Acts (19/28)  

1. जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में ठहरा हुआ था तो पौलुस एशिया-ए-कूचक के अन्दरूनी इलाक़े में से सफ़र करते करते साहिली शहर इफ़िसुस में आया। वहाँ उसे कुछ शागिर्द मिले
2. जिन से उस ने पूछा, “क्या आप को ईमान लाते वक़्त रूह-उल-क़ुद्स मिला?” उन्हों ने जवाब दिया, “नहीं, हम ने तो रूह-उल-क़ुद्स का ज़िक्र तक नहीं सुना।”
3. उस ने पूछा, “तो आप को कौन सा बपतिस्मा दिया गया?” उन्हों ने जवाब दिया, “यहया का।”
4. पौलुस ने कहा, “यहया ने बपतिस्मा दिया जब लोगों ने तौबा की। लेकिन उस ने ख़ुद उन्हें बताया, ‘मेरे बाद आने वाले पर ईमान लाओ, यानी ईसा पर’।”
5. यह सुन कर उन्हों ने ख़ुदावन्द ईसा के नाम पर बपतिस्मा लिया।
6. और जब पौलुस ने अपने हाथ उन पर रखे तो उन पर रूह-उल-क़ूदस नाज़िल हुआ, और वह ग़ैरज़बानें बोलने और नुबुव्वत करने लगे।
7. इन आदमियों की कुल तादाद तक़्रीबन बारह थी।
8. पौलुस यहूदी इबादतख़ाने में गया और तीन महीने के दौरान यहूदियों से दिलेरी से बात करता रहा। उन के साथ बह्स करके उस ने उन्हें अल्लाह की बादशाही के बारे में क़ाइल करने की कोशिश की।
9. लेकिन कुछ अड़ गए। वह अल्लाह के ताबे न हुए बल्कि अवाम के सामने ही अल्लाह की राह को बुरा-भला कहने लगे। इस पर पौलुस ने उन्हें छोड़ दिया। शागिर्दों को भी अलग करके वह उन के साथ तुरन्नुस के लैक्चर हाल में जमा हुआ करता था जहाँ वह रोज़ाना उन्हें तालीम देता रहा।
10. यह सिलसिला दो साल तक जारी रहा। यूँ सूबा आसिया के तमाम लोगों को ख़ुदावन्द का कलाम सुनने का मौक़ा मिला, ख़्वाह वह यहूदी थे या यूनानी।
11. अल्लाह ने पौलुस की मारिफ़त ग़ैरमामूली मोजिज़े किए,
12. यहाँ तक कि जब रूमाल या एप्रन उस के बदन से लगाने के बाद मरीज़ों पर रखे जाते तो उन की बीमारियाँ जाती रहतीं और बदरुहें निकल जातीं।
13. वहाँ कुछ ऐसे यहूदी भी थे जो जगह जगह जा कर बदरुहें निकालते थे। अब वह बदरूहों के बंधन में फंसे लोगों पर ख़ुदावन्द ईसा का नाम इस्तेमाल करने की कोशिश करके कहने लगे, “मैं तुझे उस ईसा के नाम से निकलने का हुक्म देता हूँ जिस की मुनादी पौलुस करता है।”
14. एक यहूदी राहनुमा इमाम बनाम स्किवा के सात बेटे ऐसा करते थे।
15. लेकिन एक दफ़ा जब यही कोशिश कर रहे थे तो बदरुह ने जवाब दिया, “ईसा को तो मैं जानती हूँ और पौलुस को भी, लेकिन तुम कौन हो?”
