2Samuel (19/24)  

1. योआब को इत्तिला दी गई, “बादशाह रोते रोते अबीसलूम का मातम कर रहा है।”
2. जब फ़ौजियों को ख़बर मिली कि बादशाह अपने बेटे का मातम कर रहा है तो फ़त्ह पाने पर उन की सारी ख़ुशी काफ़ूर हो गई। हर तरफ़ मातम और ग़म का समाँ था।
3. उस दिन दाऊद के आदमी चोरी चोरी शहर में घुस आए, ऐसे लोगों की तरह जो मैदान-ए-जंग से फ़रार होने पर शरमाते हुए चुपके से शहर में आ जाते हैं।
4. बादशाह अभी कमरे में बैठा था। अपने मुँह को ढाँप कर वह चीख़ता चिल्लाता रहा, “हाय मेरे बेटे अबीसलूम! हाय अबीसलूम, मेरे बेटे, मेरे बेटे!”
5. तब योआब उस के पास जा कर उसे समझाने लगा, “आज आप के ख़ादिमों ने न सिर्फ़ आप की जान बचाई है बल्कि आप के बेटों, बेटियों, बीवियों और दाश्ताओं की जान भी। तो भी आप ने उन का मुँह काला कर दिया है।
6. जो आप से नफ़रत करते हैं उन से आप मुहब्बत रखते हैं जबकि जो आप से पियार करते हैं उन से आप नफ़रत करते हैं। आज आप ने साफ़ ज़ाहिर कर दिया है कि आप के कमाँडर और दस्ते आप की नज़र में कोई हैसियत नहीं रखते। हाँ, आज मैं ने जान लिया है कि अगर अबीसलूम ज़िन्दा होता तो आप ख़ुश होते, ख़्वाह हम बाक़ी तमाम लोग हलाक क्यूँ न हो जाते।
7. अब उठ कर बाहर जाएँ और अपने ख़ादिमों की हौसलाअफ़्ज़ाई करें। रब्ब की क़सम, अगर आप बाहर न निकलेंगे तो रात तक एक भी आप के साथ नहीं रहेगा। फिर आप पर ऐसी मुसीबत आएगी जो आप की जवानी से ले कर आज तक आप पर नहीं आई है।”
8. तब दाऊद उठा और शहर के दरवाज़े के पास उतर आया। जब फ़ौजियों को बताया गया कि बादशाह शहर के दरवाज़े में बैठा है तो वह सब उस के सामने जमा हुए। इतने में इस्राईली अपने घर भाग गए थे।
9. इस्राईल के तमाम क़बीलों में लोग आपस में बह्स-मुबाहसा करने लगे, “दाऊद बादशाह ने हमें हमारे दुश्मनों से बचाया, और उसी ने हमें फ़िलिस्तियों के हाथ से आज़ाद कर दिया। लेकिन अबीसलूम की वजह से वह मुल्क से हिज्रत कर गया है।
10. अब जब अबीसलूम जिसे हम ने मसह करके बादशाह बनाया था मर गया है तो आप बादशाह को वापस लाने से क्यूँ झिजकते हैं?”
11. दाऊद ने सदोक़ और अबियातर इमामों की मारिफ़त यहूदाह के बुज़ुर्गों को इत्तिला दी, “यह बात मुझ तक पहुँच गई है कि तमाम इस्राईल अपने बादशाह का इस्तिक़्बाल करके उसे महल में वापस लाना चाहता है। तो फिर आप क्यूँ देर कर रहे हैं? क्या आप मुझे वापस लाने में सब से आख़िर में आना चाहते हैं?
12. आप मेरे भाई, मेरे क़रीबी रिश्तेदार हैं। तो फिर आप बादशाह को वापस लाने में आख़िर में क्यूँ आ रहे हैं?”
