2Samuel (14/24)  

1. योआब बिन ज़रूयाह को मालूम हुआ कि बादशाह अपने बेटे अबीसलूम को चाहता है,
2. इस लिए उस ने तक़ूअ से एक दानिशमन्द औरत को बुलाया। योआब ने उसे हिदायत दी, “मातम का रूप भरें जैसे आप देर से किसी का मातम कर रही हों। मातम के कपड़े पहन कर ख़ुश्बूदार तेल मत लगाना।
3. बादशाह के पास जा कर उस से बात करें।” फिर योआब ने औरत को लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ वह कुछ सिखाया जो उसे बादशाह को बताना था।
4. दाऊद के दरबार में आ कर औरत ने औंधे मुँह झुक कर इलतिमास की, “ऐ बादशाह, मेरी मदद करें!”
5. दाऊद ने दरयाफ़्त किया, “क्या मसला है?” औरत ने जवाब दिया, “मैं बेवा हूँ, मेरा शौहर फ़ौत हो गया है।
6. और मेरे दो बेटे थे। एक दिन वह बाहर खेत में एक दूसरे से उलझ पड़े। और चूँकि कोई मौजूद नहीं था जो दोनों को अलग करता इस लिए एक ने दूसरे को मार डाला।
7. उस वक़्त से पूरा कुम्बा मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है। वह तक़ाज़ा करते हैं कि मैं अपने बेटे को उन के हवाले करूँ। वह कहते हैं, ‘उस ने अपने भाई को मार दिया है, इस लिए हम बदले में उसे सज़ा-ए-मौत देंगे। इस तरह वारिस भी नहीं रहेगा।’ यूँ वह मेरी उम्मीद की आख़िरी किरन को ख़त्म करना चाहते हैं। क्यूँकि अगर मेरा यह बेटा भी मर जाए तो मेरे शौहर का नाम क़ाइम नहीं रहेगा, और उस का ख़ान्दान रू-ए-ज़मीन पर से मिट जाएगा।”
8. बादशाह ने औरत से कहा, “अपने घर चली जाएँ और फ़िक्र न करें। मैं मुआमला हल कर दूँगा।”
9. लेकिन औरत ने गुज़ारिश की, “ऐ बादशाह, डर है कि लोग फिर भी मुझे मुज्रिम ठहराएँगे अगर मेरे बेटे को सज़ा-ए-मौत न दी जाए। आप पर तो वह इल्ज़ाम नहीं लगाएँगे।”
10. दाऊद ने इस्रार किया, “अगर कोई आप को तंग करे तो उसे मेरे पास ले आएँ। फिर वह आइन्दा आप को नहीं सताएगा!”
11. औरत को तसल्ली न हुई। उस ने गुज़ारिश की, “ऐ बादशाह, बराह-ए-करम रब्ब अपने ख़ुदा की क़सम खाएँ कि आप किसी को भी मौत का बदला नहीं लेने देंगे। वर्ना नुक़्सान में इज़ाफ़ा होगा और मेरा दूसरा बेटा भी हलाक हो जाएगा।” दाऊद ने जवाब दिया, “रब्ब की हयात की क़सम, आप के बेटे का एक बाल भी बीका नहीं होगा।”
12. फिर औरत असल बात पर आ गई, “मेरे आक़ा, बराह-ए-करम अपनी ख़ादिमा को एक और बात करने की इजाज़त दें।” बादशाह बोला, “करें बात।”
13. तब औरत ने कहा, “आप ख़ुद क्यूँ अल्लाह की क़ौम के ख़िलाफ़ ऐसा इरादा रखते हैं जिसे आप ने अभी अभी ग़लत क़रार दिया है? आप ने ख़ुद फ़रमाया है कि यह ठीक नहीं, और यूँ आप ने अपने आप को ही मुज्रिम ठहराया है। क्यूँकि आप ने अपने बेटे को रद्द करके उसे वापस आने नहीं दिया।
14. बेशक हम सब को किसी वक़्त मरना है। हम सब ज़मीन पर उंडेले गए पानी की मानिन्द हैं जिसे ज़मीन जज़ब कर लेती है और जो दुबारा जमा नहीं किया जा सकता। लेकिन अल्लाह हमारी ज़िन्दगी को बिलावजह मिटा नहीं देता बल्कि ऐसे मन्सूबे तय्यार रखता है जिन के ज़रीए मर्दूद शख़्स भी उस के पास वापस आ सके और उस से दूर न रहे।
15. ऐ बादशाह मेरे आक़ा, मैं इस वक़्त इस लिए आप के हुज़ूर आई हूँ कि मेरे लोग मुझे डराने की कोशिश कर रहे हैं। मैं ने सोचा, मैं बादशाह से बात करने की जुरअत करूँगी, शायद वह मेरी सुनें
16. और मुझे उस आदमी से बचाएँ जो मुझे और मेरे बेटे को उस मौरूसी ज़मीन से महरूम रखना चाहता है जो अल्लाह ने हमें दे दी है।
17. ख़याल यह था कि अगर बादशाह मुआमला हल कर दें तो फिर मुझे दुबारा सुकून मिलेगा, क्यूँकि आप अच्छी और बुरी बातों का इमतियाज़ करने में अल्लाह के फ़रिश्ते जैसे हैं। रब्ब आप का ख़ुदा आप के साथ हो।”
18. यह सब कुछ सुन कर दाऊद बोल उठा, “अब मुझे एक बात बताएँ। इस का सहीह जवाब दें।” औरत ने जवाब दिया, “जी मेरे आक़ा, बात फ़रमाइए।” दाऊद ने पूछा, “क्या योआब ने आप से यह काम करवाया?”
