2Samuel (15/24)  

1. कुछ देर के बाद अबीसलूम ने रथ और घोड़े ख़रीदे और साथ साथ 50 मुहाफ़िज़ भी रखे जो उस के आगे आगे दौड़ें।
2. रोज़ाना वह सुब्ह-सवेरे उठ कर शहर के दरवाज़े पर जाता। जब कभी कोई शख़्स इस मक़्सद से शहर में दाख़िल होता कि बादशाह उस के किसी मुक़द्दमे का फ़ैसला करे तो अबीसलूम उस से मुख़ातिब हो कर पूछता, “आप किस शहर से हैं?” अगर वह जवाब देता, “मैं इस्राईल के फ़ुलाँ क़बीले से हूँ,”
3. तो अबीसलूम कहता, “बेशक आप इस मुक़द्दमे को जीत सकते हैं, लेकिन अफ़्सोस! बादशाह का कोई भी बन्दा इस पर सहीह ध्यान नहीं देगा।”
4. फिर वह बात जारी रखता, “काश मैं ही मुल्क पर आला क़ाज़ी मुक़र्रर किया गया होता! फिर सब लोग अपने मुक़द्दमे मुझे पेश कर सकते और मैं उन का सहीह इन्साफ़ कर देता।”
5. और अगर कोई क़रीब आ कर अबीसलूम के सामने झुकने लगता तो वह उसे रोक कर उस को गले लगाता और बोसा देता।
6. यह उस का उन तमाम इस्राईलियों के साथ सुलूक था जो अपने मुक़द्दमे बादशाह को पेश करने के लिए आते थे। यूँ उस ने इस्राईलियों के दिलों को अपनी तरफ़ माइल कर लिया।
7. यह सिलसिला चार साल जारी रहा। एक दिन अबीसलूम ने दाऊद से बात की, “मुझे हब्रून जाने की इजाज़त दीजिए, क्यूँकि मैं ने रब्ब से ऐसी मन्नत मानी है जिस के लिए ज़रूरी है कि हब्रून जाऊँ।
8. क्यूँकि जब मैं जसूर में था तो मैं ने क़सम खा कर वादा किया था, ‘ऐ रब्ब, अगर तू मुझे यरूशलम वापस लाए तो मैं हब्रून में तेरी परस्तिश करूँगा’।”
9. बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है। सलामती से जाएँ।”
10. लेकिन हब्रून पहुँच कर अबीसलूम ने ख़ुफ़िया तौर पर अपने क़ासिदों को इस्राईल के तमाम क़बाइली इलाक़ों में भेज दिया। जहाँ भी वह गए उन्हों ने एलान किया, “जूँ ही नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दे आप सब को कहना है, ‘अबीसलूम हब्रून में बादशाह बन गया है’!”
11. अबीसलूम के साथ 200 मेहमान यरूशलम से हब्रून आए थे। वह बेलौस थे, और उन्हें इस के बारे में इल्म ही न था।
12. जब हब्रून में क़ुर्बानियाँ चढ़ाई जा रही थीं तो अबीसलूम ने दाऊद के एक मुशीर को बुलाया जो जिलोह का रहने वाला था। उस का नाम अख़ीतुफ़ल जिलोनी था। वह आया और अबीसलूम के साथ मिल गया। यूँ अबीसलूम के पैरोकारों में इज़ाफ़ा होता गया और उस की साज़िशें ज़ोर पकड़ने लगीं।
13. एक क़ासिद ने दाऊद के पास पहुँच कर उसे इत्तिला दी, “अबीसलूम आप के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है, और तमाम इस्राईल उस के पीछे लग गया है।”
14. दाऊद ने अपने मुलाज़िमों से कहा, “आओ, हम फ़ौरन हिज्रत करें, वर्ना अबीसलूम के क़ब्ज़े में आ जाएँगे। जल्दी करें ताकि हम फ़ौरन रवाना हो सकें, क्यूँकि वह कोशिश करेगा कि जितनी जल्दी हो सके यहाँ पहुँचे। अगर हम उस वक़्त शहर से निकले न हों तो वह हम पर आफ़त ला कर शहर के बाशिन्दों को मार डालेगा।”
15. बादशाह के मुलाज़िमों ने जवाब दिया, “जो भी फ़ैसला हमारे आक़ा और बादशाह करें हम हाज़िर हैं।”
16. बादशाह अपने पूरे ख़ान्दान के साथ रवाना हुआ। सिर्फ़ दस दाश्ताएँ महल को सँभालने के लिए पीछे रह गईं।
17. जब दाऊद अपने तमाम लोगों के साथ शहर के आख़िरी घर तक पहुँचा तो वह रुक गया।
18. उस ने अपने तमाम पैरोकारों को आगे निकलने दिया, पहले शाही दस्ते करेती-ओ-फ़लेती को, फिर उन 600 जाती आदमियों को जो उस के साथ जात से यहाँ आए थे और आख़िर में बाक़ी तमाम लोगों को।
19. जब फ़िलिस्ती शहर जात का आदमी इत्ती दाऊद के सामने से गुज़रने लगा तो बादशाह उस से मुख़ातिब हुआ, “आप हमारे साथ क्यूँ जाएँ? नहीं, वापस चले जाएँ और नए बादशाह के साथ रहें। आप तो ग़ैरमुल्की हैं और इस लिए इस्राईल में रहते हैं कि आप को जिलावतन कर दिया गया है।