16. फिर वह आदमी जिस में बदरुह थी उन पर झपट कर सब पर ग़ालिब आ गया। उस का उन पर इतना सख़्त हम्ला हुआ कि वह नंगे और ज़ख़्मी हालत में भाग कर उस घर से निकल गए।
17. इस वाकिए की ख़बर इफ़िसुस के तमाम रहने वाले यहूदियों और यूनानियों में फैल गई। उन पर ख़ौफ़ तारी हुआ और ख़ुदावन्द ईसा के नाम की ताज़ीम हुई।
18. जो ईमान लाए थे उन में से बहुतेरों ने आ कर अलानिया अपने गुनाहों का इक़्रार किया।
19. जादूगरी करने वालों की बड़ी तादाद ने अपनी जादूमंत्र की किताबें इकट्ठी करके अवाम के सामने जला दीं। पूरी किताबों का हिसाब किया गया तो उन की कुल रक़म चाँदी के पचास हज़ार सिक्के थी।
20. यूँ ख़ुदावन्द का कलाम ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ता और ज़ोर पकड़ता गया।
21. इन वाक़िआत के बाद पौलुस ने मकिदुनिया और अख़या में से गुज़र कर यरूशलम जाने का फ़ैसला किया। उस ने कहा, “इस के बाद लाज़िम है कि मैं रोम भी जाऊँ।”
22. उस ने अपने दो मददगारों तीमुथियुस और इरास्तुस को आगे मकिदुनिया भेज दिया जबकि वह ख़ुद मज़ीद कुछ देर के लिए सूबा आसिया में ठहरा रहा।
23. तक़्रीबन उस वक़्त अल्लाह की राह एक शदीद हंगामे का बाइस हो गई।
24. यह यूँ हुआ, इफ़िसुस में एक चाँदी की अश्या बनाने वाला रहता था जिस का नाम देमेत्रियुस था। वह चाँदी से अर्तमिस देवी के मन्दिर बनवाता था, और उस के काम से दस्तकारों का कारोबार ख़ूब चलता था।
25. अब उस ने इस काम से ताल्लुक़ रखने वाले दीगर दस्तकारों को जमा करके उन से कहा, “हज़रात, आप को मालूम है कि हमारी दौलत इस कारोबार पर मुन्हसिर है।
26. आप ने यह भी देख और सुन लिया है कि इस आदमी पौलुस ने न सिर्फ़ इफ़िसुस बल्कि तक़्रीबन पूरे सूबा आसिया में बहुत से लोगों को भटका कर क़ाइल कर लिया है कि हाथों के बने देवता हक़ीक़त में देवता नहीं होते।
27. न सिर्फ़ यह ख़त्रा है कि हमारे कारोबार की बदनामी हो बल्कि यह भी कि अज़ीम देवी अर्तमिस के मन्दिर का असर-ओ-रसूख़ जाता रहेगा, कि अर्तमिस ख़ुद जिस की पूजा सूबा आसिया और पूरी दुनिया में की जाती है अपनी अज़्मत खो बैठे।”
28. यह सुन कर वह तैश में आ कर चीख़ने-चिल्लाने लगे, “इफ़िसियों की अर्तमिस देवी अज़ीम है!”
29. पूरे शहर में हलचल मच गई। लोगों ने पौलुस के मकिदुनी हमसफ़र गयुस और अरिस्तर्ख़ुस को पकड़ लिया और मिल कर तमाशागाह में दौड़े आए।
30. यह देख कर पौलुस भी अवाम के इस इज्लास में जाना चाहता था, लेकिन शागिर्दों ने उसे रोक लिया।
31. इसी तरह उस के कुछ दोस्तों ने भी जो सूबा आसिया के अफ़्सर थे उसे ख़बर भेज कर मिन्नत की कि वह न जाए।
32. इज्लास में बड़ी अफ़्रा-तफ़्री थी। कुछ यह चीख़ रहे थे, कुछ वह। ज़ियादातर लोग जमा होने की वजह जानते भी न थे।
33. यहूदियों ने सिकन्दर को आगे कर दिया। साथ साथ हुजूम के कुछ लोग उसे हिदायात देते रहे। उस ने हाथ से ख़ामोश हो जाने का इशारा किया ताकि वह इज्लास के सामने अपना दिफ़ा करे।
34. लेकिन जब उन्हों ने जान लिया कि वह यहूदी है तो वह तक़्रीबन दो घंटों तक चिल्ला कर नारा लगाते रहे, “इफ़िसुस की अर्तमिस देवी अज़ीम है!”
35. आख़िरकार बलदिया का चीफ़ सैक्रटरी उन्हें ख़ामोश कराने में काम्याब हुआ। फिर उस ने कहा, “इफ़िसुस के हज़रात, किस को मालूम नहीं कि इफ़िसुस अज़ीम अर्तमिस देवी के मन्दिर का मुहाफ़िज़ है! पूरी दुनिया जानती है कि हम उस के उस मुजस्समे के निगरान हैं जो आस्मान से गिर कर हमारे पास पहुँच गया।
36. यह हक़ीक़त तो नाक़ाबिल-ए-इन्कार है। चुनाँचे लाज़िम है कि आप चुप-चाप रहें और जल्दबाज़ी न करें।
37. आप यह आदमी यहाँ लाए हैं हालाँकि न तो वह मन्दिरों को लूटने वाले हैं, न उन्हों ने देवी की बेहुरमती की है।
38. अगर देमेत्रियुस और उस के साथ वाले दस्तकारों का किसी पर इल्ज़ाम है तो इस के लिए कचहरियाँ और गवर्नर होते हैं। वहाँ जा कर वह एक दूसरे से मुक़द्दमा लड़ें।
39. अगर आप मज़ीद कोई मुआमला पेश करना चाहते हैं तो उसे हल करने के लिए क़ानूनी मजलिस होती है।
40. अब हम इस ख़त्रे में हैं कि आज के वाक़िआत के बाइस हम पर फ़साद का इल्ज़ाम लगाया जाएगा। क्यूँकि जब हम से पूछा जाएगा तो हम इस क़िस्म के बेतर्तीब और नाजाइज़ इजतिमा का कोई जवाज़ पेश नहीं कर सकेंगे।”
41. यह कह कर उस ने इज्लास को बर्ख़ास्त कर दिया।

  Acts (19/28)