Acts (1/28) → |
1. | मुअज़्ज़ज़ थियुफ़िलुस, पहली किताब में मैं ने सब कुछ बयान किया जो ईसा ने शुरू से ले कर |
2. | उस दिन तक किया और सिखाया, जब उसे आस्मान पर उठाया गया। जाने से पहले उस ने अपने चुने हुए रसूलों को रूह-उल-क़ुद्स की मारिफ़त मज़ीद हिदायात दीं। |
3. | अपने दुख उठाने और मौत सहने के बाद उस ने अपने आप को ज़ाहिर करके उन्हें बहुत सी दलीलों से क़ाइल किया कि वह वाक़ई ज़िन्दा है। वह चालीस दिन के दौरान उन पर ज़ाहिर होता और उन्हें अल्लाह की बादशाही के बारे में बताता रहा। |
4. | जब वह अभी उन के साथ था उस ने उन्हें हुक्म दिया, “यरूशलम को न छोड़ना बल्कि इस इन्तिज़ार में यहीं ठहरो कि बाप का वादा पूरा हो जाए, वह वादा जिस के बारे में मैं ने तुम को आगाह किया है। |
5. | क्यूँकि यहया ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, लेकिन तुम को थोड़े दिनों के बाद रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा दिया जाएगा।” |
6. | जो वहाँ जमा थे उन्हों ने उस से पूछा, “ख़ुदावन्द, क्या आप इसी वक़्त इस्राईल के लिए उस की बादशाही दुबारा क़ाइम करेंगे?” |
7. | ईसा ने जवाब दिया, “यह जानना तुम्हारा काम नहीं है बल्कि सिर्फ़ बाप का जो ऐसे औक़ात और तारीखें मुक़र्रर करने का इख़तियार रखता है। |
8. | लेकिन तुम्हें रूह-उल-क़ुद्स की क़ुव्वत मिलेगी जो तुम पर नाज़िल होगा। फिर तुम यरूशलम, पूरे यहूदिया और सामरिया बल्कि दुनिया की इन्तिहा तक मेरे गवाह होगे।” |
9. | यह कह कर वह उन के देखते देखते उठा लिया गया। और एक बादल ने उसे उन की नज़रों से ओझल कर दिया। |
10. | वह अभी आस्मान की तरफ़ देख ही रहे थे कि अचानक दो आदमी उन के पास आ खड़े हुए। दोनों सफ़ेद लिबास पहने हुए थे। |
11. | उन्हों ने कहा, “गलील के मर्दो, आप क्यूँ खड़े आस्मान की तरफ़ देख रहे हैं? यही ईसा जिसे आप के पास से आस्मान पर उठाया गया है उसी तरह वापस आएगा जिस तरह आप ने उसे ऊपर जाते हुए देखा है।” |
12. | फिर वह ज़ैतून के पहाड़ से यरूशलम शहर वापस चले गए। (यह पहाड़ शहर से तक़्रीबन एक किलोमीटर दूर है।) |
13. | वहाँ पहुँच कर वह उस बालाख़ाने में दाख़िल हुए जिस में वह ठहरे हुए थे, यानी पत्रस, यूहन्ना, याक़ूब और अन्द्रियास, फ़िलिप्पुस और तोमा, बरतुल्माई और मत्ती, याक़ूब बिन हल्फ़ई, शमाऊन मुजाहिद और यहूदाह बिन याक़ूब। |
14. | यह सब यकदिल हो कर दुआ में लगे रहे। कुछ औरतें, ईसा की माँ मरियम और उस के भाई भी साथ थे। |
15. | उन दिनों में पत्रस भाइयों में खड़ा हुआ। उस वक़्त तक़्रीबन 120 लोग जमा थे। उस ने कहा, |
16. | “भाइयो, लाज़िम था कि कलाम-ए-मुक़द्दस की वह पेशगोई पूरी हो जो रूह-उल-क़ुद्स ने दाऊद की मारिफ़त यहूदाह के बारे में की। यहूदाह उन का राहनुमा बन गया जिन्हों ने ईसा को गिरिफ़्तार किया, |
17. | गो उसे हम में शुमार किया जाता था और वह इसी ख़िदमत में हमारे साथ शरीक था।” |
18. | (जो पैसे यहूदाह को उस के ग़लत काम के लिए मिल गए थे उन से उस ने एक खेत ख़रीद लिया था। वहाँ वह सर के बल गिर गया, उस का पेट फट गया और उस की तमाम अंतड़ियाँ बाहर निकल पडीं। |
19. | इस का चर्चा यरूशलम के तमाम बाशिन्दों में फैल गया, इस लिए यह खेत उन की मादरी ज़बान में हक़ल्दमा के नाम से मश्हूर हुआ जिस का मतलब है ख़ून का खेत।) |
20. | पत्रस ने अपनी बात जारी रखी, “यही बात ज़बूर की किताब में लिखी है, ‘उस की रिहाइशगाह सुन्सान हो जाए, कोई उस में आबाद न हो।’ यह भी लिखा है, ‘कोई और उस की ज़िम्मादारी उठाए।’ |
21. | चुनाँचे अब ज़रूरी है कि हम यहूदाह की जगह किसी और को चुन लें। यह शख़्स उन मर्दों में से एक हो जो उस पूरे वक़्त के दौरान हमारे साथ सफ़र करते रहे जब ख़ुदावन्द ईसा हमारे साथ था, |
22. | यानी उस के यहया के हाथ से बपतिस्मा लेने से ले कर उस वक़्त तक जब उसे हमारे पास से उठाया गया। लाज़िम है कि उन में से एक हमारे साथ ईसा के जी उठने का गवाह हो।” |
23. | चुनाँचे उन्हों ने दो आदमी पेश किए, यूसुफ़ जो बर्सब्बा कहलाता था (उस का दूसरा नाम यूस्तुस था) और मत्तियाह। |
24. | फिर उन्हों ने दुआ की, “ऐ ख़ुदावन्द, तू हर एक के दिल से वाक़िफ़ है। हम पर ज़ाहिर कर कि तू ने इन दोनों में से किस को चुना है |
25. | ताकि वह उस ख़िदमत की ज़िम्मादारी उठाए जो यहूदाह छोड़ कर वहाँ चला गया जहाँ उसे जाना ही था।” |
26. | यह कह कर उन्हों ने दोनों का नाम ले कर क़ुरआ डाला तो मत्तियाह का नाम निकला। लिहाज़ा उसे भी ग्यारह रसूलों में शामिल कर लिया गया। |
Acts (1/28) → |