरानों और चरवाहों की हैसियत से अल्लाह की जमाअत की ख़िदमत करें, उस जमाअत की जिसे उस ने अपने ही फ़र्ज़न्द के ख़ून से हासिल किया है।
29. मुझे मालूम है कि मेरे जाने के बाद वहशी भेड़िए आप में घुस आएँगे जो गल्ले को नहीं छोड़ेंगे।
30. आप के दर्मियान से भी आदमी उठ कर सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर बयान करेंगे ताकि शागिर्दों को अपने पीछे लगा लें।
31. इस लिए जागते रहें! यह बात ज़हन में रखें कि मैं तीन साल के दौरान दिन रात हर एक को समझाने से बाज़ न आया। मेरे आँसूओं को याद रखें जो मैं ने आप के लिए बहाए हैं।
32. और अब मैं आप को अल्लाह और उस के फ़ज़्ल के कलाम के सपुर्द करता हूँ। यही कलाम आप की तामीर करके आप को वह मीरास मुहय्या करने के क़ाबिल है जो अल्लाह तमाम मुक़द्दस किए गए लोगों को देता है।
33. मैं ने किसी के भी सोने, चाँदी या कपड़ों का लालच न किया।
34. आप ख़ुद जानते हैं कि मैं ने अपने इन हाथों से काम करके न सिर्फ़ अपनी बल्कि अपने साथियों की ज़रूरियात भी पूरी कीं।
35. अपने हर काम में मैं आप को दिखाता रहा कि लाज़िम है कि हम इस क़िस्म की मेहनत करके कमज़ोरों की मदद करें। क्यूँकि हमारे सामने ख़ुदावन्द ईसा के यह अल्फ़ाज़ होने चाहिएँ कि देना लेने से मुबारक है।”
36. यह सब कुछ कह कर पौलुस ने घुटने टेक कर उन सब के साथ दुआ की।
37. सब ख़ूब रोए और उस को गले लगा लगा कर बोसे दिए।
38. उन्हें ख़ासकर पौलुस की इस बात से तक्लीफ़ हुई कि ‘आप इस के बाद मुझे कभी नहीं देखेंगे।’ फिर वह उस के साथ जहाज़ तक गए।

  Acts (20/28)