2Samuel (6/24)  

1. एक बार फिर दाऊद ने इस्राईल के चुनीदा आदमियों को जमा किया। 30,000 अफ़राद थे।
2. उन के साथ मिल कर वह यहूदाह के बाला पहुँच गया ताकि अल्लाह का सन्दूक़ उठा कर यरूशलम ले जाएँ, वही सन्दूक़ जिस पर रब्ब-उल-अफ़्वाज के नाम का ठप्पा लगा है और जहाँ वह सन्दूक़ के ऊपर करूबी फ़रिश्तों के दर्मियान तख़्तनशीन है।
3. लोगों ने अल्लाह के सन्दूक़ को पहाड़ी पर वाक़े अबीनदाब के घर से निकाल कर एक नई बैलगाड़ी पर रख दिया, और अबीनदाब के दो बेटे उज़्ज़ा और अखियो उसे यरूशलम की तरफ़ ले जाने लगे। अखियो गाड़ी के आगे आगे
4. लोगों ने अल्लाह के सन्दूक़ को पहाड़ी पर वाक़े अबीनदाब के घर से निकाल कर एक नई बैलगाड़ी पर रख दिया, और अबीनदाब के दो बेटे उज़्ज़ा और अखियो उसे यरूशलम की तरफ़ ले जाने लगे। अखियो गाड़ी के आगे आगे
5. और दाऊद बाक़ी तमाम लोगों के साथ पीछे चल रहा था। सब रब्ब के हुज़ूर पूरे ज़ोर से ख़ुशी मनाने और गीत गाने लगे। मुख़्तलिफ़ साज़ भी बजाए जा रहे थे। फ़िज़ा सितारों, सरोदों, दफ़ों, ख़न्जरियों और झाँझों की आवाज़ों से गूँज उठी।
6. वह गन्दुम गाहने की एक जगह पर पहुँच गए जिस के मालिक का नाम नकोन था। वहाँ बैल अचानक बेकाबू हो गए। उज़्ज़ा ने जल्दी से अल्लाह का सन्दूक़ पकड़ लिया ताकि वह गिर न जाए।
7. उसी लम्हे रब्ब का ग़ज़ब उस पर नाज़िल हुआ, क्यूँकि उस ने अल्लाह के सन्दूक़ को छूने की जुरअत की थी। वहीं अल्लाह के सन्दूक़ के पास ही उज़्ज़ा गिर कर हलाक हो गया।
8. दाऊद को बड़ा रंज हुआ कि रब्ब का ग़ज़ब उज़्ज़ा पर यूँ टूट पड़ा है। उस वक़्त से उस जगह का नाम परज़-उज़्ज़ा यानी ‘उज़्ज़ा पर टूट पड़ना’ है।
9. उस दिन दाऊद को रब्ब से ख़ौफ़ आया। उस ने सोचा, “रब्ब का सन्दूक़ किस तरह मेरे पास पहुँच सकेगा?”
10. चुनाँचे उस ने फ़ैसला किया कि हम रब्ब का सन्दूक़ यरूशलम नहीं ले जाएँगे बल्कि उसे ओबेद-अदोम जाती के घर में मह्फ़ूज़ रखेंगे।
11. वहाँ वह तीन माह तक पड़ा रहा। इन तीन महीनों के दौरान रब्ब ने ओबेद-अदोम और उस के पूरे घराने को बर्कत दी।
12. एक दिन दाऊद को इत्तिला दी गई, “जब से अल्लाह का सन्दूक़ ओबेद-अदोम के घर में है उस वक़्त से रब्ब ने उस के घराने और उस की पूरी मिल्कियत को बर्कत दी है।” यह सुन कर दाऊद ओबेद-अदोम के घर गया और ख़ुशी मनाते हुए अल्लाह के सन्दूक़ को दाऊद के शहर ले आया।
13. छः क़दमों के बाद दाऊद ने रब्ब का सन्दूक़ उठाने वालों को रोक कर एक साँड और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा क़ुर्बान किया।
14. जब जुलूस आगे निकला तो दाऊद पूरे ज़ोर के साथ रब्ब के हुज़ूर नाचने लगा। वह कतान का बालापोश पहने हुए था।
15. ख़ुशी के नारे लगा लगा कर और नरसिंगे फूँक फूँक कर दाऊद और तमाम इस्राईली रब्ब का सन्दूक़ यरूशलम ले आए।
16. रब्ब का सन्दूक़ दाऊद के शहर में दाख़िल हुआ तो दाऊद की बीवी मीकल बिन्त साऊल खिड़की में से जुलूस को देख रही थी। जब बादशाह रब्ब के हुज़ूर कूदता और नाचता हुआ नज़र आया तो मीकल ने दिल में उसे हक़ीर जाना।
17. रब्ब का सन्दूक़ उस तम्बू के दर्मियान में रखा गया जो दाऊद ने उस के लिए लगवाया था। फिर दाऊद ने रब्ब के हुज़ूर भस्म होने वाली और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
18. इस के बाद उस ने क़ौम को रब्ब-उल-अफ़्वाज के नाम से बर्कत दे कर
19. हर इस्राईली मर्द और औरत को एक रोटी, खजूर की एक टिक्की और किशमिश की एक टिक्की दे दी। फिर तमाम लोग अपने अपने घरों को वापस चले गए।
20. दाऊद भी अपने घर लौटा ताकि अपने ख़ान्दान को बर्कत दे कर सलाम करे। वह अभी महल के अन्दर नहीं पहुँचा था कि मीकल निकल कर उस से मिलने आई। उस ने तन्ज़न कहा, “वाह जी वाह। आज इस्राईल का बादशाह कितनी शान के साथ लोगों को नज़र आया है! अपने लोगों की लौंडियों के सामने ही उस ने अपने कपड़े उतार दिए, बिलकुल उसी तरह जिस तरह गंवार करते हैं।”
21. दाऊद ने जवाब दिया, “मैं रब्ब ही के हुज़ूर नाच रहा था, जिस ने आप के बाप और उस के ख़ान्दान को तर्क करके मुझे चुन लिया और इस्राईल का बादशाह बना दिया है। उसी की ताज़ीम में मैं आइन्दा भी नाचूँगा।
22. हाँ, मैं इस से भी ज़ियादा ज़लील होने के लिए तय्यार हूँ। जहाँ तक लौंडियों का ताल्लुक़ है, वह ज़रूर मेरी इज़्ज़त करेंगी।”
23. जीते जी मीकल बेऔलाद रही।

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