2Samuel (12/24)  

1. रब्ब ने नातन नबी को दाऊद के पास भेज दिया। बादशाह के पास पहुँच कर वह कहने लगा, “किसी शहर में दो आदमी रहते थे। एक अमीर था, दूसरा ग़रीब।
2. अमीर की बहुत भेड़-बक्रियाँ और गाय-बैल थे,
3. लेकिन ग़रीब के पास कुछ नहीं था, सिर्फ़ भेड़ की नन्ही सी बच्ची जो उस ने ख़रीद रखी थी। ग़रीब उस की पर्वरिश करता रहा, और वह घर में उस के बच्चों के साथ साथ बड़ी होती गई। वह उस की प्लेट से खाती, उस के पियाले से पीती और रात को उस के बाज़ूओं में सो जाती। ग़रज़ भेड़ ग़रीब के लिए बेटी की सी हैसियत रखती थी।
4. एक दिन अमीर के हाँ मेहमान आया। जब उस के लिए खाना पकाना था तो अमीर का दिल नहीं करता था कि अपने रेवड़ में से किसी जानवर को ज़बह करे, इस लिए उस ने ग़रीब आदमी से उस की नन्ही सी भेड़ ले कर उसे मेहमान के लिए तय्यार किया।”
5. यह सुन कर दाऊद को बड़ा ग़ुस्सा आया। वह पुकारा, “रब्ब की हयात की क़सम, जिस आदमी ने यह किया वह सज़ा-ए-मौत के लाइक़ है।
6. लाज़िम है कि वह भेड़ की बच्ची के इवज़ ग़रीब को भेड़ के चार बच्चे दे। यही उस की मुनासिब सज़ा है, क्यूँकि उस ने ऐसी हर्कत करके ग़रीब पर तरस न खाया।”
7. नातन ने दाऊद से कहा, “आप ही वह आदमी हैं! रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मैं ने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बना दिया, और मैं ही ने तुझे साऊल से मह्फ़ूज़ रखा।
8. साऊल का घराना उस की बीवियों समेत मैं ने तुझे दे दिया। हाँ, पूरा इस्राईल और यहूदाह भी तेरे तहत आ गए हैं। और अगर यह तेरे लिए कम होता तो मैं तुझे मज़ीद देने के लिए भी तय्यार होता।
9. अब मुझे बता कि तू ने मेरी मर्ज़ी को हक़ीर जान कर ऐसी हर्कत क्यूँ की है जिस से मुझे नफ़रत है? तू ने ऊरियाह हित्ती को क़त्ल करवाके उस की बीवी को छीन लिया है। हाँ, तू क़ातिल है, क्यूँकि तू ने हुक्म दिया कि ऊरियाह को अम्मोनियों से लड़ते लड़ते मरवाना है।
10. चूँकि तू ने मुझे हक़ीर जान कर ऊरियाह हित्ती की बीवी को उस से छीन लिया इस लिए आइन्दा तल्वार तेरे घराने से नहीं हटेगी।’
11. रब्ब फ़रमाता है, ‘मैं होने दूँगा कि तेरे अपने ख़ान्दान में से मुसीबत तुझ पर आएगी। तेरे देखते देखते मैं तेरी बीवियों को तुझ से छीन कर तेरे क़रीब के आदमी के हवाले कर दूँगा, और वह अलानिया उन से हमबिसतर होगा।
12. तू ने चुपके से गुनाह किया, लेकिन जो कुछ मैं जवाब में होने दूँगा वह अलानिया और पूरे इस्राईल के देखते देखते होगा’।”
13. तब दाऊद ने इक़्रार किया, “मैं ने रब्ब का गुनाह किया है।” नातन ने जवाब दिया, “रब्ब ने आप को मुआफ़ कर दिया है और आप नहीं मरेंगे।
14. लेकिन इस हर्कत से आप ने रब्ब के दुश्मनों को कुफ़्र बकने का मौक़ा फ़राहम किया है, इस लिए बत-सबा से होने वाला बेटा मर जाएगा।”
15. तब नातन अपने घर चला गया। फिर रब्ब ने बत-सबा के बेटे को छू दिया, और वह सख़्त बीमार हो गया।
16. दाऊद ने अल्लाह से इलतिमास की कि बच्चे को बचने दे। रोज़ा रख कर वह रात के वक़्त नंगे फ़र्श पर सोने लगा।