13. और अबीसलूम के कमाँडर अमासा को दोनों इमामों ने दाऊद का यह पैग़ाम पहुँचाया, “सुनें, आप मेरे भतीजे हैं, इस लिए अब से आप ही योआब की जगह मेरी फ़ौज के कमाँडर होंगे। अल्लाह मुझे सख़्त सज़ा दे अगर मैं अपना यह वादा पूरा न करूँ।”
14. इस तरह दाऊद यहूदाह के तमाम दिलों को जीत सका, और सब के सब उस के पीछे लग गए। उन्हों ने उसे पैग़ाम भेजा, “वापस आएँ, आप भी और आप के तमाम लोग भी।”
15. तब दाऊद यरूशलम वापस चलने लगा। जब वह दरया-ए-यर्दन तक पहुँचा तो यहूदाह के लोग जिल्जाल में आए ताकि उस से मिलें और उसे दरया के दूसरे किनारे तक पहुँचाएँ।
16. बिन्यमीनी शहर बहूरीम का सिमई बिन जीरा भी भाग कर यहूदाह के आदमियों के साथ दाऊद से मिलने आया।
17. बिन्यमीन के क़बीले के हज़ार आदमी उस के साथ थे। साऊल का पुराना नौकर ज़ीबा भी अपने 15 बेटों और 20 नौकरों समेत उन में शामिल था। बादशाह के यर्दन के किनारे तक पहुँचने से पहले पहले
18. वह जल्दी से दरया को उबूर करके उस के पास आए ताकि बादशाह के घराने को दरया के दूसरे किनारे तक पहुँचाएँ और हर तरह से बादशाह को ख़ुश रखें। दाऊद दरया को पार करने को था कि सिमई औंधे मुँह उस के सामने गिर गया।
19. उस ने इलतिमास की, “मेरे आक़ा, मुझे मुआफ़ करें। जो ज़ियादती मैं ने उस दिन आप से की जब आप को यरूशलम को छोड़ना पड़ा वह याद न करें। बराह-ए-करम यह बात अपने ज़हन से निकाल दें।
20. मैं ने जान लिया है कि मुझ से बड़ा जुर्म सरज़द हुआ है, इस लिए आज मैं यूसुफ़ के घराने के तमाम अफ़राद से पहले ही अपने आक़ा और बादशाह के हुज़ूर आ गया हूँ।”
21. अबीशै बिन ज़रूयाह बोला, “सिमई सज़ा-ए-मौत के लाइक़ है! उस ने रब्ब के मसह किए हुए बादशाह पर लानत की है।”
22. लेकिन दाऊद ने उसे डाँटा, “मेरा आप और आप के भाई योआब के साथ क्या वास्ता? ऐसी बातों से आप इस दिन मेरे मुख़ालिफ़ बन गए हैं! आज तो इस्राईल में किसी को सज़ा-ए-मौत देने का नहीं बल्कि ख़ुशी का दिन है। देखें, इस दिन मैं दुबारा इस्राईल का बादशाह बन गया हूँ!”
23. फिर बादशाह सिमई से मुख़ातिब हुआ, “रब्ब की क़सम, आप नहीं मरेंगे।”
24. साऊल का पोता मिफ़ीबोसत भी बादशाह से मिलने आया। उस दिन से जब दाऊद को यरूशलम को छोड़ना पड़ा आज तक जब वह सलामती से वापस पहुँचा मिफ़ीबोसत मातम की हालत में रहा था। न उस ने अपने पाँओ न अपने कपड़े धोए थे, न अपनी मूँछों की काँट-छाँट की थी।
25. जब वह बादशाह से मिलने के लिए यरूशलम से निकला तो बादशाह ने उस से सवाल किया, “मिफ़ीबोसत, आप मेरे साथ क्यूँ नहीं गए थे?”
