Acts (10/28)  

1. क़ैसरिया में एक रोमी अफ़्सर रहता था जिस का नाम कुर्नेलियुस था। वह उस पलटन के सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर था जो इतालवी कहलाती थी।
2. कुर्नेलियुस अपने पूरे घराने समेत दीनदार और ख़ुदातरस था। वह फ़य्याज़ी से ख़ैरात देता और मुतवातिर दुआ में लगा रहता था।
3. एक दिन उस ने तीन बजे दोपहर के वक़्त रोया देखी। उस में उस ने साफ़ तौर पर अल्लाह का एक फ़रिश्ता देखा जो उस के पास आया और कहा, “कुर्नेलियुस!”
4. वह घबरा गया और उसे ग़ौर से देखते हुए कहा, “मेरे आक़ा, फ़रमाएँ।” फ़रिश्ते ने कहा, “तुम्हारी दुआओं और ख़ैरात की क़ुर्बानी अल्लाह के हुज़ूर पहुँच गई है और मन्ज़ूर है।
5. अब कुछ आदमी याफ़ा भेज दो। वहाँ एक आदमी बनाम शमाऊन है जो पत्रस कहलाता है। उसे बुला कर ले आओ।
6. पत्रस एक चमड़ा रंगने वाले का मेहमान है जिस का नाम शमाऊन है। उस का घर समुन्दर के क़रीब वाक़े है।”
7. जूँ ही फ़रिश्ता चला गया कुर्नेलियुस ने दो नौकरों और अपने ख़िदमतगार फ़ौजियों में से एक ख़ुदातरस आदमी को बुलाया।
8. सब कुछ सुना कर उस ने उन्हें याफ़ा भेज दिया।
9. अगले दिन पत्रस दोपहर तक़्रीबन बारह बजे दुआ करने के लिए छत पर चढ़ गया। उस वक़्त कुर्नेलियुस के भेजे हुए आदमी याफ़ा शहर के क़रीब पहुँच गए थे।
10. पत्रस को भूक लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब उस के लिए खाना तय्यार किया जा रहा था तो वह वज्द की हालत में आ गया।
11. उस ने देखा कि आस्मान खुल गया है और एक चीज़ ज़मीन पर उतर रही है, कतान की बड़ी चादर जैसी जो अपने चार कोनों से नीचे उतारी जा रही है।
12. चादर में तमाम क़िस्म के जानवर हैं : चार पाँओ रखने वाले, रेंगने वाले और परिन्दे।
13. फिर एक आवाज़ उस से मुख़ातिब हुई, “उठ, पत्रस। कुछ ज़बह करके खा!”
14. पत्रस ने एतिराज़ किया, “हरगिज़ नहीं ख़ुदावन्द, मैं ने कभी भी हराम या नापाक खाना नहीं खाया।”
15. लेकिन यह आवाज़ दुबारा उस से हमकलाम हुई, “जो कुछ अल्लाह ने पाक कर दिया है उसे नापाक क़रार न दे।”
16. यही कुछ तीन मर्तबा हुआ, फिर चादर को अचानक आस्मान पर वापस उठा लिया गया।
17. पत्रस बड़ी उलझन में पड़ गया। वह अभी सोच रहा था कि इस रोया का क्या मतलब है तो कुर्नेलियुस के भेजे हुए आदमी शमाऊन के घर का पता करके उस के गेट पर पहुँच गए।
18. आवाज़ दे कर उन्हों ने पूछा, “क्या शमाऊन जो पत्रस कहलाता है आप के मेहमान हैं?”
19. पत्रस अभी रोया पर ग़ौर कर ही रहा था कि रूह-उल-क़ुद्स उस से हमकलाम हुआ, “शमाऊन, तीन मर्द तेरी तलाश में हैं।
20. उठ और छत से उतर कर उन के साथ चला जा। मत झिजकना, क्यूँकि मैं ही ने उन्हें तेरे पास भेजा है।”
21. चुनाँचे पत्रस उन आदमियों के पास गया और उन से कहा, “मैं वही हूँ जिसे आप ढूँड रहे हैं। आप क्यूँ मेरे पास आए हैं?”
22. उन्हों ने जवाब दिया, “हम सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़्सर कुर्नेलियुस के घर से आए हैं। वह इन्साफ़पर्वर और ख़ुदातरस आदमी हैं। पूरी यहूदी क़ौम इस की तस्दीक़ कर सकती है। एक मुक़द्दस फ़रिश्ते ने उन्हें हिदायत दी कि वह आप को अपने घर बुला कर आप का पैग़ाम सुनें।”
23. यह सुन कर पत्रस उन्हें अन्दर ले गया और उन की मेहमान-नवाज़ी की। अगले दिन वह उठ कर उन के साथ रवाना हुआ। याफ़ा के कुछ भाई भी साथ गए।
24. एक दिन के बाद वह क़ैसरिया पहुँच गया। कुर्नेलियुस उन के इन्तिज़ार में था। उस ने अपने रिश्तेदारों और क़रीबी दोस्तों को भी अपने घर जमा कर रखा था।
25. जब पत्रस घर में दाख़िल हुआ तो कुर्नेलियुस ने उस के सामने गिर कर उसे सिज्दा किया।
26. लेकिन पत्रस ने उसे उठा कर कहा, “उठें। मैं भी इन्सान ही हूँ।”
27. और उस से बातें करते करते वह अन्दर गया और देखा कि बहुत से लोग जमा हो गए हैं।
28. उस ने उन से कहा, “आप जानते हैं कि किसी यहूदी के लिए किसी ग़ैरयहूदी से रिफ़ाक़त रखना या उस के घर में जाना मना है। लेकिन अल्लाह ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी को भी हराम या नापाक क़रार न दूँ।
29. इस वजह से जब मुझे बुलाया गया तो मैं एतिराज़ किए बग़ैर चला आया। अब मुझे बता दीजिए कि आप ने मुझे क्यूँ बुलाया है?”