17. घर के बुज़ुर्ग उस के इर्दगिर्द खड़े कोशिश करते रहे कि वह फ़र्श से उठ जाए, लेकिन बेफ़ाइदा। वह उन के साथ खाने के लिए भी तय्यार नहीं था।
18. सातवें दिन बेटा फ़ौत हो गया। दाऊद के मुलाज़िमों ने उसे ख़बर पहुँचाने की जुरअत न की, क्यूँकि उन्हों ने सोचा, “जब बच्चा अभी ज़िन्दा था तो हम ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने हमारी एक भी न सुनी। अब अगर बच्चे की मौत की ख़बर दें तो ख़त्रा है कि वह कोई नुक़्सानदिह क़दम उठाए।”
19. लेकिन दाऊद ने देखा कि मुलाज़िम धीमी आवाज़ में एक दूसरे से बात कर रहे हैं। उस ने पूछा, “क्या बेटा मर गया है?” उन्हों ने जवाब दिया, “जी, वह मर गया है।”
20. यह सुन कर दाऊद फ़र्श पर से उठ गया। वह नहाया और जिस्म को ख़ुश्बूदार तेल से मल कर साफ़ कपड़े पहन लिए। फिर उस ने रब्ब के घर में जा कर उस की परस्तिश की। इस के बाद वह महल में वापस गया और खाना मंगवा कर खाया।
21. उस के मुलाज़िम हैरान हुए और बोले, “जब बच्चा ज़िन्दा था तो आप रोज़ा रख कर रोते रहे। अब बच्चा जाँ-ब-हक़ हो गया है तो आप उठ कर दुबारा खाना खा रहे हैं। क्या वजह है?”
22. दाऊद ने जवाब दिया, “जब तक बच्चा ज़िन्दा था तो मैं रोज़ा रख कर रोता रहा। ख़याल यह था कि शायद रब्ब मुझ पर रहम करके उसे ज़िन्दा छोड़ दे।
23. लेकिन जब वह कूच कर गया है तो अब रोज़ा रखने का क्या फ़ाइदा? क्या मैं इस से उसे वापस ला सकता हूँ? हरगिज़ नहीं! एक दिन मैं ख़ुद ही उस के पास पहुँचूँगा। लेकिन उस का यहाँ मेरे पास वापस आना नामुम्किन है।”
24. फिर दाऊद ने अपनी बीवी बत-सबा के पास जा कर उसे तसल्ली दी और उस से हमबिसतर हुआ। तब उस के एक और बेटा पैदा हुआ। दाऊद ने उस का नाम सुलेमान यानी अम्नपसन्द रखा। यह बच्चा रब्ब को पियारा था,
25. इस लिए उस ने नातन नबी की मारिफ़त इत्तिला दी कि उस का नाम यदीदियाह यानी ‘रब्ब को पियारा’ रखा जाए।
26. अब तक योआब अम्मोनी दार-उल-हकूमत रब्बा का मुहासरा किए हुए था। फिर वह शहर के एक हिस्से बनाम ‘शाही शहर’ पर क़ब्ज़ा करने में काम्याब हो गया।
27. उस ने दाऊद को इत्तिला दी, “मैं ने रब्बा पर हम्ला करके उस जगह पर क़ब्ज़ा कर लिया है जहाँ पानी दस्तयाब है।
28. चुनाँचे अब फ़ौज के बाक़ी अफ़राद को ला कर ख़ुद शहर पर क़ब्ज़ा कर लें। वर्ना लोग समझेंगे कि मैं ही शहर का फ़ातिह हूँ।”
29. चुनाँचे दाऊद फ़ौज के बाक़ी अफ़राद को ले कर रब्बा पहुँचा। जब शहर पर हम्ला किया तो वह उस के क़ब्ज़े में आ गया।
30. दाऊद ने हनून बादशाह का ताज उस के सर से उतार कर अपने सर पर रख लिया। सोने के इस ताज का वज़न 34 किलोग्राम था, और उस में एक बेशक़ीमत जौहर जड़ा हुआ था। दाऊद ने शहर से बहुत सा लूटा हुआ माल ले कर
31. उस के बाशिन्दों को ग़ुलाम बना लिया। उन्हें पत्थर काटने की आरियाँ, लोहे की कुदालें और कुल्हाड़ियाँ दी गईं ताकि वह मज़्दूरी करें और भट्टों पर काम करें। यही सुलूक बाक़ी अम्मोनी शहरों के बाशिन्दों के साथ भी किया गया। जंग के इख़तिताम पर दाऊद पूरी फ़ौज के साथ यरूशलम लौट आया।

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