26. उस ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा और बादशाह, मैं जाने के लिए तय्यार था, लेकिन मेरा नौकर ज़ीबा मुझे धोका दे कर अकेला ही चला गया। मैं ने तो उसे बताया था, ‘मेरे गधे पर ज़ीन कसो ताकि मैं बादशाह के साथ रवाना हो सकूँ।’ और मेरा जाने का कोई और वसीला था नहीं, क्यूँकि मैं दोनों टाँगों से माज़ूर हूँ।
27. ज़ीबा ने मुझ पर तुहमत लगाई है। लेकिन मेरे आक़ा और बादशाह अल्लाह के फ़रिश्ते जैसे हैं। मेरे साथ वही कुछ करें जो आप को मुनासिब लगे।
28. मेरे दादा के पूरे घराने को आप हलाक कर सकते थे, लेकिन फिर भी आप ने मेरी इज़्ज़त करके उन मेहमानों में शामिल कर लिया जो रोज़ाना आप की मेज़ पर खाना खाते हैं। चुनाँचे मेरा क्या हक़ है कि मैं बादशाह से मज़ीद अपील करूँ।”
29. बादशाह बोला, “अब बस करें। मैं ने फ़ैसला कर लिया है कि आप की ज़मीनें आप और ज़ीबा में बराबर तक़्सीम की जाएँ।”
30. मिफ़ीबोसत ने जवाब दिया, “वह सब कुछ ले ले। मेरे लिए यही काफ़ी है कि आज मेरे आक़ा और बादशाह सलामती से अपने महल में वापस आ पहुँचे हैं।”
31. बर्ज़िल्ली जिलिआदी राजिलीम से आया था ताकि बादशाह के साथ दरया-ए-यर्दन को पार करके उसे रुख़्सत करे।
32. बर्ज़िल्ली 80 साल का था। महनाइम में रहते वक़्त उसी ने दाऊद की मेहमान-नवाज़ी की थी, क्यूँकि वह बहुत अमीर था।
33. अब दाऊद ने बर्ज़िल्ली को दावत दी, “मेरे साथ यरूशलम जा कर वहाँ रहें! मैं आप का हर तरह से ख़याल रखूँगा।”
34. लेकिन बर्ज़िल्ली ने इन्कार किया, “मेरी ज़िन्दगी के थोड़े दिन बाक़ी हैं, मैं क्यूँ यरूशलम में जा बसूँ?
35. मेरी उम्र 80 साल है। न मैं अच्छी और बुरी चीज़ों में इमतियाज़ कर सकता, न मुझे खाने-पीने की चीज़ों का मज़ा आता है। गीत गाने वालों की आवाज़ें भी मुझ से सुनी नहीं जातीं। नहीं मेरे आक़ा और बादशाह, अगर मैं आप के साथ जाऊँ तो आप के लिए सिर्फ़ बोझ का बाइस हूँगा।
36. इस की ज़रूरत नहीं कि आप मुझे इस क़िस्म का मुआवज़ा दें। मैं बस आप के साथ दरया-ए-यर्दन को पार करूँगा
37. और फिर अगर इजाज़त हो तो वापस चला जाऊँगा। मैं अपने ही शहर में मरना चाहता हूँ, जहाँ मेरे माँ-बाप की क़ब्र है। लेकिन मेरा बेटा किम्हाम आप की ख़िदमत में हाज़िर है। वह आप के साथ चला जाए तो आप उस के लिए वह कुछ करें जो आप को मुनासिब लगे।”
38. दाऊद ने जवाब दिया, “ठीक है, किम्हाम मेरे साथ जाए। और जो कुछ भी आप चाहेंगे मैं उस के लिए करूँगा। अगर कोई काम है जो मैं आप के लिए कर सकता हूँ तो मैं हाज़िर हूँ।”
39. फिर दाऊद ने अपने साथियों समेत दरया को उबूर किया। बर्ज़िल्ली को बोसा दे कर उस ने उसे बर्कत दी। बर्ज़िल्ली अपने शहर वापस चल पड़ा
40. जबकि दाऊद जिल्जाल की तरफ़ बढ़ गया। किम्हाम भी साथ गया। इस के इलावा यहूदाह के सब और इस्राईल के आधे लोग उस के साथ चले।
41. रास्ते में इस्राईल के मर्द बादशाह के पास आ कर शिकायत करने लगे, “हमारे भाइयों यहूदाह के लोगों ने आप को आप के घराने और फ़ौजियों समेत चोरी चोरी क्यूँ दरया-ए-यर्दन के मग़रिबी किनारे तक पहुँचाया? यह ठीक नहीं है।”
42. यहूदाह के मर्दों ने जवाब दिया, “बात यह है कि हम बादशाह के क़रीबी रिश्तेदार हैं। आप को यह देख कर ग़ुस्सा क्यूँ आ गया है? न हम ने बादशाह का खाना खाया, न उस से कोई तुह्फ़ा पाया है।”
43. तो भी इस्राईल के मर्दों ने एतिराज़ किया, “हमारे दस क़बीले हैं, इस लिए हमारा बादशाह की ख़िदमत करने का दस गुना ज़ियादा हक़ है। तो फिर आप हमें हक़ीर क्यूँ जानते हैं? हम ने तो पहले अपने बादशाह को वापस लाने की बात की थी।” यूँ बह्स-मुबाहसा जारी रहा, लेकिन यहूदाह के मर्दों की बातें ज़ियादा सख़्त थीं।

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