20. आप को यहाँ आए थोड़ी देर हुई है, तो क्या मुनासिब है कि आप को दुबारा मेरी वजह से कभी इधर कभी इधर घूमना पड़े? क्या पता है कि मुझे कहाँ कहाँ जाना पड़े। इस लिए वापस चले जाएँ, और अपने हमवतनों को भी अपने साथ ले जाएँ। रब्ब आप पर अपनी मेहरबानी और वफ़ादारी का इज़्हार करे।”
21. लेकिन इत्ती ने एतिराज़ किया, “मेरे आक़ा, रब्ब और बादशाह की हयात की क़सम, मैं आप को कभी नहीं छोड़ सकता, ख़्वाह मुझे अपनी जान भी क़ुर्बान करनी पड़े।”
22. तब दाऊद मान गया। “चलो, फिर आगे निकलें!” चुनाँचे इत्ती अपने लोगों और उन के ख़ान्दानों के साथ आगे निकला।
23. आख़िर में दाऊद ने वादी-ए-क़िद्रोन को पार करके रेगिस्तान की तरफ़ रुख़ किया। गिर्द-ओ-नवाह के तमाम लोग बादशाह को उस के पैरोकारों समेत रवाना होते हुए देख कर फूट फूट कर रोने लगे।
24. सदोक़ इमाम और तमाम लावी भी दाऊद के साथ शहर से निकल आए थे। लावी अह्द का सन्दूक़ उठाए चल रहे थे। अब उन्हों ने उसे शहर से बाहर ज़मीन पर रख दिया, और अबियातर वहाँ क़ुर्बानियाँ चढ़ाने लगा। लोगों के शहर से निकलने के पूरे अर्से के दौरान वह क़ुर्बानियाँ चढ़ाता रहा।
25. फिर दाऊद सदोक़ से मुख़ातिब हुआ, “अल्लाह का सन्दूक़ शहर में वापस ले जाएँ। अगर रब्ब की नज़र-ए-करम मुझ पर हुई तो वह किसी दिन मुझे शहर में वापस ला कर अह्द के सन्दूक़ और उस की सुकूनतगाह को दुबारा देखने की इजाज़त देगा।
26. लेकिन अगर वह फ़रमाए कि तू मुझे पसन्द नहीं है, तो मैं यह भी बर्दाश्त करने के लिए तय्यार हूँ। वह मेरे साथ वह कुछ करे जो उसे मुनासिब लगे।
27. जहाँ तक आप का ताल्लुक़ है, अपने बेटे अख़ीमाज़ को साथ ले कर सहीह-सलामत शहर में वापस चले जाएँ। अबियातर और उस का बेटा यूनतन भी साथ जाएँ।
28. मैं ख़ुद रेगिस्तान में दरया-ए-यर्दन की उस जगह रुक जाऊँगा जहाँ हम आसानी से दरया को पार कर सकेंगे। वहाँ आप मुझे यरूशलम के हालात के बारे में पैग़ाम भेज सकते हैं। मैं आप के इन्तिज़ार में रहूँगा।”
29. चुनाँचे सदोक़ और अबियातर अह्द का सन्दूक़ शहर में वापस ले जा कर वहीं रहे।
30. दाऊद रोते रोते ज़ैतून के पहाड़ पर चढ़ने लगा। उस का सर ढाँपा हुआ था, और वह नंगे पाँओ चल रहा था। बाक़ी सब के सर भी ढाँपे हुए थे, सब रोते रोते चढ़ने लगे।
31. रास्ते में दाऊद को इत्तिला दी गई, “अख़ीतुफ़ल भी अबीसलूम के साथ मिल गया है।” यह सुन कर दाऊद ने दुआ की, “ऐ रब्ब, बख़्श दे कि अख़ीतुफ़ल के मश्वरे नाकाम हो जाएँ।”
32. चलते चलते दाऊद पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया जहाँ अल्लाह की परस्तिश की जाती थी। वहाँ हूसी अर्की उस से मिलने आया। उस के कपड़े फटे हुए थे, और सर पर ख़ाक थी।
33. दाऊद ने उस से कहा, “अगर आप मेरे साथ जाएँ तो आप सिर्फ़ बोझ का बाइस बनेंगे।
34. बेहतर है कि आप लौट कर शहर में जाएँ और अबीसलूम से कहें, ‘ऐ बादशाह, मैं आप की ख़िदमत में हाज़िर हूँ। पहले मैं आप के बाप की ख़िदमत करता था, और अब आप ही की ख़िदमत करूँगा।’ अगर आप ऐसा करें तो आप अख़ीतुफ़ल के मश्वरे नाकाम बनाने में मेरी बड़ी मदद करेंगे।
35. आप अकेले नहीं होंगे। दोनों इमाम सदोक़ और अबियातर भी यरूशलम में पीछे रह गए हैं। दरबार में जो भी मन्सूबे बाँधे जाएँगे वह उन्हें बताएँ। सदोक़ का बेटा अख़ीमाज़ और अबियातर का बेटा यूनतन मुझे हर ख़बर पहुँचाएँगे, क्यूँकि वह भी शहर में ठहरे हुए हैं।”
36. आप अकेले नहीं होंगे। दोनों इमाम सदोक़ और अबियातर भी यरूशलम में पीछे रह गए हैं। दरबार में जो भी मन्सूबे बाँधे जाएँगे वह उन्हें बताएँ। सदोक़ का बेटा अख़ीमाज़ और अबियातर का बेटा यूनतन मुझे हर ख़बर पहुँचाएँगे, क्यूँकि वह भी शहर में ठहरे हुए हैं।”
37. तब दाऊद का दोस्त हूसी वापस चला गया। वह उस वक़्त पहुँच गया जब अबीसलूम यरूशलम में दाख़िल हो रहा था।

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