| ← 2Timothy (3/4) → |
| 1. | लेकिन यह बात जान लें कि आख़िरी दिनों में हौलनाक लम्हे आएँगे। |
| 2. | लोग ख़ुदपसन्द और पैसों के लालची होंगे। वह शेख़ीबाज़, मग़रूर, कुफ़्र बकने वाले, माँ-बाप के नाफ़रमान, नाशुकरे, बेदीन |
| 3. | और मुहब्बत से ख़ाली होंगे। वह सुलह करने के लिए तय्यार नहीं होंगे, दूसरों पर तुहमत लगाएँगे, अय्याश और वहशी होंगे और भलाई से नफ़रत रखेंगे। |
| 4. | वह नमकहराम, ग़ैरमुह्तात और ग़रूर से फूले हुए होंगे। अल्लाह से मुहब्बत रखने के बजाय उन्हें ऐश-ओ-इश्रत पियारी होगी। |
| 5. | वह बज़ाहिर ख़ुदातरस ज़िन्दगी गुज़ारेंगे, लेकिन हक़ीक़ी ख़ुदातरस ज़िन्दगी की क़ुव्वत का इन्कार करेंगे। ऐसों से किनारा करें। |
| 6. | उन में से कुछ लोग घरों में घुस कर कमज़ोर ख़वातीन को अपने जाल में फंसा लेते हैं, ऐसी ख़वातीन को जो अपने गुनाहों तले दबी हुई हैं और जिन्हें कई तरह की शहवतें चलाती हैं। |
| 7. | गो यह हर वक़्त तालीम हासिल करती रहती हैं तो भी सच्चाई को जानने तक कभी नहीं पहुँच सकतीं। |
| 8. | जिस तरह यन्नेस और यम्ब्रेस मूसा की मुख़ालफ़त करते थे उसी तरह यह लोग भी सच्चाई की मुख़ालफ़त करते हैं। इन का ज़हन बिगड़ा हुआ है और इन का ईमान नामक़्बूल निकला। |
| 9. | लेकिन यह ज़ियादा तरक़्क़ी नहीं करेंगे क्यूँकि इन की हमाक़त सब पर ज़ाहिर हो जाएगी, बिलकुल उसी तरह जिस तरह यन्नेस और यम्ब्रेस के साथ भी हुआ। |
| 10. | लेकिन आप हर लिहाज़ से मेरे शागिर्द रहे हैं, चाल-चलन में, इरादे में, ईमान में, सब्र में, मुहब्बत में, साबितक़दमी में, |
| 11. | ईज़ारसानियों में और दुखों में। अन्ताकिया, इकुनियुम और लुस्तरा में मेरे साथ क्या कुछ न हुआ! वहाँ मुझे कितनी सख़्त ईज़ारसानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे इन सब से रिहाई दी। |
| 12. | बात यह है कि सब जो मसीह ईसा में ख़ुदातरस ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते हैं उन्हें सताया जाएगा। |
| 13. | साथ साथ शरीर और धोकेबाज़ लोग अपने ग़लत कामों में तरक़्क़ी करते जाएँगे। वह दूसरों को ग़लत राह पर ले जाएँगे और उन्हें ख़ुद भी ग़लत राह पर लाया जाएगा। |
| 14. | लेकिन आप ख़ुद उस पर क़ाइम रहें जो आप ने सीख लिया और जिस पर आप को यक़ीन आया है। क्यूँकि आप अपने उस्तादों को जानते हैं |
| 15. | और आप बचपन से मुक़द्दस सहीफ़ों से वाक़िफ़ हैं। अल्लाह का यह कलाम आप को वह हिक्मत अता कर सकता है जो मसीह ईसा पर ईमान लाने से नजात तक पहुँचाती है। |
| 16. | क्यूँकि हर पाक नविश्ता अल्लाह के रूह से वुजूद में आया है और तालीम देने, मलामत करने, इस्लाह करने और रास्तबाज़ ज़िन्दगी गुज़ारने की तर्बियत देने के लिए मुफ़ीद है। |
| 17. | कलाम-ए-मुक़द्दस का मक़्सद यही है कि अल्लाह का बन्दा हर लिहाज़ से क़ाबिल और हर नेक काम के लिए तय्यार हो। |
| ← 2Timothy (3/4) → |