30. कुर्नेलियुस ने जवाब दिया, “चार दिन की बात है कि मैं इसी वक़्त दोपहर तीन बजे दुआ कर रहा था। अचानक एक आदमी मेरे सामने आ खड़ा हुआ। उस के कपड़े चमक रहे थे।
31. उस ने कहा, ‘कुर्नेलियुस, अल्लाह ने तुम्हारी दुआ सुन ली और तुम्हारी ख़ैरात का ख़याल किया है।
32. अब किसी को याफ़ा भेज कर शमाऊन को बुला लो जो पत्रस कहलाता है। वह चमड़ा रंगने वाले शमाऊन का मेहमान है। शमाऊन का घर समुन्दर के क़रीब वाक़े है।’
33. यह सुनते ही मैं ने अपने लोगों को आप को बुलाने के लिए भेज दिया। अच्छा हुआ कि आप आ गए हैं। अब हम सब अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हैं ताकि वह कुछ सुनें जो रब्ब ने आप को हमें बताने को कहा है।”
34. फिर पत्रस बोल उठा, “अब मैं समझ गया हूँ कि अल्लाह वाक़ई जानिबदार नहीं,
35. बल्कि हर किसी को क़बूल करता है जो उस का ख़ौफ़ मानता और रास्त काम करता है।
36. आप अल्लाह की उस ख़ुशख़बरी से वाक़िफ़ हैं जो उस ने इस्राईलियों को भेजी, यह ख़ुशख़बरी कि ईसा मसीह के वसीले से सलामती आई है। ईसा मसीह सब का ख़ुदावन्द है।
37. आप को वह कुछ मालूम है जो गलील से शुरू हो कर यहूदिया के पूरे इलाक़े में हुआ यानी उस बपतिस्मे के बाद जिस की मुनादी यहया ने की।
38. और आप जानते हैं कि अल्लाह ने ईसा नासरी को रूह-उल-क़ुद्स और क़ुव्वत से मसह किया और कि इस पर उस ने जगह जगह जा कर नेक काम किया और इब्लीस के दबे हुए तमाम लोगों को शिफ़ा दी, क्यूँकि अल्लाह उस के साथ था।
39. जो कुछ भी उस ने मुल्क-ए-यहूद और यरूशलम में किया, उस के गवाह हम ख़ुद हैं। गो लोगों ने उसे लकड़ी पर लटका कर क़त्ल कर दिया
40. लेकिन अल्लाह ने तीसरे दिन उसे मुर्दों में से ज़िन्दा किया और उसे लोगों पर ज़ाहिर किया।
41. वह पूरी क़ौम पर तो ज़ाहिर नहीं हुआ बल्कि हम पर जिन को अल्लाह ने पहले से चुन लिया था ताकि हम उस के गवाह हों। हम ने उस के जी उठने के बाद उस के साथ खाने-पीने की रिफ़ाक़त भी रखी।
42. उस वक़्त उस ने हमें हुक्म दिया कि मुनादी करके क़ौम को गवाही दो कि ईसा वही है जिसे अल्लाह ने ज़िन्दों और मुर्दों पर मुन्सिफ़ मुक़र्रर किया है।
43. तमाम नबी उस की गवाही देते हैं कि जो भी उस पर ईमान लाए उसे उस के नाम के वसीले से गुनाहों की मुआफ़ी मिल जाएगी।”
44. पत्रस अभी यह बात कर ही रहा था कि तमाम सुनने वालों पर रूह-उल-क़ूदस नाज़िल हुआ।
45. जो यहूदी ईमानदार पत्रस के साथ आए थे वह हक्का-बक्का रह गए कि रूह-उल-क़ुद्स की नेमत ग़ैरयहूदियों पर भी उंडेली गई है,
46. क्यूँकि उन्हों ने देखा कि वह ग़ैरज़बानें बोल रहे और अल्लाह की तम्जीद कर रहे हैं। तब पत्रस ने कहा,
47. “अब कौन इन को बपतिस्मा लेने से रोक सकता है? इन्हें तो हमारी तरह रूह-उल-क़ुद्स हासिल हुआ है।”
48. और उस ने हुक्म दिया कि उन्हें ईसा मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए। इस के बाद उन्हों ने पत्रस से गुज़ारिश की कि कुछ दिन हमारे पास ठहरें।

  Acts (10/28)