19. औरत पुकारी, “बादशाह की हयात की क़सम, जो कुछ भी मेरे आक़ा फ़रमाते हैं वह निशाने पर लग जाता है, ख़्वाह बन्दा बाईं या दाईं तरफ़ हटने की कोशिश क्यूँ न करे। जी हाँ, आप के ख़ादिम योआब ने मुझे आप के हुज़ूर भेज दिया। उस ने मुझे लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ सब कुछ बताया जो मुझे आप को अर्ज़ करना था,
20. क्यूँकि वह आप को यह बात बराह-ए-रास्त नहीं पेश करना चाहता था। लेकिन मेरे आक़ा को अल्लाह के फ़रिश्ते की सी हिक्मत हासिल है। जो कुछ भी मुल्क में वुक़ू में आता है उस का आप को पता चल जाता है।”
21. दाऊद ने योआब को बुला कर उस से कहा, “ठीक है, मैं आप की दरख़्वास्त पूरी करूँगा। जाएँ, मेरे बेटे अबीसलूम को वापस ले आएँ।”
22. योआब औंधे मुँह झुक गया और बोला, “रब्ब बादशाह को बर्कत दे! मेरे आक़ा, आज मुझे मालूम हुआ है कि मैं आप को मन्ज़ूर हूँ, क्यूँकि आप ने अपने ख़ादिम की दरख़्वास्त को पूरा किया है।”
23. योआब रवाना हो कर जसूर चला गया और वहाँ से अबीसलूम को वापस लाया।
24. लेकिन जब वह यरूशलम पहुँचे तो बादशाह ने हुक्म दिया, “उसे अपने घर में रहने की इजाज़त है, लेकिन वह कभी मुझे नज़र न आए।” चुनाँचे अबीसलूम अपने घर में दुबारा रहने लगा, लेकिन बादशाह से कभी मुलाक़ात न हो सकी।
25. पूरे इस्राईल में अबीसलूम जैसा ख़ूबसूरत आदमी नहीं था। सब उस की ख़ास तारीफ़ करते थे, क्यूँकि सर से ले कर पाँओ तक उस में कोई नुक़्स नज़र नहीं आता था।
26. साल में वह एक ही मर्तबा अपने बाल कटवाता था, क्यूँकि इतने में उस के बाल हद्द से ज़ियादा वज़नी हो जाते थे। जब उन्हें तोला जाता तो उन का वज़न तक़्रीबन सवा दो किलोग्राम होता था।
27. अबीसलूम के तीन बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम तमर था और वह निहायत ख़ूबसूरत थी।
28. दो साल गुज़र गए, फिर भी अबीसलूम को बादशाह से मिलने की इजाज़त न मिली।
29. फिर उस ने योआब को इत्तिला भेजी कि वह उस की सिफ़ारिश करे। लेकिन योआब ने आने से इन्कार किया। अबीसलूम ने उसे दुबारा बुलाने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी योआब उस के पास न आया।
30. तब अबीसलूम ने अपने नौकरों को हुक्म दिया, “देखो, योआब का खेत मेरे खेत से मुल्हिक़ है, और उस में जौ की फ़सल पक रही है। जाओ, उसे आग लगा दो!” नौकर गए और ऐसा ही किया।
31. जब खेत में आग लग गई तो योआब भाग कर अबीसलूम के पास आया और शिकायत की, “आप के नौकरों ने मेरे खेत को आग क्यूँ लगाई है?”
32. अबीसलूम ने जवाब दिया, “देखें, आप नहीं आए जब मैं ने आप को बुलाया। क्यूँकि मैं चाहता हूँ कि आप बादशाह के पास जा कर उन से पूछें कि मुझे जसूर से क्यूँ लाया गया। बेहतर होता कि मैं वहीं रहता। अब बादशाह मुझ से मिलें या अगर वह अब तक मुझे क़ुसूरवार ठहराते हैं तो मुझे सज़ा-ए-मौत दें।”
33. योआब ने बादशाह के पास जा कर उसे यह पैग़ाम पहुँचाया। फिर दाऊद ने अपने बेटे को बुलाया। अबीसलूम अन्दर आया और बादशाह के सामने औंधे मुँह झुक गया। फिर बादशाह ने अबीसलूम को बोसा दिया।

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